Thursday, September 3, 2020

श्राद्ध

राकेश जी हर साल की तरह इस साल भी अपने घर में अपने दादी बाबा और अपनी मां का श्राद्ध करने वाले है। उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि करोना जैसी महामारी फैली हुई है। वह अपनी ही धुन में मस्त है उनको जो करना है वह करना है फिर दुनिया चाहे जाए भाड़ में। राकेश जी आज इस उम्र के पड़ाव में आकर ऐसे नहीं हुए वह शुरू से ही ऐसे था उन्हें कभी किसी बात का कोई फर्क नहीं पड़ता जो उन्हें करना है वह करेंगे।

राकेश जी आज पूरा घर सर पर उठाए थे आज तड़के चार बजे से ही उनके घर से आवाजें आने लगी थीं वह पत्नी सुधा पर ज़ोर - ज़ोर से चिल्ला कर डांट रहे है अभी तक खाना नहीं बना पंडित के आने का समय हो चुका पता नहीं क्या कर रही हो। सुधा जी आदतन बिना जवाब दिए काम किए जा रही थीं। अब तक उन्हें राकेश जी के बड़बड़ाने की आदत पड़ चुकी थीं।
इसी बीच राकेश जी के पिताजी के कमरे से आवाज़ आती है आज कोई चाय पानी पूछेगा बूढ़े को या भूल गए।अब तो बारह बजने को आए है। उनकी आवाज़ सुन राकेश जी गुस्से में तमतमाते हुए उनके कमरे में जाते है और कहते है बाबू जी कल बताया था आज श्राद्ध है आज चाय पंडितों के खाना खाने के बाद ही मिलेगी फिर भी घर सर पर उठा रखा है। आप तो बचपने में चले गए हैं कम से कम उम्र का लिहाज रखिए। बाबू जी सिर झुकाए राकेश जी की पूरी बात सुनते है और फिर कहते है बेटा एक बात कहूं मेरे न रहने पर मेरा श्राद्ध न करना क्योंकि मैं नहीं चाहता कि जब तेरा बेटा हमारा श्राद्ध करे तो तुम्हें भूखा रहना पड़े।
राकेश जी अपने बाबूजी के मुंह से यह बात  सुन स्तब्ध रह गए। बाबूजी ने आगे कहा बेटा जो जीवित है उनको कष्ट दे कर भूखा रख कर पितरों को संतुष्ट करना कहां की रीति हैं? ज़िंदा बाप भूखा रहे और जो नहीं है संसार में उनके लिए इतना आडंबर क्यों?
बेटा राकेश याद है तुझे जब मैं तुम्हारे दादी बाबा का श्राद्ध करता था और तुम्हें स्कूल जाना होता था तब मैंने कभी भी तुझे भूखा घर से नहीं जाने दिया चाहे तब तक पंडित आ कर खा चुके हो या नहीं पर तुम्हें पितरों के भोजन के लिए भूखा स्कूल नहीं भेजा फिर आज इस बूढ़े बाप और बाकियों को क्यों भूखा प्यासा रखें हो।
हमारे पितृ हमारे घर आते है पर वह यह तो नहीं कहते कि जो जीवित है उन्हें भूखा रख कर उन्हें खाना खिलाओ। पितरों को खाना खिलाओ संतुष्ट करो पर जो जीवित है उन्हें कष्ट मत दो ऐसे भोजन से पितर भी संतुष्ट नहीं होंगे।
आज शायद राकेश जी को जीवन की बहुत बड़ी सीख मिली और वह चुपचाप जा कर आंगन में शांति से बैठ गए। थोड़ी ही देर में सुधा जी बाबू जी के लिए चाय कमरे में ले कर जाती है।


डॉ सोनिका शर्मा

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