अलमारी खोलते ही वीना की नज़र मेहरून सिल्क की साड़ी पर जा पड़ी। मुलायम, नर्म, पर आज पूरे बाईस साल बाद भी बिल्कुल नयी जैसी ही थीं उसने सम्हालते हुए हाथों में उठाई और शीशे के सामने खड़े होकर कंधे पर डालती है और अभी खुद को निहार ही रहीं थीं कि जैसे वह साड़ी बोल पड़ी हो— "याद है वीना, यही साड़ी तुमने अपनी शादी की पहली सालगिरह पर पहनी थी। राज ने कितनी तारीफ़ की थी उस दिन तुम्हारी।" उसकी नज़रे उस दिन तुम पर से हट ही नहीं रहीं थीं।
वीना मन ही मन मुस्कुराई, पर मुस्कान के पीछे एक गहरी आह थी। अब राज की आँखों में वह चमक कहाँ रह गई सालगिरहें अब बस कैलेंडर की तारीख़ भर रह गई थीं।
साड़ी की तहों को खोलते हुए उसे माँ की बातें याद आईं—
"बिटिया, साड़ी सिर्फ़ कपड़ा नहीं होती, यह औरत का आंचल, उसका सहारा, उसकी पहचान होती है।"
वह चुपचाप आईने के सामने खड़ी रही। साड़ी देखते ही जैसे किसी और ज़माने की वीना लौट आई हो—सपनों और उम्मीदों से भरी। मगर फिर आईना सच दिखा गया—थकी आँखें, चुप्पी से भरे होंठ और कंधों पर ज़िम्मेदारियों का बोझ। पर इस बार वीना ने अपनी साड़ी के पल्लू को कसकर थामा तभी उसकी आँखों से छलका आँसू चुपचाप गिरकर उस मेहरून साड़ी में कहीं समा गया।
एक बार फिर साड़ी बोल उठी—
वीना मैंने तुम्हारी हँसी भी देखी है और तुम्हारे आँसू भी… तुम्हारी हर चुप्पी मेरी हर तह में दर्ज है।
वीना ने बिना सोचे समझे फौरन साड़ी तह कर अलमारी में रख दिया। वीना आज बहुत उलझ गई थीं कहीं न कहीं उस मेहरून साड़ी में, पूरे दिन उलझने के बाद उसने तय कर लिया था—कल वह यही साड़ी पहनकर बाहर जाएगी, मगर इस बार अपनी खोई हुई हँसी को ढूँढने नहीं बल्कि खुद को, खुद के वजूद को और खुद की खुशियों को।
वीना के इस कदम से इतना तो तय है कि हर साड़ी के पीछे छिपी कहानी, एक दिन औरत को उसकी पहचान वापस दिला सकती है।
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