नीतू की शादी को दस साल होने वाले है वह अब दो बच्चों की माँ भी बन चुकी हैं और अजय के साथ अपनी गृहस्थी भी बसा चुकी है पर वह जिस प्यार की तलाश में अजय के साथ शादी के बंधन में बंधी थी वह प्यार शादी के केसाल अन्दर कहाँ काफूर हो गया नीतू को पता न चला। ऐसा नहीं की नीतू और अजय की लव मैरिज हैं दोनों की अरेंज मैरिज हुई बस शादी तय होने और शादी होने के बीच साल भर का समय मिला जिससे दोनों को एक दूसरे के साथ समय बीताने का समय मिल गया इसी एक साल में अजय को नीतू से प्यार भी हो गया जिसका इजहार भी अजय ने नीतू से किया और नीतू को जो चाहिए था वह मिल गया। नीतू अब अजय के रंग में खुद को रंगने लगी थी। धीरे-धीरे दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था। तभी दोनों की शादी हो गयी। नीतू भी हर लड़की की तरह ही शादी के सपने संजोये हुए विदा हो अजय के साथ अपने ससुराल आ गयी। नीतू और अजय के बीच सब अच्छा चल रहा था। पता नहीं कब कैसे उनके बीच की छोटी- छोटी लड़ाईयां झगड़ों और बहस में बदलने लगी।
शादी के एक साल तक सब अच्छा चला धीरे -धीरे नीतू और अजय की छोटी-छोटी नोकझोंक प्यार से सुलझ जाती थीं, पर अब वही नोकझोंक तीखे झगड़ों में बदलने लगी।
अजय ऑफिस की जिम्मेदारियों और परिवार की भाग-दौड़ में इतना उलझ गया कि नीतू से बातें करना, उसके साथ वक्त बिताना, उसे महसूस कराना कि वह अहम है यह सब भूल गया।
नीतू अक्सर रात को चुपचाप छत पर चली जाती, तारों की ओर देखती और सोचती "क्या यही वह प्यार है जिसकी उसे तलाश थी? वह प्यार जो शादी से पहले अजय की आँखों में झलकता था उसके लिए पर अब कहाँ खो गया?"
बच्चों और घर की जिम्मेदारियों ने नीतू को माँ और बहू तो बना दिया, पर जो प्यार और अपनापन वह चाहती थी वह उसे नहीं मिला। धीरे-धीरे वह अकेली होती जा रही थी। वह चाहती थी कि अजय कभी उसकी मन की सुने, उसके पास बैठकर बिना वजह बातें करे, उसकी थकान देख कर बस उसका हाथ थाम ले पर अजय का जवाब अक्सर यही होता "इतनी छोटी-छोटी बातों के लिए क्यों लड़ती हो? सबके घर में ऐसा ही होता है।"
धीरे-धीरे नीतू को लगने लगा कि वह अजय के लिए सिर्फ एक जिम्मेदारी बनकर रह गई है, न कि वह लड़की जिससे वह कभी बेइंतेहा प्यार करता था।
यहीं से नीतू के भीतर की तलाश शुरू होती है तलाश उस अपनेपन की, उस स्नेह की, उस सहारे की जो उसके जीवन में अब कहीं नहीं था।
नीतू अब समझने लगी थी कि अजय से उम्मीदें करना उसे और भी दुख दे रहा है।
रात-रात भर जागकर वह अपने भीतर सवाल करती "क्या सचमुच मेरी ज़िंदगी का अर्थ सिर्फ बच्चों और घर तक ही सीमित है? मैं कहाँ हूँ इन सबमें ? मैं कही खो गई हूँ ?"
धीरे-धीरे उसने अपने अकेलेपन को किताबों और लिखने में बदलना शुरू किया। जो भावनाएँ वह अजय से कह नहीं पाती थी, वह उन्हें डायरी में लिखने लगी। शब्द उसके हमसफ़र बन गए।
कभी वह घर की छत पर बैठकर बारिश को देखती, तो कभी बच्चों के सो जाने के बाद खिड़की के पास बैठकर चाय की चुस्कियों में खुद से बातें करती।
इन लम्हों में उसने पाया कि वह अब अधूरी नहीं है। उसके भीतर बहुत कुछ है जो बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहा है।
वह बच्चों की पढ़ाई में नई-नई कहानियाँ गढ़ने लगी, मोहल्ले की औरतों को तीज-त्यौहार पर सजने-संवरने के लिए प्रेरित करने लगी, और धीरे-धीरे लोगों ने नीतू को “नीतू भाभी” नहीं बल्कि “नीतू दीदी” के नाम से पहचानना शुरू कर दिया।
अजय अब भी वैसा ही था थका हुआ, चुपचाप, अपने काम में डूबा हुआ।
पर नीतू ने अब उससे शिकायत करना छोड़ दिया था।
उसने तय कर लिया कि वह अपनी ज़िंदगी में प्यार और खुशी खुद ढूँढेगी।
वह अब बदल चुकी थी। वह वही नीतू नहीं रही जो अजय से हर छोटी-सी बात पर उम्मीद बाँधती थी। उसने समझ लिया था कि प्यार माँगा नहीं जाता, यह तो महसूस कराया जाता है।
उसने अपनी ऊर्जा घर और बच्चों के साथ-साथ खुद पर लगानी शुरू की। नीतू ने अपनी पढ़ाई का पुराना शौक फिर से जगा लिया। ऑनलाइन क्लासेस करने लगी, छोटी-छोटी कहानियाँ लिखकर सोशल मीडिया पर डालने लगी।
लोग उसकी लिखी बातों से जुड़ने लगे, और धीरे-धीरे नीतू की एक पहचान बनने लगी।
बच्चों के स्कूल में भी उसकी सक्रियता बढ़ गई अक्सर टीचर्स उसे बुलाकर बच्चों के लिए कहानियाँ सुनाने को कहतीं।
मोहल्ले में औरतें उससे सलाह लेने आने लगीं—
"नीतू दीदी, आप हमेशा इतनी खुश कैसे रहती हैं?"
नीतू हल्की मुस्कान देती, पर भीतर से जानती थी कि यह खुशी उसने खुद अपने लिए गढ़ी है।
अब उसका सुख और खुशियां अजय पर निर्भर नहीं थी।
अजय कभी-कभी हैरानी से देखता कि नीतू पहले जैसी क्यों नहीं रही ना झगड़े, ना शिकायतें, ना उम्मीदें।
वह चुपचाप अपनी दुनिया में मग्न रहती, और अजय को महसूस होने लगा कि शायद वह कहीं पीछे छूट गया है।
पर नीतू को अब फर्क नहीं पड़ता था।
वह जान चुकी थी कि उसका अस्तित्व सिर्फ किसी के प्यार पर टिका नहीं है। वह खुद अपने लिए काफी है।
वह अपने बच्चों और अपने काम में इतनी मजबूत हो जाती है कि उसे अब किसी सहारे की ज़रूरत नहीं।
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