Saturday, August 30, 2025

गणपति जन्म

 माँ ने खुद से तुमको गढ़ा,

खुद के उबटन से रूप सँवारा,

भक्ति-प्रेम की मूरत रचकर,

धरती पर तुमको उतारा।


ममता के आँचल से ढककर ,

द्वार पर बैठाया पहरेदार बनाकर,

बोली "कोई न आए अंदर ,

जब तक न हो स्नान पूर्ण।


तभी पिता शिव लौटे कैलाश से,

देखा बालक द्वार खड़ा,

मार्ग रोका उसने दृढ़ होकर,

बोला "माता का है यह वचन बड़ा।


शिव का क्रोध प्रचंड हुआ,

त्रिशूल उठा गर्जन हुआ,

धरती हिली, गगन मौन हुआ ,

बालक का शीश कटकर गिरा धरा पर।


माँ विलाप कर उठीं देखकर,

अश्रुधार बहती गई,

करुण पुकार से त्रिलोक डोला,

हर दिशा दु:ख में डूब गई।


देव-दनुज सब आ जुटे सभी,

विनती करने लगे महादेव से,

माँ की पीड़ा शांति करें,

जीवन लौटा दें उस बालक में।


तब शिव ने करुणा दिखाई,

विष्णु गरुड़ पर चढ़ तभी आए,

हाथी का मस्तक संग लाए,

उस बालक के धड पर रखा।


श्वास पुनः अंगों में भरा,

जीवन का संचार हुआ,

सबने देखा अद्भुत बालक,

गणनायक अवतार हुआ।


शिव ने वरदान दिया 

सर्वप्रथम पूज्य कहलाओगे,

हर शुभ कार्य में,

तुम्हारा नाम ही जग गाएगा।


माता ने आँचल फैलाकर,

तुम्हें गले लगाया प्रेम से,

तब से विघ्नहर्ता विनायक,

पूजित हो जन-जन के हृदय से।

Friday, August 29, 2025

गजानन स्तुति

 रिद्धि - सिद्धि के संग विराजे,

विघ्न विनाशक, मंगल बाजे ।


सुख-समृद्धि के द्वार हैं खोलते,

भक्तों के सब कष्ट है हरते।


मोदक जिनको अति प्रिय लगते,

करुणा बरसाएँ सब उनको भजते ।


लाल सिंदूरी श्याम है स्वरूप,

ज्ञान, प्रकाश,भक्ति का है रूप।


जहाँ भी गजानन नाम पुकारा,

वहाँ न रुके कोई काम हमारा।


आओ मिलकर शीश झुकाएँ,

गणपति को हम हृदय में बसाएँ।

Tuesday, August 26, 2025

गणेश चतुर्थी पर विशेष

 आप सभी को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं भगवान गणेश आप सभी भक्त गणों के जीवन में सुख शांति और समृद्धि लाए यही मेरी उनसे प्रार्थना हैं।

यह लेख लिखने का उद्देश्य है अपने विचार को आप सभी से साझा करना इसको लिखने से पहले में सभी से अनुरोध करुँगी की जो मैं लिख रही हूँ उसके पीछे का उद्देश्य देखिए बात को समझिए फिर किसी भी निष्कर्ष पर पहुंच कर प्रतिक्रिया दीजिएगा। मैं न तो नास्तिक हूँ न ईश्वर विरोधी हूँ बस मन में विचार आया तो सबसे पहले आप सभी नज़र में आए विचारों को साझा करने के लिए।

आज के समय में हम सभी एक दूसरे के पीछे आंखें बंद करके चल रहे है शायद हमे लगता है कि अगर हम रुक कर सोचेंगे और समझेंगे तो देर न हो जाये और कहीं किसी दौड़ में पीछे न रह जाये पर मेरा यकीन करिए की अगर हम अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग कर कोई भी कार्य करेंगे तो न तो पीछे रहेंगे और न ही दौड़ से बाहर होंगे।

पिछले कुछ वर्षों से गणेश चतुर्थी का त्योहार हम सभी मिलकर सभी जगह मानते है और यह अच्छी बात है पर उसको मनाने के लिए हम दूसरों की नकल क्यों करते है यह मेरे समझ से परे हैं। हम सभी गणेश भगवान की उपासना, व्रत, भोग, साँस्कृतिक कार्यक्रम करें अच्छी बात भंडारा भी करें पर यह विसर्जन कैसा और क्यों? यह कभी आप सभी ने सोचा है। एक बात बताइए कि क्या हमारी परम्परा में विसर्जन लिखा है कहीं पर फिर किसी दूसरे जगह की नकल क्यों करना? और हमारे समझ से विसर्जन का कोई प्रावधान हमारी हिन्दू संस्कृति में नहीं है हम तो मूर्ति खण्डित होने पर विसर्जन करते है या नयी लाने पर पुरानी मूर्ति का विसर्जन होता है अब तो प्रदूषण के चलते और नदियों के गंदा होने के कारण बंद हो गया है अब तो भू विसर्जन होने लगा है।

फिर हम उत्तर भारतीय हिन्दू गणेश विसर्जन क्यों करते हैं? एक बात बताइए क्या हमारे मेहमान है गणेश जी जिनका विसर्जन हो कर जाना जरूरी है नहीं न फिर क्यों? अगर विसर्जन करते है तो दिवाली पर वापस पूजते क्यों हैं? क्योंकि हम तो उनका विसर्जन कर आए फिर स्वागत तो किया नहीं और आगमन हुआ नहीं तो पूजन कैसे? हम सभी विसर्जन के समय कह कर आते है अगले बरस तू जल्दी आना फिर दिवाली पर कैसे आ गए पूजन में? कभी सोचा आप सभी ने। अब आप कहेंगे कि उनकी तो पूजा सर्वप्रथम होनी ही हैं, तो फिर विसर्जन क्यों करा? 

किसी भी जगह की देखा देखी कुछ करना कहाँ तक सही है सोचना चाहिए पहले लोग कहतें थे नकल के लिए अक्ल चाहिए ऐसा थोड़े है कि आँख बंद की सोच समझ ताक पर रख बस करने लगे।

आप सभी जानते होंगे कि गणेश जी महाराष्ट्र घूमने के लिए साल में एक बार जाते है इसके पीछे की कहानी सभी को मालूम है ( यहां यह भी बताना चाहूँगी की बालगंगाधर तिलक ने गणेशचतुर्थी को उत्सव के रूप में मनाने की घोषणा पुणे से की थीं कि जिससे लोग इस बहाने आपस में मिल कर देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ तैयारी कर सके और अंग्रेजों को खबर भी न लग पाए) गणेश जी तो कुछ समय के लिए वहाँ मेहमान बन कर जाते है तो उन को वापस तो आना होगा इसीलिए उन्हें वहाँ विसर्जित करते है यह बोल कर अगले साल जल्दी आना जैसे हम अपने यहां आए मेहमान से कहतें है अगली बार जल्दी मिलने आना और गणेश जी का तो यहां अपना घर है फिर वहाँ उनका विसर्जन क्यों? गणेश जी का अपना स्थान है साल भार हर तीज त्योहार में उनकी ही पूजा करनी होती है फिर उनको हम विसर्जित कैसे कर सकते हैं? इसलिए भेड़चाल में चलिए पर आँख ,कान, बुद्धि को खुला रखिए।

कृपया गणेश जी को लाइये उन को घर जरूर लाइये सब कुछ करिए पर उनका विसर्जन नहीं करिए उनको उनके घर से विसर्जित न करिए बस इतना ही आपसे अनुरोध हैं साथ मेरी कोई बात गलत लगी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ। किसी भी वर्ग व्यक्ति की भावना को ठेस पहुंचाना मेरा उद्देश्य नहीं हैं। गणपति महाराज की जय ।

हरतालिका तीज

 सावन बीता आया भादो 

शुभ व्रत हरतालिका तीज लाया भादो।

भाद्रपद की हस्त नक्षत्र तृतीया 

लाता है यह वह पावन व्रत हरतालिका।

निर्जला निराहार रहकर करती व्रत 

लिए अखंड सौभाग्य की कामना।

मेहंदी रचाकर हाथों में चूड़ियां खनका कर 

मांग पूरी भरकर करूं मैं सोलह सिंगार।

केले के पत्तों से मंडप को सजाकर 

मां गौरा को शिव संग उसके नीचे बिठाकर।

कदली फल मेवा चढ़ाती 

मां गौरा को विधिवत पूजा से मनाती।

ध्यान लगाकर तीज कथा को सुनती 

भजन कीर्तन सुन रात्रि जागरण करती।

भोर में भोले को जल अर्पण कर 

माँ गौरा से मांगती अमर सुहाग।

सावन बीता आया भादो 

शुभ व्रत हरतालिका तीज है लाया भादो।।


सभी को हरतालिका तीज की शुभकामनाएं 🙏🏻🙏🏻

मेहरून साड़ी

 अलमारी खोलते ही वीना की नज़र मेहरून सिल्क की साड़ी पर जा पड़ी। मुलायम, नर्म, पर आज पूरे बाईस साल बाद भी  बिल्कुल नयी जैसी ही थीं उसने सम्हालते हुए हाथों में  उठाई और  शीशे के सामने खड़े होकर कंधे पर डालती है और अभी खुद को निहार ही रहीं थीं कि जैसे वह साड़ी बोल पड़ी हो— "याद है वीना, यही साड़ी तुमने अपनी शादी की पहली सालगिरह पर पहनी थी। राज ने कितनी तारीफ़ की थी उस दिन तुम्हारी।" उसकी नज़रे उस दिन तुम पर से हट ही नहीं रहीं थीं।

वीना मन ही मन मुस्कुराई, पर मुस्कान के पीछे एक गहरी आह थी। अब राज की आँखों में वह चमक कहाँ रह गई सालगिरहें अब बस कैलेंडर की तारीख़ भर रह गई थीं।

साड़ी की तहों को खोलते हुए उसे माँ की बातें याद आईं—

"बिटिया, साड़ी सिर्फ़ कपड़ा नहीं होती, यह औरत का आंचल, उसका सहारा, उसकी पहचान होती है।"

वह चुपचाप आईने के सामने खड़ी रही। साड़ी देखते ही जैसे किसी और ज़माने की वीना लौट आई हो—सपनों और उम्मीदों से भरी। मगर फिर आईना सच दिखा गया—थकी आँखें, चुप्पी से भरे होंठ और कंधों पर ज़िम्मेदारियों का बोझ। पर इस बार वीना ने अपनी साड़ी के पल्लू को कसकर थामा तभी उसकी आँखों से छलका आँसू चुपचाप गिरकर उस मेहरून साड़ी में कहीं समा गया।

एक बार फिर साड़ी बोल उठी—

वीना मैंने तुम्हारी हँसी भी देखी है और तुम्हारे आँसू भी… तुम्हारी हर चुप्पी मेरी हर तह में दर्ज है।

वीना ने बिना सोचे समझे फौरन साड़ी तह कर अलमारी में रख दिया। वीना आज बहुत उलझ गई थीं कहीं न कहीं उस मेहरून साड़ी में, पूरे दिन उलझने के बाद उसने तय कर लिया था—कल वह यही साड़ी पहनकर बाहर जाएगी, मगर इस बार अपनी खोई हुई हँसी को ढूँढने नहीं बल्कि खुद को, खुद के वजूद को और खुद की खुशियों को।

वीना के इस कदम से इतना तो तय है कि हर साड़ी के पीछे छिपी कहानी, एक दिन औरत को उसकी पहचान वापस दिला सकती है।

Monday, August 25, 2025

पहली बार

 वह तुम्हें पहली बार देखना याद है 

वह मेरा तुमसे पहली बार निगाहों का मिलना याद है 

हां याद है जब पहली बार तुमसे बात हुई थी बातों का सिलसिला 

पूरे दिन तुम्हारे मैसेज

तुम्हारे कॉल का इंतजार याद है 

जब पहली बार तुम मुझसे मिलने आने वाले थे वह पहली मुलाकात भी याद है 

जब छुआ था तुमने मेरे हाथों को 

वह एहसास भी याद है

जब लिया था तुमने मुझे बाहों में पहली बार 

हां याद है

मुझे तुम्हारी खुशबू, तुम्हारा एहसास, तुम्हारी आंखें, तुम्हारी आवाज़, तुम्हारी हंसी सब कुछ तो याद है

हर रोज सवेरे तुमसे मिलने का इंतजार और इंतजार के बाद वह पल जब आकर मुझे तुम बाहों में लेते थे 

याद है मुझे 

छुप- छुप के मेरा तुमको देखना और मुझे देखते हुए जब तुम देख लेते थे वह भी याद है

रोज सुबह तुमसे मिलने की खुशी और हर शाम तुमसे बिछड़ने का गम याद है 

तुम्हारे साथ हंसना, तुम्हारे साथ रोना, तुम्हारे साथ घूमना ,तुमसे लड़ना, तुमसे झगड़ना

याद है 

सब कुछ तो याद है

Wednesday, August 20, 2025

अब मैं ही काफी हूं

 नीतू की शादी को दस साल होने वाले है वह अब दो बच्चों की माँ भी बन चुकी हैं और अजय के साथ अपनी गृहस्थी भी बसा चुकी है पर वह जिस प्यार की तलाश में अजय के साथ शादी के बंधन में बंधी थी वह प्यार शादी के केसाल अन्दर कहाँ काफूर हो गया नीतू को पता न चला। ऐसा नहीं की नीतू और अजय की लव मैरिज हैं दोनों की अरेंज मैरिज हुई बस शादी तय होने और शादी होने के बीच साल भर का समय मिला जिससे दोनों को एक दूसरे के साथ समय बीताने का समय मिल गया इसी एक साल में अजय को नीतू से प्यार भी हो गया जिसका इजहार भी अजय ने नीतू से किया और नीतू को जो चाहिए था वह मिल गया। नीतू अब अजय के रंग में खुद को रंगने लगी थी। धीरे-धीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था। तभी दोनों की शादी हो गयी। नीतू भी हर लड़की की तरह ही शादी के सपने संजोये हुए विदा हो अजय के साथ अपने ससुराल आ गयी। नीतू और अजय के बीच सब अच्छा चल रहा था। पता नहीं कब कैसे उनके बीच की छोटी- छोटी लड़ाईयां झगड़ों और बहस में बदलने लगी।

शादी के एक साल तक सब अच्छा चला धीरे -धीरे नीतू और अजय की छोटी-छोटी नोकझोंक प्यार से सुलझ जाती थीं, पर अब वही नोकझोंक तीखे झगड़ों में बदलने लगी।

अजय ऑफिस की जिम्मेदारियों और परिवार की भाग-दौड़ में इतना उलझ गया कि नीतू से बातें करना, उसके साथ वक्त बिताना, उसे महसूस कराना कि वह अहम है यह सब भूल गया।

नीतू अक्सर रात को चुपचाप छत पर चली जाती, तारों की ओर देखती और सोचती "क्या यही वह प्यार है जिसकी उसे तलाश थी? वह प्यार जो शादी से पहले अजय की आँखों में झलकता था उसके लिए पर अब कहाँ खो गया?"

बच्चों और घर की जिम्मेदारियों ने नीतू को माँ और बहू तो बना दिया, पर जो प्यार और अपनापन वह चाहती थी वह उसे नहीं मिला। धीरे-धीरे वह अकेली होती जा रही थी। वह चाहती थी कि अजय कभी उसकी मन की सुने, उसके पास बैठकर बिना वजह बातें करे, उसकी थकान देख कर बस उसका हाथ थाम ले पर अजय का जवाब अक्सर यही होता "इतनी छोटी-छोटी बातों के लिए क्यों लड़ती हो? सबके घर में ऐसा ही होता है।"

धीरे-धीरे नीतू को लगने लगा कि वह अजय के लिए सिर्फ एक जिम्मेदारी बनकर रह गई है, न कि वह लड़की जिससे वह कभी बेइंतेहा प्यार करता था।

यहीं से नीतू के भीतर की तलाश शुरू होती है तलाश उस अपनेपन की, उस स्नेह की, उस सहारे की जो उसके जीवन में अब कहीं नहीं था।

नीतू अब समझने लगी थी कि अजय से उम्मीदें करना उसे और भी दुख दे रहा है।

रात-रात भर जागकर वह अपने भीतर सवाल करती  "क्या सचमुच मेरी ज़िंदगी का अर्थ सिर्फ बच्चों और घर तक ही सीमित है? मैं कहाँ हूँ इन सबमें ? मैं कही खो गई हूँ ?"

धीरे-धीरे उसने अपने अकेलेपन को किताबों और लिखने में बदलना शुरू किया। जो भावनाएँ वह अजय से कह नहीं पाती थी, वह उन्हें डायरी में लिखने लगी। शब्द उसके हमसफ़र बन गए।

कभी वह घर की छत पर बैठकर बारिश को देखती, तो कभी बच्चों के सो जाने के बाद खिड़की के पास बैठकर चाय की चुस्कियों में खुद से बातें करती।

इन लम्हों में उसने पाया कि वह अब अधूरी नहीं है। उसके भीतर बहुत कुछ है जो बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहा है।

वह बच्चों की पढ़ाई में नई-नई कहानियाँ गढ़ने लगी, मोहल्ले की औरतों को तीज-त्यौहार पर सजने-संवरने के लिए प्रेरित करने लगी, और धीरे-धीरे लोगों ने नीतू को “नीतू भाभी” नहीं बल्कि “नीतू दीदी” के नाम से पहचानना शुरू कर दिया।

अजय अब भी वैसा ही था थका हुआ, चुपचाप, अपने काम में डूबा हुआ।

पर नीतू ने अब उससे शिकायत करना छोड़ दिया था।

उसने तय कर लिया कि वह अपनी ज़िंदगी में प्यार और खुशी खुद ढूँढेगी।

वह अब बदल चुकी थी। वह वही नीतू नहीं रही जो अजय से हर छोटी-सी बात पर उम्मीद बाँधती थी। उसने समझ लिया था कि प्यार माँगा नहीं जाता, यह तो महसूस कराया जाता है।

उसने अपनी ऊर्जा घर और बच्चों के साथ-साथ खुद पर लगानी शुरू की। नीतू ने अपनी पढ़ाई का पुराना शौक फिर से जगा लिया। ऑनलाइन क्लासेस करने लगी, छोटी-छोटी कहानियाँ लिखकर सोशल मीडिया पर डालने लगी।

लोग उसकी लिखी बातों से जुड़ने लगे, और धीरे-धीरे नीतू की एक पहचान बनने लगी।

बच्चों के स्कूल में भी उसकी सक्रियता बढ़ गई अक्सर टीचर्स उसे बुलाकर बच्चों के लिए कहानियाँ सुनाने को कहतीं।

मोहल्ले में औरतें उससे सलाह लेने आने लगीं—

"नीतू दीदी, आप हमेशा इतनी खुश कैसे रहती हैं?"

नीतू हल्की मुस्कान देती, पर भीतर से जानती थी कि यह खुशी उसने खुद अपने लिए गढ़ी है।

अब उसका सुख और खुशियां अजय पर निर्भर नहीं थी।

अजय कभी-कभी हैरानी से देखता कि नीतू पहले जैसी क्यों नहीं रही ना झगड़े, ना शिकायतें, ना उम्मीदें।

वह चुपचाप अपनी दुनिया में मग्न रहती, और अजय को महसूस होने लगा कि शायद वह कहीं पीछे छूट गया है।

पर नीतू को अब फर्क नहीं पड़ता था।

वह जान चुकी थी कि उसका अस्तित्व सिर्फ किसी के प्यार पर टिका नहीं है। वह खुद अपने लिए काफी है।

वह अपने बच्चों और अपने काम में इतनी मजबूत हो जाती है कि उसे अब किसी सहारे की ज़रूरत नहीं।

Monday, August 18, 2025

तुम और मैं ––एक रिश्ता

 तुम और मैं 

पहले भी मिले होंगे कहीं, 

अब मिलते ही एक रिश्ता जुड़ गया 

कभी भी न टूटने वाला 

तुमसे मिल कर खुद को पूरा होते पाया है 

तुमसे दूर खुद को बेचैन होते पाया है।


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं,

अब तो तुम जीवन का सार हो 

मेरा शृंगार हो 

मेरा और तुम्हारा साथ दीया और बाती सा है 

तुम्हारे बिना मेरा कोई मूल्य नहीं है।


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं,

अब सात जन्मों तक साथ हो गए 

विवाह के अटूट बंधन में बंध गए 

तुम हो तो मैं हूँ 

तुम बिन मैं शून्य हूँ।


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं,

अब मिले हो तो तुम में खुद को देखा 

बिल्कुल वैसे जैसे माँ अपने बच्चे में अपना बचपना देखती हैं 

तुम में मैं और मुझ में तुम इस तरह 

जैसे नदी मे धारा। 


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं, 

अब मिले हो साथ रहना मुझमें हमेशा 

जैसे साधक में साधना रहती है 

तुम्हारी आवाज की कशिश मेरी धड़कनो को बढ़ा देती है 

तुम अपनी आवाज से यूँ ही धड़कने बढ़ाते रहना। 


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं, 

तुम और मैं 

पहले भी मिले होंगे कहीं 

अब मिलते ही एक रिश्ता जुड़ गया 

कभी भी न टूटने वाला।।

ख्वाहिश

 तुम जो सोचते हो ना की बदल गई हूं मैं 

तो 

यकीन मानो तुम मेरी पहली और आखिरी  मुहब्बत हो 

और जब से मिले हो तुम 

मेरी पहली और आखिरी ख्वाहिश बन गए हो ।


हालात जरूर बदल गए हैं पर यकीन रखो 

मेरे चाहने का अंदाज ना बदला है ना बदलेगा 

माना कि मैं गुस्से में कह जाती हूं 

बहुत कुछ पर 

यकीन रखो 

तुम मेरे रात का ख्वाब और सुबह की पहली ख्वाहिश हो।


तुम मुझसे दूर भी हो मेरे पास भी हो  

मेरी रूह भी हो मेरी जान भी हो 

मेरा दिल भी हो मेरा इश्क भी हो।


तुम जो सोचते हो ना की बदल गई हूं मैं

तो 

यकीन मानो तुम मेरी पहली और आखिरी  मुहब्बत हो 

और बन गए हो आख़िरी ख्वाहिश.....

बारिश

 अनीता को बारिश हमेशा से ही पसंद थी और अगर जब भी बारिश सुबह के समय होती तो वह भीग भी लेती छत पर जा कर। उसे बारिश में भीगना गाने सुनना बहुत पसंद था और साथ ही छत पर या घर के आंगन या बाहर कहीं पानी भर जाता तो वह नाव भी बना कर तैरा देती थीं और फिर दूर तक अपनी नाव को जाते हुए देखती थीं।

अनीता इसके लिए मायके में मां से अक्सर डांट खाती और सुनती भी कि कब तक यह बचपना तेरा चलेगा अनीता अब तो बड़ी हो जा ससुराल जाएगी तो हम लोगों को बात - बात पर सुनवाएगी बस तू। अनीता इस बात पर हमेशा अपनी मां से लड़ती कि वह कहीं नहीं जा रही यह घर उसका हैं और मां कहती पागल हो गई हैं तेरा अपना घर तेरे पति का घर होगा तेरा घर तो तेरा ससुराल होगा लड़की का मायका कभी उसका अपना घर हुआ हैं। मां कि इस बात पर अनीता हर बार कि तरह चिढ़ जाती और कहती ठीक है आप अपना घर अपने लाड़ले बेटे को दो मैं तो आपके लिए पराई हूं उस पर मां कहती तू क्या हर लड़की अपने मां - पिता के लिए पराई ही होती है इसमें मुंह फुलाने जैसी कोई बात नहीं हैं समझी।

कुछ समय बाद अनीता की शादी हो गई वह अब अपनी गृहस्थी में उलझती जा रहीं थीं उसका शादी के बाद का सफर बहुत सुन्दर तो नहीं रहा पर उसने कभी कोई शिकायत नहीं की अपने घर में इस उम्मीद में कि माँ का मानना है कि यही तुम्हारा अपना घर हैं अब यही रहना है। माँ कभी उसकी परिस्थिति नहीं समझेंगी धीरे-धीरे उसकी जिंदगी बदतर होती जा रहीं थीं उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कहाँ जाये किस्से कहें फिर एक दिन वह हिम्मत करके उस घर से निकल ली बिना इस बात के परवाह किए कि कौन क्या सोचेगा , आगे क्या होगा , कौन उसके साथ खड़ा होगा और सबसे बड़ा प्रश्न कहाँ जायेगी उसके पास कुछ भी नहीं फिर भी वह निकल ली सब छोड़ कर। अनीता अपने घर नहीं जाना चाहती थीं क्योंकि वह जानती थी मां वापस वही भेज देंगी उसे समझा कर उसने अपनी मौसी की बेटी को फोन किया सारी बातें उसे बतायी और यह भी बताया की वह घर नहीं जाना चाहती वह क्या करे वह उससे बड़ी थी उसने कहा तुम यहाँ मेरे पास आ सकती हो कभी भी पर अभी तुम्हें अपने घर जाना चाहिए क्योंकि नहीं तो तुम्हारे ससुराल वाले तुम्हारे चाल चलन पर उँगली उठाएंगे अनीता ने कहा पर दीदी मुझे अब फर्क़ नहीं पड़ता। उन्होंने कहा अभी तुम घर जाओ अगर मौसी जबरदस्ती तुम्हें वापस घर भेजे तो तुम मेरे पास आ जाना बिना कुछ सोचे। अनीता दीदी की बात मान वह घर चली गई। 

अनीता ने घर पहुंच कर सारी बात अपनी मां को बताई पर जैसा उसने सोचा उसका उल्टा हुआ माँ ने गले लगाते हुए बोला बेटा यह तुम्हारा अपना घर है और अब वहाँ वापस जाने की कोई जरूरत नहीं। मां की बातें सुन अनीता के आँखों में आँसू आ गए और वह माँ से लिपट कर खूब रोई।

आज सुबह से बारिश हो रही थी अनीता को आज बारिश बेचैन कर रही थीं आज वह बारिश में भीगी नहीं बल्कि हाथ फैलाकर बारिश की बूंदों को पकड़ना चाह रहीं थीं। तभी पीछे से माँ की आवाज आती हैं आज भिगोगी नहीं उसने पलट कर माँ की तरफ देखा पर कुछ बोली नहीं और फिर आसमान की तरफ देखने लगी दूर आसमान में बादल गरज रहे थे। उसे लगा, जैसे वे भी उसकी बेचैनी समझते हों।

        अगले दिन बारिश रुक चुकी थीं पर हवा में नमी थीं अनीता छत पर गई आज भी बादल आसमान में थे छत पर टहलते हुए उसकी नज़रे पड़ोस के पुराने घर पर गई जहां उसका पुराना दोस्त राहुल रहता था। वह सोच ही रही थी आज कितने सालों बाद छत पर आयीं हूँ पहले जब भी आती थी तब राहुल ऊपर मिलता था कैसे -कैसे मुँह बनाता था कभी -कभी जब पतंग उड़ाता तो उसके छत पर पतंग नीचे कैसे लाता था सब बातें पुरानी हो चुकी थी सब अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त हो चुके हैं। अभी अनीता अतीत में खोयी ही थीं कि पीछे से आवाज़ आती हैं 

"तुम अब भी बारिश में भीगती हो?" अनीता चौंकी, पीछे पलट कर देखती हैं सामने राहुल होता है वह कहना तो चाहती थीं कि अभी वह उसी को याद कर रहीं थीं पर कह न पायी और राहुल से पूछती हैं  "तुम्हें कैसे पता?" और तुम यहाँ कैसे? तुम तो दिल्ली में रहते हो न।

राहुल मुस्कराते हुए आराम से एक साथ कितने सवाल कर रही हो? पहले सवाल तुम्हें कैसे पता का जवाब देता हूं।

कैसे भूल सकता हूँ कि तुम बचपन में मेरी बनाई नाव छीनकर दौड़ जाया करती थी।"

दोनों हंस पड़े, लेकिन उस हंसी में कहीं बीते वक्त की मिठास भी थी और एक अजीब-सी कसक भी। फिर राहुल ने बताया कि वह दिल्ली में नौकरी करता, वहाँ बस नहीं गया और यहां उसका अपना घर है तो वह यहां आ सकता।

अनीता ने महसूस किया कि उससे बात करते हुए उसका मन हल्का हो रहा है जैसे कोई उसके अंदर की बेचैनी को बिना कहे ही समझ रहा हो।

शाम को हल्की बारिश फिर से शुरू हो गई, अनीता आंगन में बैठी चाय पी रही थी, तभी राहुल उसके घर आया। उसके हाथ में पुरानी लकड़ी का एक डिब्बा था, जो शायद नमी से भीग चुका था। वह डिब्बा अनीता की तरफ बढ़ाते हुए "यह तुम्हारे लिए है।"

अनीता ने पूछा क्या है इसमें राहुल बोला खोल कर देखो  अनीता ने डिब्बे को सावधानी से खोला उसमें रखी हुई छोटी-छोटी कागज़ की नावें थीं, जिन पर धुंधली स्याही से उसका नाम लिखा था।

"यह... यह तुम्हारे पास कैसे?" अनीता ने हैरानी से पूछा।

राहुल हल्का-सा मुस्कुराया, लेकिन आंखें गीली हो गईं।

"जब तुम मेरे से छीनी नावें पानी में छोड़ती थी…  तो मैं चुपके से उन्हें पकड़कर रख लेता था और इकट्ठा करता संभाल कर क्योंकि मुझे लगता था, एक दिन यह तुम्हें लौटा दूंगा।" अनीता हंस पड़ी, "ये कैसी बचपने वाली बात है!"

राहुल की आवाज़ भारी हो गई, "बचपना ही तो एकमात्र चीज़ है जो मुझे अभी तक बचा के रखे हुए है… वरना मैं तो… शादीशुदा भी हूं और… तलाक की कगार पर खड़ा हूं।"

अनीता चुप रह गई। बाहर बारिश तेज हो रही थी।

राहुल ने धीमे से कहा - पता है अनीता, हम दोनों शायद अलग-अलग वजहों से अकेले हैं… लेकिन ये बारिश… शायद हमें फिर से जोड़ सकती है। अब तक बारिश तेज रफ्तार पकड़ चुकी थीं और अनीता का चाय का कप भी खत्म हो चुका था। अनीता ने राहुल को वहां अकेला छोड़ अंदर आ

गई और अपना कमरा बंद कर लेट गई। अनीता के मन में सैकड़ों सवाल चल रहे थे राहुल को लेकर। अनीता उस रात देर तक सो नहीं पाई। राहुल की बातें, उसका भीगा चेहरा, और वह कागज़ की नावें सब उसके मन में जैसे लहरें मार रहे थे।

मां की बातें याद आईं "लड़की का घर तो उसका ससुराल होता है" लेकिन  फिर अनीता सोचती अगर लड़की का ससुराल ही घर न लगे, तो?

अगले सुबह बारिश थम चुकी थी। हवा में ठंडक थी, लेकिन अनीता के भीतर का मौसम अब भी भारी था। वह छत पर गई, वहां राहुल पहले से खड़ा था। हाथ में दो कागज़ की नावें थीं। राहुल कहता है आज हम दोनों नाव छोड़ेंगे," राहुल ने कहा, "शायद यह हमें बता दें कि हमें कहां जाना है।" फिर दोनों ने नावों को पानी में छोड़ा। एक नाव धीरे-धीरे दूर चली गई, दूसरी बीच रास्ते में फंस गई। अनीता ने देखा और हल्की-सी मुस्कान के साथ कहा, "शायद यही फर्क है हमारे रास्तों में।" राहुल ने अनीता की आंखों में देखा, "और अगर मैं उस फंसी हुई नाव को धक्का दे दूं, तो?" अनीता ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस पीछे हट गई और सीढ़ियां उतरने लगी। बारिश फिर शुरू हो गई थी और धीरे-धीरे तेज़ हो रही थीं, जैसे आसमान भी उनके जवाब का इंतज़ार कर रहा हो। नीचे पहुंचकर उसने खिड़की से झांककर देखा राहुल अब भी पानी में झुका अपनी नाव को आगे बढ़ा रहा था… और अनीता सोच रही थी क्या मैं भी एक दिन लौटकर इस नाव को अपना रास्ता दूंगी, या इसे यूं ही बह जाने दूंगी? तभी हवा के साथ हल्की-सी नमी उसके चेहरे को छू गई जैसे किसी ने चुपके से उसकी हथेली थाम ली हो। उसे याद आया, बचपन में वह हर नाव को देखकर सोचा करती थी कि वह कहां जाएगी, किन लहरों से टकराएगी, किन किनारों पर टिकेगी।

आज पहली बार उसे एहसास हुआ कि इंसान भी नावों जैसा ही होता है अपनी मंज़िल चुनने का हक शायद हर किसी को नहीं मिलता। राहुल उस दिन के बाद उससे मिलने नहीं आया। लेकिन हर बारिश में, आंगन में पानी भरते ही अनीता अब भी एक नाव छोड़ देती  बिना नाम लिखे, बिना मंज़िल तय किए। शायद कहीं, किसी मोड़ पर, वही नाव राहुल तक पहुंच जाए और अगर न भी पहुंचे, तो कम से कम बारिश को पता होगा कि उसने एक बार फिर किसी का दिल हल्का कर दिया है।

Thursday, August 7, 2025

आत्म सम्मान

 अभिषेक एक छोटे से शहर का पढ़ा लिखा लड़का था, पढाई में अव्वल तो नहीं पर सामान्य ही था पर जो भी करता खुद की मेहनत से हासिल करने का ज़ज्बा रखने वाला युवक था घर से बहुत पैसे वाला नहीं था पर घर पर खेती अच्छी थीं। इसलिए उसकी पढाई चलती रही धीरे धीरे उस छोटे से शहर से स्कूल की शिक्षा लेने के बाद कॉलेज की पढाई उसने बड़े शहर से की और कहा जाता है यह बड़े शहर सपने बहुत बड़े दिखाता है वही अभिषेक के साथ भी हुआ उसने भी कॉलेज खत्म होते हुए एमबीए करने का निश्चय किया घर वालों ने उसका साथ दिया और उसने एमबीए के लिए कोचिंग में दाखिला ले कर और मन लगा कर तैयारी की वह पढाई में तेज न होने की वजह से उसको सफलता नहीं मिली पर उसने हार न मान कर दूसरे साल के लिए तैयारी कर ली और उसका एडमिशन हो गया बहुत अच्छा कॉलेज तो नहीं मिला पर इस बार जो मिला उसने ले लिया और मेहनत से ठीक ठाक नंबर से एमबीए कर लिया और उसका कोर्स खत्म होते होते बड़ी मुश्किल से साल के अंत मे एक नौकरी भी मिल गई। जिसकी खबर सुन अभिषेक के घर वाले बहुत खुश थे पर अभिषेक जानता था कि उसकी यह नौकरी बस नाम की है जल्दी ही मेहनत करके उसे एक अच्छी नौकरी करनी है और वह खूब मेहनत से नौकरी करने लगा।

इसी बीच उसकी शादी उसके शहर की लड़की नेहा से घरवालों ने तय कर के करा दी। नेहा शहर के गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल में पढ़ाती थीं यह उसकी सरकारी नौकरी थीं। धीरे-धीरे दोनों की जिंदगी में रफ़्तार पकड़ ली दोनों नौकरी करते हुए अपनी गृहस्थी चला रहे थे साथ ही नयी गृहस्थी बसा रहे थे दोनों ही धीरे-धीरे घर का कुछ न कुछ नया समान खरीदते रहते थे। इसी बीच अभिषेक की नौकरी चली जाती हैं कारण विदेश में रिसेशन मंदी का दौर आ गया था सभी की नौकरी छूट रही थीं।

अभिषेक की नौकरी जाने और नयी नौकरी ना मिलने से नेहा के ऊपर पूरे घर का खर्चा आ गया था पर वह बहुत समझदार और धैर्यवान लड़की थी उसने बहुत अच्छे से घर - बाहर और अभिषेक को सम्भाल लिया था। कुछ समय के बाद भी अभिषेक को नौकरी न मिलने के बाद दोस्त, रिश्तेदार और समाज पीठ पीछे बातें बनाने लगा और किसी न किसी बहाने से उसको सुनाते और बेइज्जत करते पर नेहा हमेशा अभिषेक को परवाह न करने को बोलती। वह अभिषेक पर कभी कोई दबाव नहीं डालती।

उधर नेहा को रोज उसको उसके काम पर जाता देख अभिषेक दुखी होता या खुद पर खीज निकालता, कभी कभी वह भीतर ही भीतर टूटता पर दूसरे ही पल वह खुद को समझाते हुए कहता यह समय क्षणिक हैं और फिर वह पूरे साहस से वापस खड़ा होता पर खाली घर में बैठना उसके आत्मा विश्वास को कमजोर करता था।

एक दिन उसे अपना खुद का काम करने का सूझा और उसकी समझ ने उसे एक चाय-कॉफी की छोटी सी दुकान खोलने का विचार आया उसने तुरंत एक कार्ट खरीदी। उसके इस विचार पर उसके खुद के दोस्त पीछे हटने लगे कुछ ने बातचीत तक बंद कर दी कुछ ने बहुत समझाने की कोशिश की कि एक एमबीए पास सड़क पर चाय बेचेगा लोग क्या कहेंगे कैसी बातें बनाएंगे।

अभिषेक ने कहा लोगों का काम है कहना और मेरा काम है जीना वह भी आत्मसम्मान के साथ।

शाम के समय जब नेहा वापस घर आयीं तो अभिषेक ने उसे बताया कि वह एक चाय कॉफी का कार्ट खरीद लाया है और जल्दी ही वह उसे सड़कों पर लगना शुरू करने वाला है।

आगे अभिषेक ने कहा पैसे जरूर कम हैं पर आत्मा विश्वास पूरा हैं और कुछ भी हो मुझे आत्मसम्मान के साथ ही जीना है। शायद मेरे इस काम से तुम्हारी इज्ज़त घट जायेगी पर मेरा आत्म सम्मान जीवित रहेगा।

नेहा की आँखें भर आईं। उसने अभिषेक का हाथ थामा और कहा - “तुमने आज जो फैसला लिया है, वो तुम्हारी डिग्री से कहीं बड़ा है। मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

अगले दिन अभिषेक का कार्ट तैयार हो गया सड़क पर चाय कॉफी के लिए। अभिषेक की कार्ट पर चाय और कॉफी के साथ-साथ मोटिवेशनल बातें भी मिलती थीं। हर कप पर एक मोटिवेशनल कोट लिखा होता — “छोटा काम नहीं होता”, छोटी सोच होती हैं। “काबिल बनो, काम खुद बोलेगा”।

धीरे-धीरे उसकी कार्ट एक ब्रांड बन गई — "Self Respect Tea & Coffee"। शहर के लोग, ऑफिसर्स, स्टूडेंट्स वहाँ आने लगे। धीरे-धीरे महीने बीते साल भी बीत रहे थे और अभिषेक की कार्ट अब ब्रांडेड हो चुकी थीं लोग उसके पास फ्रेंचाइजी के लिए आने लगे।

इसी बीच एक दिन एमएनसी के सीईओ को इसके कार्ट और मोटिवेशनल बातों का पता चला वह भी उसकी कार्ट पर चाय पीने के बहाने पहुंचा।

अभिषेक की बातें उसकी सोच को सुनकर उस सीईओ ने अभिषेक को अपने लीडरशिप ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया और अपनी यहां हायर करने की बात की। उसकी बात सुनकर अभिषेक की पलके भीग गई। 

कुछ वर्षों में अभिषेक एक मोटिवेशनल स्पीकर बन गया - हर सेशन में कहता:


“जब आत्मसम्मान गिरने लगे, तो काम छोटा-बड़ा नहीं देखना चाहिए। मेहनत करो,पर झुको मत।।”

तारों वाली कोठी भाग 11

उत्कर्ष के उस मैसेज के बाद कोई मैसेज या कॉल नहीं आयीं धीरे धीरे कई दिन, हफ़्ते और महीने गुजरे लगे श्री उत्कर्ष को लेकर बहुत परेशान और उदास रहती। कभी खुद को समझाती पर फिर भी दिन भर में कई बार उत्कर्ष का लास्ट सीन चेक करती है फिर यह सोचती उस के पास दुनिया के लिए टाइम है, व्हाट्सएप के लिए टाइम है, फेसबुक के लिए टाइम है पर मुझे मैसेज करने या मुझसे बात करने के लिए टाइम नहीं है फिर वह खुद से ही सवाल करती कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो उन्होंने मुझे मैसेज करना अचानक बंद कर दिया उस दिन तो जब बात हुई थी आखरी बार तब तो कहते थे कि आप मेरे हबीब हैं आपके लिए तो मैं दिन रात इंतजार कर सकता हूं फिर अचानक से बदल क्यों गए इसी बीच श्री के हसबैंड अभिषेक का ट्रांसफर हो जाता है और परेशान जाती है क्योंकि उसका ट्रांसफर और दूर हो गया था अपने ट्रांसफर से बहुत ज्यादा परेशान थी फिर एक दिन उसने उत्कर्ष को मैसेज किया कि मैं जानती हूं आपने मुझे ऐसे ही महिला समझा आखिर मैं शहर से बाहर थी मेरा आपका क्या साथ हो सकता था जब चाहे तब आपने मुझसे मिल नहीं सकते थे और ना ही इस रिश्ते का कोई भविष्य होता इसलिए आपने मुझसे इस संबंध को आगे बढ़ाना उचित नहीं समझा आपके लिए एक और खुशखबरी मैं आपसे अब और दूर जा रही हूं मेरा ट्रांसफर हो गया है और मैं वहां जा रहा हूं थोड़ी देर बाद उत्कर्ष ने उस मैसेज को पढ़ा और रिप्लाई किया कि आप मुझे गलत समझ रही है ऐसा कुछ नहीं आपके और मेरे शहर के बीच की दूरी कोई दूरी नहीं है मैं जब चाहूंगा तब आपसे आकर मिल सकता लेकिन मुझे लगा कि मैं कहीं आपकी लाइफ में जबरदस्ती तो नहीं आ रहा हूं बस इसीलिए खुद को रोक लिया था पर शायद आपने मुझे गलत समझ लिया है और आपके ट्रांसफर से मुझे खुशी नहीं दुख हो रहा इस मैसेज को उत्कर्ष ने श्री को सेंड कर दिया मैसेज देखने के बाद श्री ने कोई जवाब नहीं दिया और उसके बाद फिर कई दिनों तक कोई मैसेज न उत्कर्ष ने श्री को किया ना श्री ने उत्कर्ष को लेकिन कहते हैं ना शायद ईश्वर को यह मंजूर नहीं था और अभिषेक का ट्रांसफर कैंसिल हो गया और अब उनका ट्रांसफर उत्कर्ष के शहर में कर दिया गया यह खबर सुनने के बाद श्री बहुत खुश थीं क्योंकि वह अपनी मां के पास जा रही थी और यह भी जानती थी कि उसकी मां को उसकी बहुत अधिक जरूरत है। इसी बीच श्री ने अपने ट्रांसफर की खबर उत्कर्ष को मैसेज से बतायी जिसके बाद उत्कर्ष का जवाब आता है यह तो बहुत अच्छी खबर इसके आगे कुछ भी नहीं लिखता और फिर कोई मैसेज नहीं आता कि कब आ रही हो, कहां रहेंगी, क्या कुछ भी नहीं इस बात को फिर से दिन और महीनों में तब्दील हो जाते दिवाली आने वाली थी धनतेरस की रात 12:00 बजे उत्कर्ष का हैप्पी दिवाली मैसेज आता है। श्री को यह मैसेज देखकर थोड़ा अचंभा होता है कि अचानक मुझे यह दिवाली का विश क्यों करना है फिर भी उस ने सेम टू यू कह मैसेज किया और साथ में दिवाली का पिक्चर मैसेज सेंड कर देती है और साथ में यह भी सूचना दे देती है कि वह अपने सामान के साथ उनके शहर में शिफ्ट हो गई उसके बाद फिर दिन और हफ्तों तक उत्कर्ष से कोई बात नहीं होती उसके बाद दिसंबर आता है जब उत्कर्ष का जन्मदिन होता है इस बार श्री उत्कर्ष को जन्मदिन की बधाई नहीं देती पूरा दिन बीत जाता है पूरी रात भी बीत जाती है 24 घंटे बाद श्री एक मैसेज उत्कर्ष को करती है बिलेटेड हैप्पी बर्थडे इसे देखकर उत्कर्ष तुरंत श्री को जवाब देता मोहतरमा आपकी बर्थडे विश का मैं कल रात 12:00 बजे से इंतजार कर रहा हूं और आपने आज विश किया मैंने पूरा दिन आपका इंतजार किया लेकिन आपने मुझे विश नहीं किया। उसके बाद उत्कर्ष बहुत-बहुत शुक्रिया का मैसेज करता हैं यqह बात इतनी ही होकर खत्म हो गई इसके बाद उत्कर्ष का जवाब श्री ने देना उचित नहीं समझा उसके बाद फिर कुछ दिनों तक कोई बात नहीं हुई लेकिन अबकी बार यह दिन हफ्तों और महीनों में नहीं बदले एक दिन रात को 12:00 बजे श्री ने उत्कर्ष को मैसेज लिखा मुझे आपसे बात करनी है यह मैसेज उत्कर्ष ने उस दिन तो नहीं देखा दूसरे दिन जरूर देखा और मैसेज का जवाब दिया गुड मॉर्निंग माफ कीजिएगा मेरे कुछ स्वास्थ्य अच्छा नहीं था इसलिए रात को जल्दी सो गया और आपका मैसेज नहीं देख पाया जैसे ही अभी आपका मैसेज देखा मैंने आपको तुरंत रिप्लाई किया जी बताइए क्या बात करनी है। 
                                          क्रमश......

Friday, August 1, 2025

तुम और मैं

 तुम गलत मैं सही थीं 

तुम झूठे मैं सच्ची थीं


प्यार तुम्हारा झूठा और मेरा सच्चा था,

वादें तुम्हारे झूठे और मेरे सच्चे थे,

तुम्हारे कसमें वादे सब धोखा था,

तुम्हारी हर बात में छलावा था।


क्यों आए थे जब तुम झूठ ही थे तो,

आए थे प्यार देने और नफ़रत भर कर गए हो, 

तुम्हारी मुस्कान में चाल छुपी थीं,

तुम्हारी हर बात झूठी थीं।


अब तो नफ़रत का भी रिश्ता नही है तुमसे,

भूल चुकी हूं अब तुमको पूरी तरह से,

याद है भरोसा किया खुद से ज्यादा तुम पर,

पहली बार धड़कने तेज हुई थी तुम्हारे करीब आने पर।


अपना मान कर इश्क ए इज़हार किया था,

रूह के हर हिस्से से तुमसे ही प्यार किया था,

ऐसा छोड़ा की संभाल भी ना पाए खुद को,

बिखरे ऐसे की संवर भी ना पाए कभी हम।


मैंने तो हर रोज़ दुआओं में तुझे मांगा,

तेरे बिना खुद को अधूरा समझा,

पर तूने क्या किया,

मुझे ही मेरी मोहब्बत से जुदा किया।


तुम गलत मैं सही थीं

तुम झूठे मैं सच्ची थीं।।

शिक्षक दिवस

 शिक्षक दिवस की सभी को अनंत शुभकामनाएं आप सबके जीवन की पहली शिक्षिका तो माँ हैं पर दूसरी शिक्षिका या शिक्षक स्वयं जिंदगी है बहुत कुछ सिखाती ...