Wednesday, September 30, 2020

ऐ ज़िन्दगी

 


ज़िन्दगी
थोड़ा सब्र कर
अभी पुराने ज़ख्म तो भर जाने दे
तू तो नए ज़ख्मों लिए खड़ी हैं।


ज़िन्दगी
थोड़ा वक्त दे
पुरानी यादों को भूलने का
तू तो नई कहानी बनाने को खड़ी हैं।


ज़िन्दगी
थोड़ा सुकून तो रख
अभी संभल जाने दे
तू तो किनारा ही छीनने को खड़ी हैं।


ज़िन्दगी
थोड़ा जो दिया प्यार
अभी उसे महसूस तो करने दे
तू तो जुदाई के लिए खड़ी हैं।

डॉ सोनिका शर्मा

Sunday, September 27, 2020

उलझता रिश्ता

 

कुछ ऐसी खास तो नहीं थी अर्जुन और प्रिया की पहली मुलाकात  बहुत रोमांटिक भी नहीं रही वह मुलाकात बस ऐसे ही जैसे लोग मिलते हैं और मिलकर चले जाते हैं कभी ना मिलने के लिए और शायद वापस दोबारा मिलने के लिए।
उस दिन प्रिया भी स्कूल से शाम के तकरीबन पांच साढ़े पांच बजे लौटी थीं। रिक्शे वाले भैया ने जिम्मेदारी निभाते हुए घर के गेट के सामने रोका और प्रिया भी उतर कर घर की ओर जा रहीं थीं कि तभी रिक्शे वाले भैया बोले बिटिया कल से थोड़ा जल्दी आएंगे तैयार रहना नहीं तो दूसरे स्कूल पहुंचने में देर हो जाती हैं। रिक्शे वाले भैया प्रिया और उसके साथ और बच्चों को स्कूल छोड़ दूसरे स्कूल के बच्चों को घर पहुंचाते थे। प्रिया के स्कूल की ब्वॉयज ब्रांच उसके स्कूल से कुछ ही दूरी पर थीं वह ब्रांच सुबह सात से बारह चलती थीं और प्रिया की साढ़े ग्यारह से साढ़े चार। प्रिया ने रिक्शेवाले भैया को ठीक है बोल कर वापस घर की ओर मुड़ी तभी एक लड़के ने प्रिया के सामने साइकिल रोक कर एक लड़के का नाम लेते हुए उसका पता पूछा था। उस लड़के का नाम शायद अभिषेक था और प्रिया ने भी उस लड़के से पूरी तफ्तीश करने के बाद यहीं कहा यहां कोई अभिषेक नहीं रहता हैं और बिना एड्रेस के कैसे घर ढूंढने आ गए बदले में उस लड़के ने कहा था स्कूल की कॉपी देनी जरूरी है इसलिए आया था तभी प्रिया की मम्मी अंदर से पिंकी (यह प्रिया के घर का नाम) तुम बाहर क्या कर रही हो यह कौन है? प्रिया ने भी बेपरवाही से मां को जवाब दिया मुझे क्या मालूम कौन है? किसी अभिषेक को पूछ रहा था वहीं बता रहे थे तभी मम्मी ने कहा अंदर चलो जिसे सुन बिना देरी प्रिया अन्दर आ गई और वह लड़का भी मौका देख कर खिसक लिया। उस लड़के के जाने की बाद उस दिन खूब डांट पड़ी थीं प्रिया को। डांट इस लिए पड़ी कि अब वह बड़ी हो रही है इस तरह सड़क चलते कोई भी लड़का बात करने लगे तो उसे वहां नहीं रुकना चाहिए। उस दिन समझ आया प्रिया को पहली बार की अब सब लड़को से बात नहीं करना। इससे पहले प्रिया की मम्मी ने कभी किसी से बात करने या दोस्ती के लिए नहीं टोका था शायद तब तक उनके लिए बच्ची थीं पर अचानक ऐसा क्या हुआ वह उस समय उसके लिए समझ के परे था।
उस समय प्रिया नौवीं कक्षा में थीं पर तब के नौवीं और आज के नौवीं कक्षा में बहुत अंतर था। आज के समय को और दौर को देखते हुए उस समय के बच्चे बेवकूफों में गिने जाते थे। उस समय तक के बच्चों के क्रश फिल्मी एक्टर होते थे। उससे नीचे शायद समझ ही नहीं आते थे या यह अलग ही फैंटेसी दुनिया में जीते थे। ऐसे साथ में शाम को खेलने वाले लड़के बहुत दोस्त थे कुछ तो पापा के दोस्त के बेटे थे वह भी दोस्त थे पर कोई कभी क्रश नहीं रहा या कहो कभी भैया के अलावा सोचा ही नहीं।
उस दिन उस लड़के के चक्कर में मम्मी ने फालतू का प्रिया को सुनाया और साथ ही यह भी बोला था मुहल्ले की नेता हो जो सबको एड्रेस बताओगी सीधे अपने काम से काम नहीं रख सकती हो। सच बताएं तो कभी सोचा नहीं था प्रिया ने कि वापस उस लड़के से कभी टकराएगी। उस समय तो इतना गुस्से से भरे बैठे रही कि शायद वह लड़का मिल जाए तो सर ही फोड़ देती क्योंकि उसे पूरे मुहल्ले में अभिषेक का पता पूछने के लिए वह ही मिली थी पर बेशरम ठहरे रात तक सब डांट का असर खत्म सुबह फिर वैसे ही अल्लहड़ मस्त कोई असर नहीं एक कान से सुना दूसरे से निकाल दिया।
सुबह तैयार हो कर स्कूल के लिए निकल लिए पर आज शाम को स्कूल से आते टाइम कल वाले वहीं जो अभिषेक को पूछ रहा था ( तब तक नाम नहीं मालूम था) उस लड़के से नज़रे मिली प्रिया की अपने घर के मोड के चौराहे पर। जहां वह खड़ा था और जब प्रिया की नजर उस पर पड़ी तो वह मुस्कुरा दिया। उसे देख एक बार तो मम्मी की कल की डांट याद आयी पर वह मुस्कुराया क्यों उस सवाल में उलझ गई और घर पहुंच गई। शायद मम्मी ने डांटा न होता तो उससे पूछ लिया होता कि क्या हुआ अभिषेक का घर कल से मिला नहीं क्या? पर कल मम्मी ने बहुत लंबी चौड़ी डांट लगाई थी इसलिए चुपचाप सीधे घर आ गई।
दूसरे दिन भी यहीं हुआ स्कूल से लौटते टाइम वह वहीं अपनी जगह खड़ा मिला और जैसे ही प्रिया और उस लड़के की नज़रे मिलती वह मुस्कुरा दिया अब थोड़ा वह परेशान हुई। दिल कहता मम्मी को बता दूं दिमाग कहता अभी उस दिन बिना मतलब के डांट पड़ी अब अगर यह बताया कि वही लड़का देख कर मुस्कुरा रहा है तो पता नहीं क्या होगा? इसी उधेड़ बुन में करीब - करीब हफ्ता भर निकल गया। इसी बीच हाफ ईयरली एग्जाम के प्रिपेयरेशन के लिए दो दिन की छुट्टी हो गई एक दिन तो नहीं पर दूसरे दिन वह प्रिया के घर के बाहर चक्कर लगाने लगा। उस टाइम p आरएफ प्रिया और उसके सभी दोस्त बाहर खेलने के लिए निकले थे उसे अपनी तरफ आता देख वह डर के कारण वापस घर में आ गई। प्रिया को लगा फिर कहीं कुछ पूछ लिया तो मम्मी अब समझाएंगी नहीं सीधे मार ही लगाएंगी।
अचानक घर में वापस आया देख मम्मी ने तुरंत टोका अभी तो गई अभी वापस क्यों आ गई और बोली एग्जाम है कल तो बस आधे घंटे मूड चेंज करने के लिए खेलने भेजा है और उसमें भी तुम अभी यहीं अंदर बाहर कर रही हो। प्रिया ने कहा जब देखो तब डांटती है अरे अब पानी पीने आए है क्या वह भी पीने नहीं आ सकते। मम्मी ने फिर कहा कितनी बार बोला पानी पी कर खेलने जाया करो पर तुम तो समझती ही नहीं। आगे कुछ मम्मी कहती उससे पहले ही वह बाहर निकल आयी देखा तो वह जा चुका था। उसे बाहर न देख कर चैन कि सांस ली। अभी दोस्तों के साथ खेलने ही वाली थी कि वह पीछे से आया और बोल कर गया कल तुम्हारे कॉलेज के बाहर तुम्हारा वेट करूंगा जब तक वह कुछ कहती तब तक वह जा चुका था।
दूसरे दिन वह सुबह से ही बहुत डरी हुई थी अपने अंदर की पूरी हिम्मत को समेटकर उस दिन वह स्कूल गई थी स्कूल जाने के टाइम में तो बाहर कोई नहीं मिला खड़ा पूरा दिन इसी टेंशन में गुजरा कि उसने बोला तो था कि वह स्कूल के बाहर मिलेगा तो फिर आया क्यों नहीं किसी तरह पूरा दिन स्कूल में काटने के बाद छुट्टी के टाइम वह थोड़ा डरी हुई सहमी हुई बाहर आई तो देखा वह अपने दोस्त के साथ सामने गेट के बाहर खड़ा मिला।अब तक तो वह भी प्रिया को देख चुका था और प्रिया भी उसे देख चुकी थी यहां तक कि उन दोनों की नजरें भी आपस में टकरा चुकी थी फिर भी प्रिया ने अपनी पूरी हिम्मत को समेटते हुए उसे नजरअंदाज करके आगे बढ़ने की कोशिश की पीछे से एक आवाज आई प्रिया एक मिनट रुकना मुझे कुछ बात करनी है तुमसे प्रिया ने उस आवाज को भी अनसुना किया और आगे बढ़ गई फिर उसने तेज कदमों से आगे आकर उसके सामने करीब - करीब उसके आगे आकर बोला तुम्हारा ही नाम प्रिया है तुम्हें ही बुला रहा हूं तुम्हें ही कल बोला था कि आज मैं कॉलेज के बाहर आऊंगा अभी मुझे देखने के बाद भी तुम मुझे नजरअंदाज करके आगे बढ़ती चली जा रही हो।
उसको अपने सामने आया देख कर एक सेकेंड के लिए तो उसके हाथ पैर फूल गए थे यहां तक कि वह ठंडी पड़ चुकी थी पर फिर भी दिखाना था कि वह बहुत शेरनी हूं और वह किसी से डरती नहीं उसने हिम्मत किया और कहा हां तो मैं तो आपको नहीं जानती मैं आप के कहने पर क्यों रुकूंगी मैं आपकी बात को क्यों मानूंगी? वह भी कम नहीं था उसने कहा जानती नहीं हो तो क्या हुआ जान जाओगी दो मिनट का समय तो दो। उसने फिर कहा मुझे तुम्हें जानने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं और तुम वहीं हो ना जो उस दिन मुझसे किसी अभिषेक का एड्रेस पूछ रहे थे वह हंसता हुआ अरे तुम्हें याद हैं और नाम भी याद है अभी तक मैंने तो ऐसे ही नाम बोल दिया था। मुझे तो सिर्फ तुमसे बात करने का बहाना चाहिए था और तुम्हें पास से देखना भी था। मैं तुम्हें पंद्रह दिन से देख रहा था पर तुमने कभी ध्यान ही नहीं दिया इसलिए उस दिन पास आ कर एहसास कराया और उस दिन के बाद से तुम मुझे नोटिस करने लगी थीं। उसने उसकी बात को काटते हुए हां बोलो क्या बताना है मुझे यह सब सुनने में मुझे कोई इंट्रेस्ट नहीं हैं। उसने पहले अपना नाम बताया मेरा नाम अर्जुन हैं मैं ट्वेल्थ में हूं साइंस स्ट्रीम से और तुम्हारे घर के पास कोचिंग के लिए आता हूं उस दिन जब पहली बार तुम्हें देखा तो तुमसे दोस्ती करना चाहा और उस दिन से तुम्हारे पीछे भाग रहा हूं पर तुम मुझ पर ध्यान ही नहीं देती और पिछले दो दिन से इंतजार कर रहा था तुम कॉलेज टाइम पर रास्ते में नहीं मिली तब कल वापस तुम्हें मैसेज देने के लिए घर की तरफ आना पड़ा। उसने फिर उसकी बात को रोका हो गया तुम्हारा इंट्रो और यह सब जानने के बाद भी मुझे तुममे कोई इंट्रेस्ट नहीं है अब तुम जा सकते हो मुझे तुमसे दोस्ती भी नहीं करनी हैं पर अर्जुन ने कहा मुझे तुमसे दोस्ती करनी है फिर चाहे जो करना पड़े। प्रिया ने आगे कहा पर कोई जबरदस्ती है क्या मुझे नहीं करनी यह मेरी मर्ज़ी है।
अर्जुन पर इसमें इतना एग्रेसिव होने की क्या बात मैं पसंद करता हूं मुझे दोस्ती करनी है तुम्हें नहीं पसंद तो कोई बात नहीं साथ रहते - रहते पसंद भी करने लगोगी और अच्छे दोस्त भी बन जाएंगे। प्रिया पर मुझे नहीं करनी दोस्ती बोला तो अर्जुन मुझे करनी मैंने भी बोला और यह कह कर उसने प्रिया के हाथ में एक पैकेट पकड़ा दिया और बाय बोल कर निकल गया। प्रिया को वह पैकेट लेना ही पड़ा क्योंकि वह उसके हाथ में था और अर्जुन जा चुका था। उस दिन प्रिया बहुत कन्फ्यूज्ड थी कि वह अर्जुन से मिले इस पैकेट से खुश हो या गुस्सा दिखाएं या घबराए कि क्या मुसीबत आ गई या डरे कि अगर मम्मी ने देख लिया तो क्या होगा?
वह पैकेट लेकर घर पहुंची और किसी को पता चले उससे पहले वह अपने कमरे में चली गई और बैग को पटक वह पैकेट खोल कर देखने लगी उसमें सबसे पहले उसके हाथ एक गुलाब की बड लगी जिसे उसने नाक के पास ले जाकर स्मेल किया फिर पैकेट देखा उसमें चॉकलेट थीं जो कि उसकी फेवरेट थी उसके बाद उसने देखा एक गिफ्ट रैप किया गिफ्ट था उसने पैकेट से निकाला और खोलने लगी गिफ्ट खोला तो पेयर ऑफ टू टेडी बियर थे पिंक कलर के और सी - सॉ पर बैठे थे जिसे देख प्रिया बहुत खुश हुई उसको देख रही थी तभी उसका ध्यान वापस पैकेट पर गया तो उसमें एक कार्ड भी था जिसे देख प्रिया के चेहरे पर अनजाने स्माइल आ गई खोल कर देखा तो वेलकम टू माय लाइफ माई फ्रेंड प्रिया लिखा था और एक लेटर भी था जिसे हाथ में लेते ही प्रिया की धड़कन तेज़ हो गई यह उसकी लाइफ का पहला लेटर था या यूं कहे पहला लव लेटर था अब तक प्रिया भी उसे पढ़ने के लिए एक्साइटेड थी और बिना देरी किए उसने लेटर खोल पढ़ना शुरू किया। जैसे - जैसे वह लेटर पढ़ रही थी उसका चेहरा शर्म से लाल हो रहा था हो भी क्यों न यह सब उसके साथ पहली बार हुआ इससे पहले ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था। प्रिया ने उस लेटर को आधे घण्टे में कम से कम चालीस - पचास बार पढ़ा होगा अब तक तो प्रिया को एक - एक शब्द तक याद हो गए होंगे और हर बार पढ़ते समय भी प्रिया का चेहरा उतना ही लाल होता जितना पहली बार पढ़ कर हुआ था और हर बार पढ़ने के बाद वह मन ही मन मुस्कुराती और जा कर अपने तकिए में चेहरा छुपा लेती। यह सब उसके साथ पहले कभी नहीं हुआ था अचानक कल तक जो अजनबी था आज उसकी बातें प्रिया को रोमांचित कर रही थी और करे भी क्यों न ऐसा कभी भी किसी ने पहले उससे कहा ही नहीं। तभी प्रिया की मम्मी की आवाज़ बाहर से आती है पिंकी कितनी देर लग रही है आज स्कूल ड्रेस बदलने में आओ जल्दी खाना ठंडा हो रहा हैं। तब अचानक से प्रिया उस रंगीन दुनिया से निकल कर बाहर आती और जल्दी से अर्जुन के दिए फूल और गिफ्ट चॉकलेट कार्ड और लेटर को उसी पैकेट में वापस से भर अपनी अलमारी में कपड़ों के बीच छुपा देती है और झट से कपड़े बदल फ्रेश हो कमरे से बाहर निकल कर अपना खाना खाने बैठ जाती हैं। अभी खाना खाना शुरू ही किया था कि प्रिया की मम्मी टोकती है क्या बात है आज कोई बात हुई है क्या? मम्मी के ऐसा पूछने पर प्रिया थोड़ा घबरा गई और हकलाते हुए ननहही नहीं कुछ तो नहीं। प्रिया से फिर मम्मी ने पूछा और आज एग्जाम कैसा हुआ तुमने बताया नहीं तो प्रिया नज़रे नीची कर खाने की ओर देखती हुए अच्छा हुआ। अच्छा हुआ पर अभी तक तो हर पेपर तुम आ कर बिना कपड़े बदले मुझसे डिस्कस करती थी आज न मुझे पेपर दिखाया न बताया पेपर कैसा आया था कैसा हुआ और सीधे अपने कमरे में चली गई। सब ठीक तो है कुछ छुपा तो नहीं रहीं न हमसे। अगर कोई प्रॉब्लम हो तो मुझे जरूर बताना। प्रिया अरे मम्मा अब मैं बड़ी हो गई हूं अब सब मैनेज कर लूंगी और वैसे भी पेपर तो कर आए और उसको डिस्कस करने से क्या होगा अब तो जो होगा रिजल्ट ही बताएगा। मम्मी ने फिर कहा बेटा ये मुझे भी मालूम है पर डिस्कस करने से अपनी गलतियों का पता चलता है और उस गलती को भविष्य में दोबारा न दोहराया जाए ये सीख मिलती हैं और यह सिर्फ पेपर के लिए नहीं हर बात के लिए है इस लिए कुछ भी हो डिस्कस करो कुछ न कुछ सॉल्यूशन निकेलगा ही और अगर तुमसे कोई गलती होगी तो वह भी तुम्हे पता चलेगी और वापस तुम उसे भविष्य में नहीं दोहराओगी।
प्रिया को एक बार को लगा कहीं मम्मी को अर्जुन के दिए पैकेट की खबर तो नहीं लग गई पर दूसरे ही पल उसने सोचा अगर मम्मी को पता होता तो अब तक घर पर बखेड़ा खड़ा हो चुका होता और वापस खाना खाने में लग जाती हैं। तभी उसे वापस अर्जुन के लेटर में लिखी खूबसूरत बातें याद आती है जिसे वह सोच कर मुस्कुराने लगती है पर दूसरे ही पल उसे याद आता है सामने मम्मी बैठी है और उस तरह उसको मुस्कुराते देख उन्हें पक्का यकीन हो जाएगा और वह वापस जांच पड़ताल शुरू कर देंगी। इसलिए वह चुप चाप शांति से खाना खत्म कर वापस अपने कमरे में जाने लगती हैं और मम्मी को बोलती है आज वह बाहर खेलने नहीं जाएगी उसे नींद आ रही है वह सोने जा रही हैं। मम्मी जब तक प्रिया को टोकती कि यह सोने का समय नहीं तब तक प्रिया अपने कमरे में जा चुकी थीं।
आज प्रिया की मां को उसका बर्ताव बहुत बदला बदला लग रहा था पर उन्होंने यह सोच कर जाने दिया कि शायद सच में ही थक गई होगी और वैसे भी तो मैं उसे दिन भर यही कहती हूं कि बड़ी हो गई हो अब अपने काम की जिम्मेदरियां खुद उठाओ तो अगर उसने पेपर डिस्कस नहीं किया तो शायद इसीलिए कि उसने यही से अपने को बड़ा दिखाने की शुरुवात की हो और इस में गलत भी क्या है?  यह सोच कर वह बाकी घर के कामों में लग जाती है वहीं प्रिया अपने कमरे में सोने का बोल कर जाती तो है पर सच तो यही है उसे नींद नहीं आ रही थी बल्कि उसे सुकून और अकेला पन चाहिए था उन एहसासों में डूबने के लिए जिसे वह महसूस कर रही थीं। इन एहसासों के बीच वह दिन बीत गया और दूसरे दिन सुबह प्रिया स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगी अपने टाइम पर तैयार हो वह रिक्शे वाले भैया का वेट कर ही रही थी पर आज भैया आए नहीं उसे स्कूल के लिए देर हो रही थी क्योंकि एग्जाम चल रहे थे तब प्रिया की मम्मी ने प्रिया को स्कूल जाने के लिए घर के पास के चौराहे से दूसरा रिक्शा करा भेज दिया और प्रिया से बोला स्कूल के गेट के सामने ही रिक्शा रुकवाना और सीधे अंदर चली जाना अब बड़ी हो गई हो अकेले मैनेज करना सीखो और रास्ते में किसी से बात मत करना और किसी की बात का जवाब मत देना। प्रिया ये सब सुनने के बाद ओह फो एक तरफ कहती है मैं बड़ी हो गई और दूसरी तरफ इतना समझाती हैं क्या करूं मैं? प्रिया की मां बेटा अभी तुम नहीं समझोगी पर तुम जिस उम्र में हो वहां तुम्हें सिर्फ मेरी ही बातें सुन और समझ कर आगे बढ़ना हैं जैसा कह रही हूं वहीं करो। प्रिया उस रिक्शे में बैठ स्कूल चली जाती हैं तभी घर से कुछ दूर ही पहुंची होगी सामने अर्जुन अपने दोस्त के साथ खड़ा मिलता है और प्रिया को देख मुस्कुरा कर हैलो बोलता है पर प्रिया सब देख कर भी नज़रे नीची कर लेती हैं अर्जुन उसके रिक्शे के साथ - साथ चलता हुआ क्या हुआ कल मेरा गिफ्ट पसंद नहीं आया तुम्हें? प्रिया ने कोई जवाब नहीं दिया। अर्जुन - कुछ बोलोगी या नहीं प्रिया ने बोला मैंने पहले ही बोला कि मुझे तुमसे कोई दोस्ती नहीं करनी फिर क्यों मेरे पीछे पड़े हो। अर्जुन पर मुझे करनी है आखिर दोस्ती में प्रॉब्लम क्या है प्रिया ने कहा अगर हम साथ पढ़ते होते तो दोस्ती ठीक थी पर हम साथ नहीं पढ़ते और जो कल तुमने जो मुझे पैकेटे  दिया वह दोस्त को नहीं दिया जाता। अर्जुन हंसते हुए अरे यार मैं तुम्हें पसंद करता हूं इसलिए दोस्ती करनी है क्योंकि प्यार करता हूं तुम कुछ शायद नॉर्मल फ्रेंड की बात कर रही हो और मैं गर्लफ्रेंड बनने की बात कर रहा हूं। इतना सुन प्रिया शर्म से लाल हो गई ऐसा कुछ उसने कभी किसी से सुना ही नहीं था। उसने फिर भी अर्जुन को बोला मेरे पीछे मत आओ मुझे तुमसे किसी भी तरह की दोस्ती नहीं करनी। इतनी देर में प्रिया अपने स्कूल पहुंच गई और रिक्शे से उतर कर सीधे स्कूल के अंदर चली गई। अब तक प्रिया अर्जुन को लेकर कन्फ्यूज्ड थीं उसे अर्जुन की बातें अच्छी भी लग रही थीं उसे अर्जुन पसंद भी था पर वही दूसरी ओर मम्मी की हिदायतें याद आ रही थी और डर भी लग रहा था कि मम्मी को पता चला तो क्या होगा? इसी उधेड़ बुन में पूरे दिन प्रिया एग्जाम में उलझी रही उसी वज़ह से आज प्रिया का पेपर भी गड़बड़ हो गया अब प्रिया और परेशान हो गई और डर भी गई मम्मी को क्या बताएगी कि पेपर कैसे खराब हो गया।
स्कूल के छुट्टी के टाइम भी अर्जुन वहीं बाहर मिला पर आज रिक्शा ना आने की वजह से प्रिया के पापा उसे स्कूल से लेने आए थे अर्जुन और पापा को आस पास खड़ा देख प्रिया घबरा गई और जल्दी से पापा के पास जा उनकी गाड़ी में बैठने लगी प्रिया को आता देख अर्जुन उसकी ओर बढ़ा पर गाड़ी में जाता देख वह रुक गया और समझ गया कि आज उसके पापा उसे लेने आए और वह वहां से निकल गया। अर्जुन को लगा कि शायद प्रिया ने अपने घर में उसको लेकर कुछ बता दिया इसलिए उसके पापा लेने आने लगे। उस दिन के बाद तकरीबन एक हफ्ते तक अर्जुन न तो प्रिया को स्कूल के बाहर मिला ना तो घर के चौराहे पर ना ही प्रिया को स्कूल जाते टाइम कहीं भी। इसके बाद प्रिया को एक तरफ सुकून था तो कहीं न कहीं मन में बैचेनी भी थी कि आखिर अर्जुन अचानक से गायब कहां हो गया?
एक दिन अचानक प्रिया को स्कूल से आते टाइम अर्जुन दिखता है पर अपने दोस्तों के साथ कोचिंग जाते हुए वह प्रिया को देख कर भी अनदेखा कर देता है और उसकी इस हरकत से प्रिया न चाहते हुए भी बेचैन हो जाती है अब तो उसके मन में अर्जुन को ले कर नए सवाल उठ खड़े होते है पर वह चाह कर भी अर्जुन से पूछ नहीं पातीं। धीरे - धीरे समय बीता अर्जुन की कोचिंग खत्म अब उसने प्रिया के घर की तरफ आना बंद कर दिया। प्रिया पर अर्जुन को कभी भुला नहीं पाई क्योंकि अर्जुन ही वह पहला शख्स था जिसने उसको अलग एहसास कराया था।
इन सब बातों को दो तीन साल बीत गए थे तभी अचानक एक दिन प्रिया अर्जुन वापस एक कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में  मिलते हैं। अर्जुन ने प्रिया को देखते ही पहचान लिया और प्रिया ने अर्जुन को। अर्जुन ने प्रिया के पास आ कर उसे हैलो बोला और हाल चाल पूछा अब तक प्रिया काफी समझदार हो चुकी थीं प्रिया पूरे कॉन्फिडेंस के साथ अर्जुन से मिली और बात भी की और जाते जाते कल दोबारा मिलने का वादा भी किया। आज प्रिया वापस अर्जुन से मिल कर बहुत खुश थी कहीं न कहीं आज भी अर्जुन उसे दिल में था अब उसे लगा जल्द ही वह जान जाएगी की अर्जुन उस समय अचानक क्यों गायब हो गया था? दूसरे दिन इंस्टीट्यूट पहुंच कर प्रिया अर्जुन का वेट करती पर वह उस दिन आया ही नहीं और उसके बाद कई दिन तक नहीं आया। प्रिया वापस उदास हो गई। कुछ दिनों बाद अचानक कंप्यूटर क्लास में बीच में आता है पर उस बार अकेले नहीं एक लड़की के साथ पहले अर्जुन को देख प्रिया उसे हाथ उठा कर इशारा करने ही वाली थी कि तभी उसके साथ एक लड़की को देख वह रुक गई। क्लास खत्म होने के बाद अर्जुन प्रिया के पास जाता है मिलता है जैसे ही प्रिया उससे पूछने वाली होती है कि वह इतने दिन से कहां था तभी अर्जुन अर्चना को बुला कर अपने पास प्रिया से मिलवाता है और साथ ही बताता है कि अर्चना उसकी गर्लफ्रेंड है और अर्चना को बताता है कि प्रिया उसकी फ्रेंड है। प्रिया अर्चना को हैलो बोल कुछ देर के लिए स्तब्ध रह जाती है। अब प्रिया आगे कुछ बात कर ही नहीं पाती तब अर्जुन वहां से यह बोल कर अर्चना के साथ निकल जाता है कि अभी उन्हें कहीं जाना है फिर मिलेंगे। अर्चना और अर्जुन के जाने के बाद प्रिया काफी देर तक वहीं बैठी रह जाती हैं उसे समझ ही नहीं आता कि अर्जुन का क्या है?
प्रिया तब से जब से अर्जुन ने प्रपोज किया तब से उसे कभी भुला नहीं पाई और कहीं न कहीं अर्जुन को अपनी लाइफ में पहला प्यार ही समझती आयी। प्रिया को जो भी फीलिंग्स समझ आए अर्जुन से ही आए और अर्जुन न जाने कब मूव ऑन कर चुका था और प्रिया को यह अब समझ आया।


Wednesday, September 23, 2020

३६ गुण

 






जीवन के संघर्ष भी धूप और छाँव की तरह है जब आपके जीवन में दुःख के बाद सुख आता है तो ऐसा लगता है जैसे कड़ी धूप मे चलते चलते अचानक मौसम बदल गया और छाँव आ गयी बहुत ही सुखद अनुभूति होती है...... ऐसा ही कुछ मेरे जीवन मैं भी हुआ ऐसा सोचता हुआ शरद चाय की चुस्कियाँ ले रहा था की अचानक इरा की आवाज़ उसके कानो मैं पड़ी और उसकी तन्द्रा टूटी..
      आज का क्या प्रोग्राम है पहले ही decide हो तो प्लीज मुझे भी बता दो मुझे भी कुछ प्लानिंग करनी पड़ती है डिअर घर ऑफिस maid सबको देखना होता है आपका क्या आप तो रेडी हुए और कहते है - "डिअर आईं एम रेडी यू आर गेटिंग लेट जान।" कह कर हँसती हुई इरा किचन में नाश्ते की तैयारी के लिए चली जाती है।
इधर शरद सिगरेट को जलाता है और माचिस की तीली को ऐशट्रे में न डालकर साइड में फेंक देता है सिर्फ इस लिए की इरा देखें और उस पर गुस्सा करे क्योंकि इरा के झुंझलाने और गुस्सा होने पर शरद को इरा को छेड़ने का और चिढाने का मौका मिलता था। जब से शादी हुई है इरा और शरद की हमेशा से नोंक झोंक होती रहती थी वह भी ज़रा ज़रा सी बात को लेकर और कुछ mintue में वापस सब नार्मल हो जाता लेकिन बीते एक साल में ऐसा शायद एक दो बार या हद से हद चार बार हुआ होगा अब इन चीज़ों की शरद को आदत हो चुकी और मिस भी करता है । शरद इरा की शादी को दस साल बीत गए और दोनों की लव मैरिज है दोनों बचपन के दोस्त थे साथ रहे खेले पढ़े और फिर शादी ये जितना आसान पढ़ने में लग रहा है उतना है नहीं शरद को इरा के साथ शादी के लिए बहुत से पापड़ बेलने पड़े थे।
     इरा एक जॉइंट फैमिली से थी और शरद न्यूक्लियर फैमिली से दोनों में अफेयर होने के बाद भी इरा ये बात अपनी पेरेंट्स को नहीं बता पायी थी और शरद ने बड़ी आसानी से अपने मॉम डैड को बता दिया था और उन्हें कोई ऐतराज़ भी नहीं था क्योंकि इरा उनके सामने ही तो बड़ी हुई है सब कुछ तो जानते थे उसके बारे में ऐसा शरद की मॉम डैड का सोचना था किसी नयी लड़की से शादी करना और उसके according अपने आपको एडजस्ट करना change करना थोडा मुश्किल होता है वही दूसरी तरफ इरा के पेरेंट्स को एक ऐसा लड़का चाहिए था जिससे इरा की जन्म पत्री मिले चाहे स्वभाव में कोई मेल न हो उनका मानना था समय के साथ सब मिल जाता है और इस बात के लिए वो अपना और इरा की माँ का उदाहरण देते है।
इरा शुरू से ही ये मानती थी कि जो उसके मम्मी पापा कहेंगे वही सही है उसकी अपनी कोई इच्छा नहीं होती थी क्या पहनना है क्या खाना कहाँ जाना है ये उसके पापा ही decide करते थे पर इन सब के बावजूद न जाने कब और कैसे इरा शरद से प्यार कर बैठी ।
इरा और शरद ने अपनी स्कूल की पढाई पूरी की और आगे फरदर स्टडीज के लिए दोनों शहर से बाहर चले गये। फिर भी दोनों एक दूसरे के टच में थे धीरे धीरे समय बीतता गया इधर उन दोनों की पढाई पूरी हुई और जॉब प्लेसमेंट हो गया। अब इरा की बारी थी अपने घरवालों से बात करने की पर लाख कोशिशों के बाद भी इरा हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी और शरद को भी बात नहीं करने दे रही थी।
अचानक एक दिन इरा शरद के पास आई और बोली शरद- will u marry me then let's go and talk to parents about our marriage  ये सुन शरद अवाक् सा इरा का चेहरा एक टक देखता रहा अजीब से भाव थे आज इरा के चेहरे पर आज से पहले ये भाव इरा के चेहरे पर शरद ने कभी नहीं देखे थे उन भाव मैं गुस्सा था प्रेम था पर वो जो घर वालो के प्रति डर वाला भाव था आज वो पूरी तरह गायब था शरद ने इरा से पूछा इरा क्या हो गया आज ऐसे क्यों behave कर रही हो सब ठीक है न इरा एक मिनट के लिए ठिठक गयी फिर अपने को संभालतेे हुए बोली कुछ भी तो नहीं बस तुम ही तो कहते हो शादी करनी है इस लिए बोल रही हूँ शरद इरा को देख कर ये तो समझ ही गया था की इरा कुछ छुपा रही है फिर भी शरद ने कहा ठीक है कल मैं तुम्हारे घर आता हूँ evening  में इसपर झट से इरा बोली कल क्यों आज क्यों नहीं ? शरद एक mintue के लिए रुका और बोला ठीक है आज ही आ जाता हूँ अब ठीक।
शाम को शरद इरा के घर पंहुचा सब से मिला शरद को सब पहले से जानते तो थे ही सब बैठ कर इधर उधर की बातें करने लगे बातों ही बातों  में इरा के पापा ने बताया की इरा के लिए उनके कास्ट में एक अच्छा रिश्ता आया है और पत्रिका भी मिल गयी पूरे 36 गुण मिले है लड़का NRI है और वैसे भी तो इरा के job aspects भी बाहर ही है ।
शरद सब कुछ चुप चाप सुनता रहा अब तक वह इरा के दिन वाले चेहरे के भावो का मतलब समझ चुका था इरा के पापा की बात खत्म होते ही शरद ने धीरे से कहा कि इरा यही इंडिया में ही रहेगी तो ज्यादा खुश रहेगी । ये सुनकर सब चुप हो जाते है शरद अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आगे कहता है अंकल actully मैं और इरा एक दूसरे से प्यार करते है और शादी करना चाहते है और हमें लगता है हम एक दूसरे के साथ खुश रहेंगे बस आपके आशीर्वाद की ज़रूरत है और हाँ अंकल एक बात और मेरी और इरा की पत्री मैंने एक बार मिलायी थी 7 गुण मिल रहे है हमारे लिए इतने ही बहुत है यह बातें सुन कर इरा के घर में एकदम सन्नाटा छा गया।एक तो इंटर कास्ट मैरिज उसके बाद पत्री भी नहीं मिल रही और लव मैरिज इन सभी चीज़ों के घोर विरोधी थे इरा के पापा।
शरद को इरा के पापा और इरा की पूरी फॅमिली को बहुत convenice करना पड़ा बहुत बार शरद उन लोगो से मिला चीज़ों को discuss किया पर इरा की फॅमिली कही भी मानने को नहीं तैयार थी। उनका मानना था की ये प्यार वग़ैरह सब समय के साथ खत्म हो जाता है और इरा के पापा का कहना था की अगर तुमने शरद से शादी कर ली तो सुखी नहीं रहोगी क्योंकि तुम दोनों की पत्रिका नहीं मिलती।
आखिर में शरद ने इरा से बोला या तो तुम मुझे भूल जाओ या घर वालो को भूल कर court marriage कर लो अब तुम्हारे पास दो option है इरा, और जो भी decide करना है अब तुम्हे करना है। अब इरा ने हिम्मत जुटा कर अपने घर पर पहली बार बोला पापा मैं शरद से ही शादी करुँगी और किसी से नहीं अबकी बार इरा के पापा को हार माननी पड़ी और इरा और शरद की बहुत ही सादगी से शादी हो गयी।
अचानक शरद की पीठ पर इरा ने हाथ रखा, जैसे शरद कोई सपना देख रहा हो चौक उठा इरा बोली कहा ध्यान है- ciggrette खत्म हो गयी बुझाओ ऊँगली जल जायेगी तब शरद ashtray में ciggrette को बुझाता है और मुस्कुराने लगता है और इरा से पूछता है are you happy with me or not? इरा कहती है ऐसा क्यों पूछ रहे हो offcourse i am happy with you शरद हँसते हुए कहता है इस लिए पूछा क्योंकि हमारे तो 7 ही गुण मिले थे जन्म पत्रिका में और ये कहते हुए बाथरूम मैं नहाने चला जाता है।
इधर शरद की बातों को सुनकर इरा सोचती है मैं और शरद खुश तो है पर एक कमी है शादी के इतने साल बाद भी हमारे कोई बच्चा नही हुआ इतना ट्रीटमेंट करा चुके पर अब तक कहीं से कोई रिजल्ट पोसिटिव नही मिले क्या ये हमारे जन्म पत्री में गुण न मिलने की वजह से तो प्रॉब्लम्स नही आ रही है? दूसरी तरफ उसे अपने पापा की कही बात याद आ रही थी... इरा गहरी सोच में डूब जाती है उधर शरद नहा कर निकल आता है और इरा को आवाज़ लगाता है पर इरा नही सुन पाती। शरद तैयार होकर बाहर निकलता है तो इरा को गहरी सोच में डूबा हुआ पाता है पास आकर इरा के चेहरे के सामने चुटकी बजा कर पूछता है मैडम मेरे सामने होते हुए भी किसके ख्यालों में खोई है इरा अचानक से हड़बड़ा जाती है कही तो नही तुम रेडी हो गए मुझे बोला भी नही। मुझे 10 मिनट दो में अभी तैयार हो कर आई। ये कहकर इरा तैयार होने चली जाती है और यहां शरद अपने और इरा के लिए चाय बनाने किचन मे जाता है।
अब तक इरा भी तैयार हो कर आ गयी और शरद की चाय भी बन चुकी थी दोनो बैठकर चाय पीते है तभी शरद का मूड देखते हुए इरा कहती है - क्यों न हम अपनी पत्रियाँ किसी पंडितजी को दिखाए। शरद का जवाब - क्या करना है क्यों दिखानी है अब तो शादी हो ही गयी। इरा कहती है प्लीज हर समय मज़ाक नही में सोच रही थी क्यों न हम किसी पंडितजी के पास चले क्योंकि हमारी शादी को दस साल हो चुके और अभी तक हमारे बच्चे नही हुए इतना ट्रीटमेंट भी करवा कर देख चुके एक बार पत्री भी दिखवा लें कोई उपाय हो तो उसे भी कर लें। शरद ने इरा से बोला में इन सब चीज़ों को नही मानता और न ही इन चीज़ों को मानने कि तुमको राय दूंगा।  फिर भी तुम चाहती हो तो करो मैं तुम्हे मना नही करूंगा। आजतक किसी चीज़ के लिए मना नहीं किया है। पर इरा तुम पढ़ी लिखी हो समझदार हो क्या फिर भी तुम्हे ऐसा लगता है  इन सब बेकार की बातों पर विश्वास करना चाहिए और वैसे भी नेक्स्ट वीक हम पुणे के एक स्पेशलिस्ट एम्ब्रायोलॉजिस्ट से मिल रहे है न-" लेटस सी वह क्या बताते है। सब ठीक होगा ट्रस्ट इन गॉड एंड ऑन मी प्लीज। और वैसे भी इरा हमें कोई चीज़ बिना मेहनत के तो मिलती नही अपनी शादी याद है कितने पापड़ बेले थे तो हमारे बच्चे इतनी आसानी से कैसे हो सकते है तुम परेशान न हो सब ठीक ही जायेगा। तभी इरा के मोबाइल की घंटी बजी देखा तो आफिस से कॉल थी वह बात करते हुए बालकनी में निकल गयी और शरद वही अपना लैपटॉप लेकर बैठ गया। ऑफिस की कुछ इम्पोर्टेन्ट मेल करनी थी उसमें बिजी हो गया।
इरा की बात शरद के दिमाग में घूम रही थी और वह इरा के मन में उठी इच्छा को समझ भी रहा था पर वह इन सब चीज़ों से दूर ही रहना चाहता थाऔर इरा को भी दूर ही रखना चाहता था। शरद के समझाने के बाद भी इरा का मन नही माना और ऑनलाइन एक एस्ट्रोलॉजर को अपनी और शरद की पत्रियाँ मेल की इधर इरा ने एस्ट्रोलॉजर के एकाउंट में फीस ट्रांसफर की उधर उनका रिप्लाई आया जिसमें साफ था इरा ओर शरद के भाग्य में संतान सुख नही है।
  आज स्पेशलिस्ट से अपॉइंटमेंट वाला दिन भी आ गया दोनों आज शाम 4 बजे उनसे मिलने वाले थे तभी इरा और शरद के एक कॉमन फ्रेंड जो कॉलेज में साथ पढ़ता था उसका फ़ोन शरद के पास आया-" हेलो शरद में अर्पित पहचाना" शरद ने दिमाग पर जोर डाला तब तक उधर से आवाज़ आयी यार तुम्हारे और इरा के साथ था तभी शरद को याद आया हाँ याद आ गया अरे इतने दिनों बाद कैसे याद आयी और कहाँ हो आजकल ? अर्पित ने बताया वो गुड़गांव में है और एक NGO चला रहा है फिर अर्पित ने शरद को अपने NGO के बारे में बताया की वह विधवा तलाकशुदा घर से भगायी गयी मानसिक रूप से बीमार औरतों को शेल्टर देता है उसका NGO साथ ही ये भी बताया कि उसके NGO में जो औरतें रहती है उनके बच्चों को अडॉप्ट भी करवाते है उन माँओ की इच्छा से। तभी शरद ने अर्पित से पूछा क्या तुम्हारे NGO में अभी कोई बच्चा है एडॉप्शन के लिए अर्पित ने कहा हाँ अभी ट्विन्स बेबी हैं उनकी माँ की डिलीवरी के समय डेथ हो गयी तीन हफ्ते के बच्चे है किसे लेने है शरद बोला मुझे ओर इरा को । अर्पित कुछ सेकंड के लिए चुप हो जाता है तो शरद पूछता है क्या कोई प्रॉब्लम है अर्पित बोला नही कोई नही तुम दोनों गुड़गांव आ जाओ फॉर्मेलिटी पूरी करो और बच्चे ले जाओ। शरद बोलता है ठीक है हम जितनी जल्दी होता है मिलते है कह कर फ़ोन काट देता है तभी इरा सारी फाइल्स ले कर आती है जिसमे उसकी ओर शरद की रिपोर्ट्स है और शरद के सामने टेबल पर रखते हुए कहती है एक बार चेक कर लो कोई रिपोर्ट्स या कागज़ छुटे तो नही तभी शरद इरा से कहता है इन सब की कोई ज़रूरत नही आओ तुम मेरे पास बैठो एक बात करनी है इरा बैठती है और शरद इरा को अर्पित की कॉल और उसका NGO और उस NGO में जो ट्विन्स है उनके बारे में बताता है और साथ ही एडॉप्शन प्रक्रिया भी बताता है और इरा के सामने उन बच्चों को अडॉप्ट करने की बात रखता है जिसे सुनकर एक बार को इरा अवाक रह जाती है पर कुछ ही सेकंड में अपने को संभालती है और शरद से बोलती है कब चलना है गुड़गांव आज या..... तब तक शरद बोलता है अभी दोनो गुड़गांव के लिए रवाना होते है। रास्ते में जाते समय इरा मन ही मन शरद के मन में आये एडॉप्शन की सोच के बारे में बहुत खुश और गर्व महसूस कर रही थी। साथ ही उसका मन खुशी से भरा हुआ था क्योंकि आज उसकी फैमिली पूरी होने जा रही थी और इसलिए वह खुश भी थी क्योंकि एस्ट्रोलॉजर की बताई हुई भविष्यवाणी गलत साबित हो चुकी थी।


Saturday, September 12, 2020

बारिश की बूंदें

 

रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर तेरी याद दिला दी
रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर मुझे गुनगुनाना सिखा दिया
आज भी वह पल याद है जब तुझे देख बस देखती रह गई
आज भी वह जगह याद है जहां मिले थे हम कभी
वह मुलाकातें वह बातें वह झगड़े जो करते थे हम कभी।।

रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर तेरी याद दिला दी
रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर मुझे गुनगुनाना सिखा दिया
लगता है अभी कल ही की तो बात हो जब तुमने कहा था
अब न मिलना होगा कभी हमारा दोबारा
अब जुदा हो गए हम दोनों के रास्ते न मिलेंगे दोबारा।।

रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर तेरी याद दिला दी
रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर मुझे गुनगुनाना सिखा दिया
उस दिन तुम्हारी बातों को सुन हैरान रह गई थीं
जब करने चाहे कुछ सवाल तुम जा चुके थे
जब रोकना चाहा था तुम्हें तुम बहुत दूर जा चुके थे।।

रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर तेरी याद दिला दी
रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर मुझे गुनगुनाना सिखा दिया
जाने के बाद कितना खुद को और दिल को समझाया था
चाह कर भी तुमको भुला ना पाए थे कभी
चाह कर भी ना खुद से जुदा कर पाए थे कभी।।

रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर तेरी याद दिला दी
रिमझिम बरसती बारिश की बूंदों ने फिर मुझे गुनगुनाना सिखा दिया
याद है वह दिन जब तुम गए हो मेरी आंखों को आंसू देकर
मेरा हंसना और खिलखिलाना साथ ले गए तुम अपने
मेरी खामोशियां को छोड़ आवाज़ को साथ ले गए तुम अपने।।

डॉ सोनिका शर्मा

Thursday, September 10, 2020

दोस्ती और प्यार

 

ज्योति का मूड आज सुबह से ही ऑफ था रात को उसने अपना मोबाइल फोन ऑफ करके चार्जिंग में लगाया और सुबह जब चार्जिंग में से फोन निकाल कर ऑन करने की कोशिश की तो फोन ऑन नहीं हुआ और उसके चक्कर में ज्योति का काफ़ी टाइम भी बर्बाद हो गया एक तो फोन ऑन भी नहीं हुआ और कॉलेज के लिए वह लेट भी हो गई आज उसके कॉलेज में प्रैक्टिकल था उसका।
आज ज्योति छोटी - छोटी बातों पर गुस्सा हो रही थीं और खीझ भी रहीं थीं। एक तो मोबाइल खराब ऊपर से कॉलेज लेट पहुंची अटेंडेंस नहीं लगी फिर प्रैक्टिकल में देर से पहुंची तो प्रैक्टिकल के लिए कोई सब्जेक्ट नहीं मिला। इसलिए ज्योति भुनभुनाती हुई प्रैक्टिकल रूम से बाहर आ कर कॉरिडोर में खड़ी हो गईं।
काफ़ी देर कॉरिडोर में रहने के बाद वह कैंटीन जाती है आज मोबाइल के चक्कर में नाश्ता भी नहीं कर पाई और भूखी ही घर से निकल आयी। कैंटीन के रास्ते में वरुण मिलता है शायद उसे ज्योति देख नहीं पाती वह अपनी धुन में कैंटीन कि ओर बढ़ी चली जाती है। वरुण जो अब तक ज्योति को बहुत अच्छे से समझ चुका हैं कि वह जब परेशान होती है तो कैसे व्यवहार करती है और जब खुश होती है तो कैसे व्यवहार करती है। ज्योति के पीछे - पीछे कैंटीन तक चला जाता है। ज्योति कैंटीन में जाकर अपने लिए कुछ खाने का आर्डर करती है तभी वरुण वहीं ऑर्डर अपने लिए भी लाने को बोलता है।
ज्योति के सामने वाली चेयर पर वरुण बैठता हैं क्या हुआ ज्योति कब से आवाज दे रहा था तुम सुन ही नहीं रही थी बल्कि तुम्हें आवाज़ देते - देते तुम्हारे पीछे - पीछे कैंटीन तक आ गया तुमने सुना ही नहीं। ज्योति ने कहा थोड़ा परेशान हूं एक्चुअली कल रात में फोन चार्जिंग में ऑफ करके लगाया और सुबह चार्जिंग में से निकालकर फोन ऑन करने की कोशिश की तो हुआ ही नहीं। पता नहीं क्या प्रॉब्लम आ गई इस चक्कर में सुबह प्रैक्टिकल क्लासेज के लिए लेट हो गई प्रैक्टिकल भी छूट गया क्योंकि सब्जेक्ट नहीं मिला कुछ ना कुछ गड़बड़ ही हो रहा है आज सुबह से।
वरुण ओहो तो तुम मोबाइल फोन ऑन न होने से परेशान है तो  उसके लिए तो तुम्हे सर्विस सेंटर जाना चाहिए मोबाइल तो वहीं बनेगा कॉलेज गलत आ गई हो तुम। ज्योति चिढ़कर ओह रियली वरुण सच में भूल ही गई कि मोबाइल सर्विस सेंटर में बनता है ना कि कॉलेज में। वरुण क्यों चिढ़ रही हो इतना एक मोबाइल ही तो खराब हुआ है बन जाएगा। ज्योति हां मालूम है पर अभी मुझे कॉलेज आना जरूरी था इसलिए मैं यहां आ गई। अब मुझे क्लास अटेंड करके ही बाहर जाना है तब तक मैं क्या करूं मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है। तभी दोनों का आर्डर टेबल पर आ जाता है आर्डर आते हैं वरुण कहता है एक काम करो पहले तो तुम खा लो और अपना गुस्सा शांत करो। मोबाइल मुझे दे दो मैं अभी जाकर उसे सर्विस सेंटर में देता हूं फिर देखता हूं कब बन कर मिलता है।
ज्योति ओह ऎस यह आइडिया तो मुझे आया ही नहीं कि तुम मेरा मोबाइल सर्विस सेंटर में जा कर बनवा सकते हो। दोनों अपना अपना ऑर्डर खत्म करते है फिर वरुण ज्योति का मोबाइल लेकर सर्विस सेंटर जाता है बनवाने। ज्योति अपने नेक्स्ट लेक्चर को अटेंड करने जाती हैं।
करीब 2 घंटे बाद वरुण ज्योति को मिलता है ज्योति क्या बन गया मेरा फोन वरुण ओ मैडम सर्विस सेंटर वाला मेरा रिश्तेदार नहीं जो तुरंत बना कर दे देता और एक स्लिप ज्योति की ओर बढ़ाते हुए ये पकड़िए मैडम दो दिन बाद मिलेगा जा कर ले लीजिएगा। ज्योति अब दो दिन सब बंद वरुण सब बंद मतलब क्या कल परसो क्लासेज नहीं होंगे? अरे नहीं मेरा मतलब है कि मेरे फोन की वज़ह से दो दिन सब बंद। वरुण हे भगवान घोर पापी लोग है एक फोन क्या खराब हुआ इनकी तो ज़िन्दगी ही बर्बाद हो गई।
ज्योति ओ प्लीज़ और बकवास सुनने का मूड नहीं हैं। वरुण अच्छा मतलब में गर्मी में धूप में इनका फोन बनने देने गया और इन्हें मेरी बातें सुनने में भी प्रॉब्लम हैं बहुत सही मैडम बहुत सही। याद करेंगी था एक बंदा जिसकी समय रहते वैल्यू नहीं की। अब देखना तुम्हारा मोबाइल लेने मैं दो दिन बाद नहीं जाऊंगा। ज्योति बकवास नहीं और धमकी मत दो मत जाना मैं खुद चली जाऊंगी हुंह।
ज्योति और वरुण दोनों बचपन से साथ पढ़े है दोनों में बहुत समानता भी हैं साथ ही दोनों के घरवाले भी बहुत अच्छे दोस्त हैं। ज्योति और वरुण भी अच्छे दोस्त ही है प्यार जैसा कुछ भी नहीं पर जहां कुछ भी ना हो वहां पर लोग कह - कह कर पैदा करवा ही देते हैं। ज्योति अपने भाई के दोस्त को बहुत पसंद करती है और उसने ये बात वरुण को भी बताई कि वह उसे पसंद करती हैं। पर वरुण ज्योति की इस बात को सीरियस्ली नहीं लेता है और बोलता है क्या खास तुम्हे उस में दिख गया तुम भी न फ़ालतू लोगों को पसंद किया करो। ज्योति हां तो तुम्हें क्या प्रॉब्लम मैं कुछ भी करूं। वरुण मैंने कब कहा कि मुझे प्रॉब्लम है मुझे क्यों बता रही ही उसको बताओ न जा कर।
वरुण कहीं न कहीं ज्योति पर अपना हक समझता हैं क्योंकि शुरू से ही वरुण ने ज्योति की दोस्ती ज्यादा किसी से रहने नहीं दी। पहले जब ज्योति स्कूल में किसी को अपना फ्रेंड बनती तो वरुण ज्योति के घर पर यह शिकायत करता कि वह सही नहीं है ज्योति से बोलिए उससे बात ना करें और दूसरे दिन ही ज्योति को वरुण की वज़ह से बात करना बंद कर देनी पड़ती थीं।
धीरे - धीरे कॉलेज खत्म हुआ अब वरुण नौकरी के लिए तैयारी करने लगा और ज्योति घर पर रहने लगीं अब दोनों स्कूल कॉलेज की तरह रोज़ नहीं मिल पाते पर अक्सर वरुण ज्योति के घर आता था। न जाने कैसे पर वरुण को ज्योति अब दोस्त से ज्यादा अच्छी लगने लगी शायद इस लिए की अब ज्योति की शादी की बात चलने लगी थीं और अब तक तो वरुण को ज्योति के साथ रहते - रहते आदत हो गई थी उसकी। इधर ज्योति और वरुण के दोस्तों ने भी कहना शुरू कर दिया था उन दोनों से कि तुम दोनों दोस्त से ज्यादा हो और कभी देखा है तुम दोनों कैसे लड़ते हो?
वरुण ये तो नहीं जानता था कि वह ज्योति को प्यार करता है कि नहीं पर यह ज़रूर था कि ज्योति की शादी की बातों से वह परेशान था और जब से कॉलेज खत्म हुए वह ज्योति को बहुत मिस कर रहा था उधर ज्योति को भी छोटी * छोटी बातों में वरुण याद आता क्योंकि दोनों को ही आदत थी एक दूसरे की। एक दिन वरुण में ज्योति से पूछा क्या हुआ तुमसे कोई शादी नहीं कर रहा है ज्योति अचानक से वरुण के सवाल पर खीझ गई तुम्हे मेरी शादी से क्या मतलब करें या न करें अरे मैं तो इसलिए बोल रहा था कि आंटी को बता दूं कि तुम भैया के दोस्त अनुज को पसंद करती हो। ये बात सुन ज्योति चुप हो गई और बोली ऐसा कुछ नहीं है और मैं पसंद नहीं करती बस अच्छे लगते थे और उनकी एक गर्लफ्रेंड भी हैं। वरुण ओह तभी आप मैडम पीछे हट गई बड़ा दुःख हुआ यह जान कर कि यहां भी आप और कुछ बोल नहीं पाया और जोर से हंसने लगा जिस पर ज्योति वरुण पर गुस्सा होने लगती है और कहती है आगे से तुम्हे कोई बात ही नहीं बताउंगी तुम इस लायक हो नहीं पर वरुण मन ही मन खुश था कि ज्योति का अनुज से अफेयर नहीं चल पाया
वरुण और ज्योति जब भी घर पर मिलते तो अक्सर ही वरुण ज्योति को किसी न किसी बात के लिए परेशान करता एक दिन ज्योति ने गुस्से में कह दिया पूरी दुनिया में कोई भी नहीं मिला तो भी में तुमसे शादी करने नहीं आऊंगी समझे। ये सुन वरुण चुप हो जाता इसके बाद ज्योति भी अपनी बात को सोच कर संकोच में आ जाती हैं कि उसने ऐसे कैसे बोल दिया उन दोनों के बीच ऐसा कुछ तो कभी था ही नहीं। उस दिन बात अाई गई हो गई पर उस दिन के बाद से ज्योति अब वरुण के सामने आने पर असहज सी हो जाती थीं और अब वह पहले की तरह वरुण से लड़ाइयां भी नहीं करती। वरुण ने ज्योति में आए बदलावों को नोटिस करना शुरू कर दिया था।
एक दिन वरुण ने ज्योति से कह ही दिया हमारे बीच ऐसा क्या हुआ जो तुम अब पहले की तरह व्यवहार नहीं करती हो क्या कोई प्रॉब्लम उस पर ज्योति ने कहा नहीं कोई बात नहीं। वरुण ने आगे बात बढ़ाते हुए कहा अगर कोई बात नहीं है तो फिर अब तुम मुझसे कतराने क्यों लगी हो मुझसे बात करने से भागती हो जो है वह बताओ मुझे। ज्योति कुछ भी नहीं पता नहीं तुम क्या - क्या सोचते रहते हो या तो आज कल रोमांटिक नॉवेल पढ़ रहे हो या कोई मूवी देखी हैं। वरुण ज्योति को टोकते हुए ये हमारे बातचीत में रोमांस कहां से आ गया मैंने तो ऐसा कुछ भी बोला नहीं ज्योति अपनी कहीं बात की वज़ह से वापस झेप जाती है और हकलाते हुए अरे मेरा मतलब था.. कि वो... वरुण बोला हां बोलो भी यह था कि वह के आगे भी बढ़ो।  ज्योति तुम न मेरी कितनी बातें पकड़ते हो जाओ अब तुमसे बात ही नहीं करेंगे आगे से। वरुण वह तो तुम आज कल नहीं कर रही पहले की तरह इसी लिए तो पूछा बताओ क्या बात है? ज्योति कहती है पता नहीं। वरुण पता नहीं से क्या मतलब। ज्योति क्या अब पता नहीं का भी कोई मतलब होता है क्या? वरुण यह तो तुम बताओगी ज्योति। ज्योति खीझती हुई ठीक है जो समझना है समझो मुझे नहीं समझाना तुम्हें कुछ भी। ज्योति वहां से उठ कर चली जाती हैं।
वरुण को अब ज्योति का व्यवहार कुछ ज्यादा ही बदला हुआ लगा और इस सब चक्करों से वरुण ज्योति को यह बता भी नहीं पाया कि आज कल वह ज्योति के लिए कुछ अलग ही फील करता है और अब वह ज्योति को बहुत मिस भी कर रहा हैं। वहीं दूसरी ओर ज्योति भी चाह कर वरुण को नहीं समझा पाई कि वह वरुण को मिस करती है उससे बात करना चाहती है और बहुत कुछ है जिसे वह वरुण से शेयर करना चाहती हैं।
दोनों ही शायद बहुत कुछ कहना तो चाहते थे पर कैसे कहें और यह क्या है जो उनके साथ हो रहा है वह समझ नहीं पा रहे थे। वरुण और ज्योति दोनों ही यह नहीं मान सकते कि वह एक दूसरे से प्यार करते थे क्योंकि दोनों ही एक दूसरे के सिर्फ अच्छे दोस्त थे उससे ज्यादा कुछ भी नहीं था दोनों में। वरुण ज्योति को पसंद तो करता था पर वह उस पसंद को प्यार का नाम नहीं देता था। इसी बीच ज्योति की शादी तय हो जाती हैं और सगाई भी। ये सब इतना जल्दी में होता है कि दोनों को ही सोचने समझने का मौका नहीं मिलता हैं। सगाई के बाद ज्योति के घर में शादी की तैयारियां होने लगती हैं और ज्योति भी उन तैयारी में लग जाती है जिस वज़ह से ज्योति अब वरुण को नहीं मिल पाती और ना ही बात ही कर पाती हैं। एक दिन वरुण बहुत हिम्मत करके ज्योति को अपने दिल की बात बताने जाता है और कोशिश भी करता हैं पर तभी उसे यह महसूस होता है कि ज्योति उस शादी से खुश हैं और अब उसका यह सब बताने से क्या होगा अब तो बहुत देर हो चुकी हैं और बिना कुछ ज्योति से कहे लौट जाता हैं। उस दिन ज्योति भी वरुण से बताना चाहती थी कि आने वाले दिनों में वह जब उससे दूर हो जाएगी तो उसे बहुत मिस करने वाली है पर वरुण को उदास और शांत देख चुप रह जाती हैं। इसके कुछ ही दिन बाद ज्योति शादी करके अपने घर चली जाती है और वरुण जो गलतफहमी में जी रहा था कि ज्योति इस शादी से खुश है उसे अपने से हमेशा के लिए दूर जाने देता हैं।


Wednesday, September 9, 2020

रजनीगंधा


रोज कॉलेज से आने-जाने का यही रास्ता है पिछले कई वर्षों से इसी एक रास्ते से कॉलेज आती-जाती हूँ आज घर आते समय हवा के तेज झोंके के साथ रजनीगंधा फूलों की सुगंध मेरी साँसों में आयी और रोम-रोम तरोताजा हो गया...... अचानक ही मेरा ध्यान उस छोटी सी दुकान की तरफ गया जहाँ से यह सुगंध आ रही थीं।
रजनीगंधा फूल की सुगंध ने जहाँ मेरे मन को तरोताजा कर दिया वही पुरानी यादों को भी ताज़ा कर दिया.... यह बात आज से बाईस साल पुरानी है उस समय मैंने स्नातक की डिग्री के लिए विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था। अभी तक की पूरी पढ़ाई मैंने गर्ल्स कॉलेज में की थी इसलिए विश्वविद्यालय जाने में एक अजीब सी हिचक और एक अजीब सा डर मन में समाया हुआ था कि क्या मैं विश्वविद्यालय के माहौल के हिसाब से अपने आप को ढाल पाऊँगी?
किसी तरह हिम्मत जुटाकर आज मैं विश्वविद्यालय गई, मेरे अंदर के छिपे डर और हिचक के भाव मेरे चेहरे पर साफ झलक रहे थे। अंदर प्रवेश करने के पश्चात मैं अपनी कक्षा की ओर बढीं तभी मेरी नज़र एक ग्रुप की तरफ गई उस ग्रुप में तकरीबन दस - बारह लड़के- लड़कियां होंगे जो कि सीढ़ी पर बैठे हुए थे उन लोगों को देखकर अनायास ही मेरी चाल तेज हो गई मुश्किल से तीन-चार कदम आगे बढ़ा पायीं ही थी कि पीछे से एक आवाज़ आई.. ओ मैडम जरा एक मिनट सुनिए। मैंने पीछे पलट कर देखा तो उसी ग्रुप से एक लड़की की आवाज़ थी अपनी उंगली से इशारा कर के मुझे अपनी ओर बुलाया और कहा "अपना इंट्रोडक्शन दो। " घबराई हुई तो पहले से ही थी उनके बुलाने पर पसीने - पसीने भी हो गई। थोड़ी हिम्मत जुटाकर अपना नाम बताया राशि अवस्थी बी. ए. फर्स्ट ईयर। आगे कुछ कहती तब तक उसी में से एक लड़की बोली- गाना सुनाओ कुछ सेकंड शांत रहने के बाद मैंने बोला मुझे गाना नहीं आता। इसी बीच एक लडका बोला - लेट हो रहा है क्लास के लिए चलो आज फर्स्ट डे है क्लास का और अगर कोई सीनियर हमलोगों को रैगिंग लेते हुए देख लेगा तो प्रोब्लम हो जाएगी।
उसका नाम शिखर था नाम तो बाद में मालूम हुआ था पर यह हमारी पहली मुलाकात थी। साँवला रंग, तीखे नैन-नक्श सामान्य सी कद-काठी एक बार को लगा था कि कोई सीनियर होगा पर वह हमारा बैच मेट निकला। कुछ तो खास था उसमें जो पहली बार देखकर और कुछ मिनटों की मुलाकात के बाद भी वह मेरे मस्तिष्क के किसी कोने में अपनी छाप छोड़ गया था। उसके बाद सामान्य सी कई मुलाक़ाते हुईं जैसे - लाइब्रेरी, कैंटीन, क्लासेज आदि में जब भी मेरा और शिखर का आमना-सामना होता तो हम एक दूसरे को स्माइल पास कर देते बस। धीरे-धीरे हम लोगों के बीच औपचारिक बातें भी होने लगी अब हम लोगों में अच्छी मित्रता हो गई थी। इतने दिनों में उसके स्वभाव का भी पता चल गया था। उसको स्वतंत्रता पसंद थी, बहुत अधिक व्यवहार कुशल, मस्त-मौला, सबकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहने वाला और पढ़ाई को कभी भी सीरियसली नहीं लेता था इसका कारण एक यह भी हो सकता है कि उसके पिता शहर के मशहूर बिजनेस मैन थे और साथ ही रूलिंग पार्टी के नेता थे।
मेरा स्वभाव उससे बिल्कुल विपरीत था मैं मध्यम वर्ग से आती जहाँ पढाई को बहुत अधिक महत्व दिया जाता था मेरा स्वभाव उसकी तुलना में काफी शांत मेरी मित्रता भी सीमित ही लोगों तक थी। धीरे-धीरे हम दोनों को साथ-साथ रहते हुए तीन साल गुजर गए इन तीन सालों में न उसने कभी भी अपने मन की कोई बात मुझसे की और न ही मुझसे मेरे मन की बात पूछी बस एक खास बात थी कि इधर एक डेढ़ साल से मेरे लिए अक्सर रजनीगंधा के फूल लाता और जब मैं पूछती यह किस लिए तो बोलता " तुम्हारे जैसे फूल तुम्हारे लिए। " तुम्हें पसंद है यह फूल मुझे रास्ते में मिले मैं ले आया।
धीरे-धीरे तीन साल हो गए और अब हम लोग ग्रेजुएट हो गए आगे की पढ़ाई के लिए हम दोनों ने एक ही सब्जेक्ट से पी. जी. के लिए एडमिशन लिया। अब तक हम दोनों के बीच दोस्ती से कुछ ज्यादा और भी कुछ था पर न वो कुछ कहता और न ही मैं कुछ कहती। धीरे-धीरे एक साल और बीत गया हम लोगों के बीच एक खास बात थी हमलोगों में कभी भी मतभेद नहीं हुए शायद इसलिए क्योंकि हम दोनों ने एक दूसरे को पूरा स्पेस दे रखा था। अब हमारा पी. जी. का फाइनल ईयर था अब वह मेरा ध्यान पहले से ज्यादा रखने लगा था। धीरे-धीरे हम अपने मन के भावों को व्यक्त भी करने लगे पर अभी भी हमने अपने मध्य हुए प्रेम को एक दूसरे से नहीं कहा।
समय को मानो पंख से लग गये हमारा पी. जी. भी पूरा होने को आया। इसी बीच हमारे विभाग से एक एजुकेशनल टूर जाने का प्रोग्राम बना जिसमें बाहर जाना था मैं जाने के लिए बहुत उत्साहित थी मगर घर में मेरे इस टूर पर जाने की इच्छा को एक सिरे से नकार दिया गया। दूसरे दिन मैंने अपने न जा पाने की बात शिखर को बताई तो उसने अपना जाने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया मैंने पूछा तुम क्यों नहीं जा रहे हो तो वह बोला "जहाँ राशि नहीं वहां शिखर जाकर क्या करेगा ।" मैं अवाक् सी रह गई क्योंकि आज पहली बार उसने मुझसे ऐसा कुछ कहा। मन ही मन मै बहुत खुश थी।
कुछ ही दिनों बाद.... आज हमारी फेयरवेल पार्टी थी मुझे पूरी उम्मीद थी कि वह अपने मन की हर बात मुझसे कहेगा.... पर वह वहां आया ही नहीं मुझे बहुत खराब लगा मै भी बीच पार्टी में से निकल गई वह मुझे बाहर मेन गेट पर खड़ा मिला मैं उस से गुस्सा थी और उसे एवाइड कर के आगे बढ़ना चाहती थी पर उसने मुझे बीच में रोकते हुए कहा "हो गई पार्टी मेरे बिना। " मैंने कोई जवाब नहीं दिया उसने पूछा गुस्सा हो? मैंने कहा- नहीं। तो मुझे एव्वाइड क्यों कर रही थी अभी? मैंने कहा क्यों एव्वाइड भी नहीं कर सकती क्या मैं अब। तुम पार्टी में न आओ तो सही और मैं गुस्से में एव्वाइड भी नहीं कर सकती..... यह कह कर मैं रोने लगी आज इतने सालों में पहली बार मैंने उससे इस तरह से बात की थी।
उसने मेरे हाथों को अपने हाथ में लेकर मुझसे कहा - "राशि क्या तुम्हें भी मेरी कमी महसूस होती है, क्या तुम भी मुझे हर समय अपने साथ चाहती हो?" इन सवालों में उसने अपने मन के भावों को खोलकर मेरे सामने रख दिया था मैंनें हां में सहमति देकर अपने मन के भावों को उसके सामने खोल कर रख दिया। अब हम बाहर भी मिलने लगे क्योंकि हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और मैंने आगे पी. एच. डी. में प्रवेश ले लिया था और वह अपने पिता का बिजनेस संभालने लगा था।
हमारे बाहर मिलना रोज की बात हो गई थी इधर मेरे घर में मेरे शादी की बातों ने जो पकड़ लिया था पर मैंने शिखर पर शादी का कोई दवाब नहीं डाला क्योंकि उसने मुझसे कभी शादी के बारे में कहा ही नहीं था। उसे आजादी पसंद थी और मुझे लगता था कि शादी को वह बंधन न समझ बैठे वैसे भी हमारे प्रेम में न कसमें थी, न वादे थे, था तो सिर्फ समर्पण। सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक एक दिन सुबह-सुबह मेरे फोन की घंटी बजी हमारी कॉमन फ्रेंड की काॅल आयी- राशि क्या तुम्हें पता चला? मैंने पूछा क्या - अरे शिखर का कल रात एक्सीडेंट हो गया एंड ही इस नो मोर... यह सुनकर मैं सन्न रह गई।
आज भी मानों शिखर की बातें मेरे कानों में गूंजती है उसके जाने के बाद मैंने रजनीगंधा फूलों को हाथ नहीं लगाया इसी उम्मीद में कि शायद शिखर एक बार फिर रजनीगंधा के फूलों को लेकर मेरे सामने आकर खड़ा हो जाये और कहें- "तुम्हारे जैसे फूल तुम्हारे लिए।" आज भी शिखर का इंतजार कर रही है राशि......


Saturday, September 5, 2020

औरत का अपना घर नहीं होता

 

मां तुम कहती थीं
एक दिन तेरा अपना घर होगा
जहां तेरा अपना सब कुछ होगा
उसे छोड़ कभी जाना न होगा
पर मां तुमने यह बात नहीं बताया कभी
कि तुम सिर्फ बहलाया करती थी तब भी
औरत का कोई अपना घर होता नहीं कभी
इतनी सी बात मां तूने समझाई क्यों नहीं कभी।।

मां तुम कहती थीं
अपने घर में राज करना
अपने घर में जा मनमानी करना
अपने सपनों का घर बनाना
पर मां तुमने यह बात नहीं बताया कभी
कि तुम सिर्फ बहलाया करती थी तब भी
औरत का कोई अपना घर होता नहीं कभी
इतनी सी बात मां तूने समझाई क्यों नहीं कभी

मां तुम कहती थीं
बेटी तो पिता के लिए पराई
बहू है तो पराए घर से है आई
औरत तो हमेशा से रही पराई
पर मां तुमने यह बात नहीं बताया कभी
कि तुम सिर्फ बहलाया करती थी तब भी
औरत का कोई अपना घर होता नहीं कभी
इतनी सी बात मां तूने समझाई क्यों नहीं कभी।।

भगवान ने भी क्या किस्मत है बनाई
घर तो दो दिए पर नज़रों में दोनों के पराई
पिता का बोझ तो पति की जिम्मेदारी हुई
पर मां तुमने यह बात नहीं बताया कभी
कि तुम सिर्फ बहलाया करती थी तब भी
औरत का कोई अपना घर होता नहीं कभी
इतनी सी बात मां तूने समझाई क्यों नहीं कभी।।

डॉ सोनिका शर्मा


Thursday, September 3, 2020

श्राद्ध

राकेश जी हर साल की तरह इस साल भी अपने घर में अपने दादी बाबा और अपनी मां का श्राद्ध करने वाले है। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि करोना जैसी महामारी फैली हुई है। वह अपनी ही धुन में मस्त है उनको जो करना है वह करना है फिर दुनिया चाहे जाए भाड़ में। राकेश जी आज इस उम्र के पड़ाव में आकर ऐसे नहीं हुए वह शुरू से ही ऐसे था उन्हें कभी किसी बात का कोई फर्क नहीं पड़ता जो उन्हें करना है वह करेंगे।

राकेश जी आज पूरा घर सर पर उठाए थे आज तड़के चार बजे से ही उनके घर से आवाजें आने लगी थीं वह पत्नी सुधा पर ज़ोर - ज़ोर से चिल्ला कर डांट रहे है अभी तक खाना नहीं बना पंडित के आने का समय हो चुका पता नहीं क्या कर रही हो। सुधा जी आदतन बिना जवाब दिए काम किए जा रही थीं। अब तक उन्हें राकेश जी के बड़बड़ाने की आदत पड़ चुकी थीं।
इसी बीच राकेश जी के पिताजी के कमरे से आवाज़ आती है आज कोई चाय पानी पूछेगा बूढ़े को या भूल गए।अब तो बारह बजने को आए है। उनकी आवाज़ सुन राकेश जी गुस्से में तमतमाते हुए उनके कमरे में जाते है और कहते है बाबू जी कल बताया था आज श्राद्ध है आज चाय पंडितों के खाना खाने के बाद ही मिलेगी फिर भी घर सर पर उठा रखा है। आप तो बचपने में चले गए हैं कम से कम उम्र का लिहाज रखिए। बाबू जी सिर झुकाए राकेश जी की पूरी बात सुनते है और फिर कहते है बेटा एक बात कहूं मेरे न रहने पर मेरा श्राद्ध न करना क्योंकि मैं नहीं चाहता कि जब तेरा बेटा हमारा श्राद्ध करे तो तुम्हें भूखा रहना पड़े।
राकेश जी अपने बाबूजी के मुंह से यह बात  सुन स्तब्ध रह गए। बाबूजी ने आगे कहा बेटा जो जीवित है उनको कष्ट दे कर भूखा रख कर पितरों को संतुष्ट करना कहां की रीति हैं? ज़िंदा बाप भूखा रहे और जो नहीं है संसार में उनके लिए इतना आडंबर क्यों?
बेटा राकेश याद है तुझे जब मैं तुम्हारे दादी बाबा का श्राद्ध करता था और तुम्हें स्कूल जाना होता था तब मैंने कभी भी तुझे भूखा घर से नहीं जाने दिया चाहे तब तक पंडित आ कर खा चुके हो या नहीं पर तुम्हें पितरों के भोजन के लिए भूखा स्कूल नहीं भेजा फिर आज इस बूढ़े बाप और बाकियों को क्यों भूखा प्यासा रखें हो।
हमारे पितृ हमारे घर आते है पर वह यह तो नहीं कहते कि जो जीवित है उन्हें भूखा रख कर उन्हें खाना खिलाओ। पितरों को खाना खिलाओ संतुष्ट करो पर जो जीवित है उन्हें कष्ट मत दो ऐसे भोजन से पितर भी संतुष्ट नहीं होंगे।
आज शायद राकेश जी को जीवन की बहुत बड़ी सीख मिली और वह चुपचाप जा कर आंगन में शांति से बैठ गए। थोड़ी ही देर में सुधा जी बाबू जी के लिए चाय कमरे में ले कर जाती है।


डॉ सोनिका शर्मा

Wednesday, September 2, 2020

तुम कहते नहीं

 

हमें तुमसे मोहब्बत है तुम्हें हमसे मोहब्बत है
मगर इतनी सी है यह बात कि तुम कहते नहीं और मैं छुपाती नहीं।।

तुम्हारे जज़्बात ऐसे है बिना बोले ही जिसे समझूं मैं
मगर इतनी सी है यह बात कि तुम बताते नहीं और मैं छुपाती नहीं।।

बस तुझमें और मुझमें इतना ही फर्क तो है
मैं दिल की हर बात बताती हूं और तुम हर बात बताते नहीं।।

मेरे लिए हो तुम खास और तुम्हारे लिए हूं खास मैं
यह एहसास तुम महसूस कराते नहीं और मैं कराने से खुद को रोक पाती नहीं।।


तारों वाली कोठी (भाग 2)

 श्री इसी उधेड़बुन में थी कि वह कैसे उत्कर्ष तक पहुंचे या उससे बात हो पाए या उससे मुलाकात| अचानक उसके दिमाग में एक विचार आता है आज के युग मे...