Monday, August 18, 2025

तुम और मैं ––एक रिश्ता

 तुम और मैं 

पहले भी मिले होंगे कहीं, 

अब मिलते ही एक रिश्ता जुड़ गया 

कभी भी न टूटने वाला 

तुमसे मिल कर खुद को पूरा होते पाया है 

तुमसे दूर खुद को बेचैन होते पाया है।


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं,

अब तो तुम जीवन का सार हो 

मेरा शृंगार हो 

मेरा और तुम्हारा साथ दीया और बाती सा है 

तुम्हारे बिना मेरा कोई मूल्य नहीं है।


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं,

अब सात जन्मों तक साथ हो गए 

विवाह के अटूट बंधन में बंध गए 

तुम हो तो मैं हूँ 

तुम बिन मैं शून्य हूँ।


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं,

अब मिले हो तो तुम में खुद को देखा 

बिल्कुल वैसे जैसे माँ अपने बच्चे में अपना बचपना देखती हैं 

तुम में मैं और मुझ में तुम इस तरह 

जैसे नदी मे धारा। 


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं, 

अब मिले हो साथ रहना मुझमें हमेशा 

जैसे साधक में साधना रहती है 

तुम्हारी आवाज की कशिश मेरी धड़कनो को बढ़ा देती है 

तुम अपनी आवाज से यूँ ही धड़कने बढ़ाते रहना। 


तुम और मैं 

पहले भी मिलें होंगें कहीं, 

तुम और मैं 

पहले भी मिले होंगे कहीं 

अब मिलते ही एक रिश्ता जुड़ गया 

कभी भी न टूटने वाला।।

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