अभिषेक एक छोटे से शहर का पढ़ा लिखा लड़का था, पढाई में अव्वल तो नहीं पर सामान्य ही था पर जो भी करता खुद की मेहनत से हासिल करने का ज़ज्बा रखने वाला युवक था घर से बहुत पैसे वाला नहीं था पर घर पर खेती अच्छी थीं। इसलिए उसकी पढाई चलती रही धीरे धीरे उस छोटे से शहर से स्कूल की शिक्षा लेने के बाद कॉलेज की पढाई उसने बड़े शहर से की और कहा जाता है यह बड़े शहर सपने बहुत बड़े दिखाता है वही अभिषेक के साथ भी हुआ उसने भी कॉलेज खत्म होते हुए एमबीए करने का निश्चय किया घर वालों ने उसका साथ दिया और उसने एमबीए के लिए कोचिंग में दाखिला ले कर और मन लगा कर तैयारी की वह पढाई में तेज न होने की वजह से उसको सफलता नहीं मिली पर उसने हार न मान कर दूसरे साल के लिए तैयारी कर ली और उसका एडमिशन हो गया बहुत अच्छा कॉलेज तो नहीं मिला पर इस बार जो मिला उसने ले लिया और मेहनत से ठीक ठाक नंबर से एमबीए कर लिया और उसका कोर्स खत्म होते होते बड़ी मुश्किल से साल के अंत मे एक नौकरी भी मिल गई। जिसकी खबर सुन अभिषेक के घर वाले बहुत खुश थे पर अभिषेक जानता था कि उसकी यह नौकरी बस नाम की है जल्दी ही मेहनत करके उसे एक अच्छी नौकरी करनी है और वह खूब मेहनत से नौकरी करने लगा।
इसी बीच उसकी शादी उसके शहर की लड़की नेहा से घरवालों ने तय कर के करा दी। नेहा शहर के गवर्नमेंट गर्ल्स स्कूल में पढ़ाती थीं यह उसकी सरकारी नौकरी थीं। धीरे-धीरे दोनों की जिंदगी में रफ़्तार पकड़ ली दोनों नौकरी करते हुए अपनी गृहस्थी चला रहे थे साथ ही नयी गृहस्थी बसा रहे थे दोनों ही धीरे-धीरे घर का कुछ न कुछ नया समान खरीदते रहते थे। इसी बीच अभिषेक की नौकरी चली जाती हैं कारण विदेश में रिसेशन मंदी का दौर आ गया था सभी की नौकरी छूट रही थीं।
अभिषेक की नौकरी जाने और नयी नौकरी ना मिलने से नेहा के ऊपर पूरे घर का खर्चा आ गया था पर वह बहुत समझदार और धैर्यवान लड़की थी उसने बहुत अच्छे से घर - बाहर और अभिषेक को सम्भाल लिया था। कुछ समय के बाद भी अभिषेक को नौकरी न मिलने के बाद दोस्त, रिश्तेदार और समाज पीठ पीछे बातें बनाने लगा और किसी न किसी बहाने से उसको सुनाते और बेइज्जत करते पर नेहा हमेशा अभिषेक को परवाह न करने को बोलती। वह अभिषेक पर कभी कोई दबाव नहीं डालती।
उधर नेहा को रोज उसको उसके काम पर जाता देख अभिषेक दुखी होता या खुद पर खीज निकालता, कभी कभी वह भीतर ही भीतर टूटता पर दूसरे ही पल वह खुद को समझाते हुए कहता यह समय क्षणिक हैं और फिर वह पूरे साहस से वापस खड़ा होता पर खाली घर में बैठना उसके आत्मा विश्वास को कमजोर करता था।
एक दिन उसे अपना खुद का काम करने का सूझा और उसकी समझ ने उसे एक चाय-कॉफी की छोटी सी दुकान खोलने का विचार आया उसने तुरंत एक कार्ट खरीदी। उसके इस विचार पर उसके खुद के दोस्त पीछे हटने लगे कुछ ने बातचीत तक बंद कर दी कुछ ने बहुत समझाने की कोशिश की कि एक एमबीए पास सड़क पर चाय बेचेगा लोग क्या कहेंगे कैसी बातें बनाएंगे।
अभिषेक ने कहा लोगों का काम है कहना और मेरा काम है जीना वह भी आत्मसम्मान के साथ।
शाम के समय जब नेहा वापस घर आयीं तो अभिषेक ने उसे बताया कि वह एक चाय कॉफी का कार्ट खरीद लाया है और जल्दी ही वह उसे सड़कों पर लगना शुरू करने वाला है।
आगे अभिषेक ने कहा पैसे जरूर कम हैं पर आत्मा विश्वास पूरा हैं और कुछ भी हो मुझे आत्मसम्मान के साथ ही जीना है। शायद मेरे इस काम से तुम्हारी इज्ज़त घट जायेगी पर मेरा आत्म सम्मान जीवित रहेगा।
नेहा की आँखें भर आईं। उसने अभिषेक का हाथ थामा और कहा - “तुमने आज जो फैसला लिया है, वो तुम्हारी डिग्री से कहीं बड़ा है। मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
अगले दिन अभिषेक का कार्ट तैयार हो गया सड़क पर चाय कॉफी के लिए। अभिषेक की कार्ट पर चाय और कॉफी के साथ-साथ मोटिवेशनल बातें भी मिलती थीं। हर कप पर एक मोटिवेशनल कोट लिखा होता — “छोटा काम नहीं होता”, छोटी सोच होती हैं। “काबिल बनो, काम खुद बोलेगा”।
धीरे-धीरे उसकी कार्ट एक ब्रांड बन गई — "Self Respect Tea & Coffee"। शहर के लोग, ऑफिसर्स, स्टूडेंट्स वहाँ आने लगे। धीरे-धीरे महीने बीते साल भी बीत रहे थे और अभिषेक की कार्ट अब ब्रांडेड हो चुकी थीं लोग उसके पास फ्रेंचाइजी के लिए आने लगे।
इसी बीच एक दिन एमएनसी के सीईओ को इसके कार्ट और मोटिवेशनल बातों का पता चला वह भी उसकी कार्ट पर चाय पीने के बहाने पहुंचा।
अभिषेक की बातें उसकी सोच को सुनकर उस सीईओ ने अभिषेक को अपने लीडरशिप ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया और अपनी यहां हायर करने की बात की। उसकी बात सुनकर अभिषेक की पलके भीग गई।
कुछ वर्षों में अभिषेक एक मोटिवेशनल स्पीकर बन गया - हर सेशन में कहता:
“जब आत्मसम्मान गिरने लगे, तो काम छोटा-बड़ा नहीं देखना चाहिए। मेहनत करो,पर झुको मत।।”
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