Sunday, September 7, 2025

शिक्षक दिवस

 शिक्षक दिवस की सभी को अनंत शुभकामनाएं आप सबके जीवन की पहली शिक्षिका तो माँ हैं पर दूसरी शिक्षिका या शिक्षक स्वयं जिंदगी है बहुत कुछ सिखाती हैं, बहुत कुछ समझाती है पर इम्तिहान लेने के बाद ठोकर लगने के बाद बाकी सभी गुरु या शिक्षक पहले सीखाते है फिर इम्तिहान लेते हैं एक माँ है जो कभी इम्तिहान नहीं लेती अपने बच्चे का वह कभी अपने बच्चे को गिरने नहीं देती, हाथ थामे चलती हैं, वक्त की आँधी हो या कोई भी परीक्षा एक माँ ऐसी हैं जो साथ खड़ी रहती है।

फिर आते है गुरु, शिक्षक और शिक्षिकाएं जो सिखाते भी है ,समझाते भी है, कुम्हार की तरह थाप भी लगाते है सब कुछ करते है साम, दाम, दण्ड और भेद सभी को अपनाते हैं और फिर इम्तिहान भी लेते हैं जिससे सबक जीवन पर्यंत याद रहे।

शिक्षक दिवस मात्र शिक्षकों तक सीमित नहीं है क्योंकि जीवन में आए हर अच्छे-बुरे व्यक्ति जो हमे अच्छा बुरा सबक देते हैं वह शिक्षक की भूमिका का ही निर्वाहन करते हैं और हमे आजीवन उनका कृतज्ञ रहना चाहिए।

शिक्षक दिवस का उद्देश्य अपने जीवन में आए सभी शिक्षकों का आभार प्रकट करना और उनके प्रति हमारे मन में स्नेह और आदर को जीवंत रखना है।

वर्तमान समय में शिक्षक का स्थान वह नहीं रहा जो पहले हुआ करता था। आज शिक्षक भी बहुत अधिक धन उपार्जन की विचारधारा के हो गए हैं उनको शिष्य से या उसके भविष्य से बहुत अधिक सरोकार नहीं रहता। (अपवाद की बात अलग है) आज के शिष्य भी पहले की भाँति नहीं रहे उनके मन में भावना है हमारे पापा से फीस लेती है तो पढ़ाएंगे ही कौनसा एहसान कर रहे है और शिक्षक भी धन उत्पत्ति का माध्यम ढूंढते रहते हैं।

यह फीस तो हमारे माता पिता भी देते थे पर यह बातें न ही हमारे समक्ष की गई ना ही कभी हमारे संज्ञान में लायी गयी किन्तु आज कल के माता पिता सभी कुछ बच्चों को बताते है और साथ ही शिक्षक के विषय में उल्टी बात करते हैं जिसके कारण बच्चों में अपने गुरु के प्रति आदर का भाव उत्पन्न नहीं हो पाता।

सच बात तो यह ही है कि न वह गुरु रहे न वह शिष्य और ना ही वह गुरु शिष्य परंपरा रही हैं। सभी अपने अपने विचारों को रखते हैं। गुरु के प्रति आदर सम्मान का भाव कहीं खो गया हैं और दुःख की बात यह हैं कि आज न तो ज्ञान देने वाले गुरु द्रोणाचार्य हैं और न ही अंगूठा देने वाला एकलव्य ही बचा है।

आज नए व्यापारी शिष्य और शिक्षक बचे है जिसमें आज के शिष्य के मन शिक्षक के प्रति लेश मात्र भी आदर नहीं है।

इन सब का कारण हम सभी है कहीं न कहीं क्योंकि न तो शिक्षा, न ही शिक्षक और न उनके माता-पिता किसी के भी मन में सम्मान को भावनायें नहीं है।

दुःखद और शोचनीय दशा हैं, गुरु का सम्मान हम सभी को करना चाहिए। यही सच्चे अर्थों में शिक्षक दिवस मनाने का तरीका है।

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शिक्षक दिवस

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