Thursday, July 17, 2025

अब लगता है उम्र हो रही हैं

 अब लगता है उम्र हो रहीं हैं 

चेहरे से नहीं 

बालों से नहीं 

इस लिए भी नहीं की भर रहा हैं शरीर 

ऐसा नहीं कि यह सब आइना दिखा या बता रहा है 

इस लिए कि अब फर्क़ पड़ना बंद हो गया 

कि कोई क्या सोचता है कोई क्या बोलता है पीठ पीछे 

अब जो नहीं समझ आता उससे दूरी बना लेती हूँ 


अब लगता है उम्र हो रही है 

खुद को प्राथमिकता देती हूँ 

खुद की खुशियाँ खुद का सूकून पहले चुनती हूँ 

चुप रहती हूँ,  मुस्करा देती हूँ और जहां कोई गलत हो उसे सुधारती भी नहीं 

अब किसी से कोई बहस नहीं करती 

थोड़ी स्वार्थी हो गई हूँ 


अब लगता है उम्र हो रही है 

अब तो तुम रूठे हम छूटे की सोच बना ली है 

किसी के पीछे भागने और मनाने से अलग हो गई हूँ 

कोई दूरी बनाए मुझसे तो अब अखरता नहीं 

खुशी- खुशी खुद को मुक्त पाती हूँ 


अब लगता है उम्र हो रही हैं 

मौन भाता है 

सुनना और सुनाना अब पसंद नहीं 

भावनाओं को बिना बोले समझने लगी हूँ 

इंसान को पहचानने लगी हूँ 

परखना अब जरूरी नहीं है 

खुद को ढूंढने लगी हूँ 

खुद की इच्छा को वरीयता देने लगी हूँ 


अब लगता है उम्र हो रही हैं 

कोई मिले तो अच्छा कोई ना मिले तो अच्छा 

गिने चुने लोगों को अपनाती हूँ 

पुराने के पीछे भागती नहीं नए को अपनाती नहीं 

अपने पर अपना वर्चस्व समझती हूँ

किसी के हाथों में खुद के खुशियाँ की डोर नहीं देती 

अब कुछ बुरा होना आशंकित नहीं करता 

अच्छा होने का इंतजार नहीं करती 


अब लगता है उम्र हो रही है 

खुद को खुद ही खुश कर लेती 

किसी के इंतजार में नहीं बैठती 

खुद को जो चाहिए खुद ही ले लेती 

अब किसी के देने का इंतजार नहीं करती 

अब लगता है उम्र हो रही 

बदलाव हो रहे हैं 

ठहराव आ रहा हैं 


अब लगता है उम्र हो रही है 

आइना नहीं बता रहा 

पर सब बदल रहा है 

अब लगता है उम्र हो रही है।।

इस जहाँ में न सही उस जहाँ में

 उम्मीद है एक अब 

हम फिर मिलेंगे इस जहाँ में न सही उस जहाँ में


वह सब करेंगे जो करना चाहते थे इस जहाँ में,

सपनों को पूरा करेंगे, जो पूरा न कर पाए इस जहाँ में 

साथ जीना तो है, इस जहाँ में ना सही उस जहाँ में

बहुत सपने हैं, आशाएं हैं, उम्मीदें हैं वह सब पूरे करेंगे तेरे साथ इस जहाँ में ना सही उस जहाँ में।


उम्मीद है एक अब 

हम फिर मिलेंगे इस जहाँ में न सही उस जहाँ में


जो तुम्हारे बंधन है यहाँ, वहाँ ना होंगे 

जो मेरी बंदिशें हैं यहाँ,वहाँ न होगीं 

ना तुम किसी के होगे ना हम किसी के होंगे

होंगे तो हम सिर्फ एक दूसरे के होंगे उस जहाँ में।


उम्मीद है एक अब 

हम फिर मिलेंगे इस जहाँ में ना सही उस जहाँ में 


कहते हैं लोग कोई जहाँ नहीं होता पर मेरा यकीन करना 

हम फिर मिलेंगे इस जहाँ में ना सही उस जहाँ में।।

Wednesday, July 16, 2025

चुप्पियां

 नंदिता एक 28 वर्षीय महिला है, जो एक छोटी सी कंपनी में एक उच्च पद पर काम करती है। उसकी ज़िन्दगी बहुत ही सुसंगत और व्यवस्थित दिखती है। लोगों के बीच उसकी छवि एक आत्मविश्वासी और सशक्त महिला की है, जिसे अपने जीवन पर नियंत्रण पूरी तरह से है। लेकिन असल में वह एक गहरी अंदरूनी चुप्पी की चपेट में है।

नंदिता का बचपन बहुत ही कठिन था। उसके माता-पिता का तलाक हो गया था और वह दोनों के बीच के तनाव का हिस्सा बन गई थी। उसकी माँ ने हमेशा उसे यह सिखाया कि, "दुनिया को दिखाने के लिए हमेशा खुश रहो।" इसी सीख के तहत, नंदिता ने कभी अपनी परेशानी को सामने नहीं आने दिया। वह हमेशा अपनी असली भावनाओं को छिपाने की कोशिश करती रहीं।

लेकिन एक घटना ने उसकी ज़िन्दगी को हमेशा के लिए बदल दिया। जब वह 22 साल की थी, उसने किसी से प्रेम करने की गलती कर दी जबकि अपने माता पिता के नाकाम रिश्ते को करीब से देखा था और उस ने माता पिता के अलगाव के दंश को झेला भी था। एक करीबी दोस्त ने उसे धोखा दिया था। उस व्यक्ति ने उसकी आँखों के सामने उसकी भावनाओं के साथ खेला था। सब कुछ देखते समझते हुए भी वह सब कुछ चुप चाप देखती रहीं। उस शख्स के जाने के बाद नंदिता ने खुद से वादा किया कि वह कभी किसी को अपने दिल का हाल नहीं बताएगी। वह उसी घाव के साथ जीने लगी, और धीरे-धीरे अपने आपको समाज के सामने मजबूत दिखाने लगी।


इसी बीच नंदिता की जिंदगी में उसकी बचपन की दोस्त रागिनी वापस आती है। जिस शहर में नंदिता रहती थीं उसी शहर में उसके पति का तबादला हुआ था। रागिनी और नंदिता बचपन से ही दोस्त थे और दोनों अलग-अलग शहर में रहते जरूर थे लेकिन जब भी मौका मिलता था वह मिलते थे और फोन पर एक दूसरे का खोज खबर रखते थे। रागिनी नंदिता को और उसकी सच्चाई को समझती थी। वह जानती थी कि नंदिता के भीतर कुछ बहुत गहरे घाव हैं, लेकिन वह कभी भी उसे मजबूर नहीं करती थी। रागिनी ने हमेशा नंदिता को सपोर्ट किया, लेकिन कभी भी उसने नंदिता के अतीत के बारे में खुलकर बात करने को नहीं कहा। वह जानती थी कि नंदिता जब तक तैयार नहीं होगी, तब तक वह उसे कोई भी सलाह नहीं दे सकती।

रागिनी की यह चुप्पी कभी-कभी नंदिता को परेशान करती थी। वह चाहती थी कि कोई उसे अपनी वास्तविकता दिखाने का मौका दे, लेकिन वह खुद कभी अपने घावों को शब्दों में नहीं बदल पाई। रागिनी हमेशा उसकी मदद करने की कोशिश करता थी, लेकिन नंदिता अनजाने में उसे अपने से दूर करती जाती थी। 

इसी बीच रागिनी ने नंदिता को बताया की उसके पापा नंदिता से मिलना चाहते हैं उन्हें अपने की हुई गलती पर अब पश्चाताप हो रहा है और वह नंदिता और उसकी मां को वापस अपनी जिंदगी में लाना चाहते हैं और एक नए परिवार के रूप में नए जीवन की शुरुआत करना चाहते हैं। यह सब सुनकर नंदिता अंदर तक हिल जाती है। उसे पुरानी बातें वापस से याद आने लगती हैं कैसे उसके माता-पिता के बीच में रोज-रोज लड़ाई झगड़े होते थे, कैसे वह झगड़ा बहस गाली गलौज और कभी-कभी मारपीट तक चले जाते थे कैसे उसके माता-पिता ने अपने मत भेदों के चलते अलग होने का फैसला ले लिया और नंदिता और उसकी भविष्य के बारे में एक बार भी नहीं सोचा कैसे उसे पूरी जिंदगी बिना पिता के अपना जीवन जीना पड़ा उसे पिता के होते हुए अपनी मां की आंखों में सुनापन देखा माँ की आंखों में अपने पिता का इंतजार देखा। जब जब जिंदगी में उसे पिता की जरूरत हुई कैसे वह अकेले खुद से लड़ती रही।


रागिनी की बातों से नंदिता तनाव में आ गई। जिससे नंदिता की पुरानी यादें ताज़ा हो गई, और वह लगातार यह महसूस कर रही थी कि वह कहीं ना कहीं टूट रही है। एक शाम, जब वह ऑफिस से घर जा रही थी, वह अचानक रागिनी की कॉल आती हैं । रागिनी ने नंदिता से बात करने के दौरान पाया कि नंदिता बहुत परेशान और तनाव में है, रागिनी ने नंदिता को अपने घर आने को बोला साथ ही यह भी बताया कि उसके पति शहर से बाहर कुछ काम से गए है और उसे अकेले अच्छा नहीं लग रहा तो वह उसके पास आ जाये इस बात को सुनकर पहले नंदिता ने मना किया बोला ऑफिस का प्रोजेक्ट है उस पर काम करना है और उस प्रोजेक्ट को लेकर वह बहुत परेशान हैं। तभी रागिनी कहती है कोई नहीं तुम नहीं आ सकती हो तो मैं तुम्हारे घर आ जाती हूं और कुछ ना कुछ तो मैं तुम्हारे प्रोजेक्ट में तुम्हारी हेल्प करा दूंगी तुम परेशान बिल्कुल ना हो यह सुनकर नंदिता कहती है ऐसा कुछ नहीं है चलो मैं ही तुम्हारे घर आती हूं।

नंदिता कुछ देर में रागिनी के घर पहुंच जाती है। रागिनी नंदिता को अपने घर आया देखकर बहुत खुश होती है उसके लिए कॉफी बना कर लाती है। अपनी और उसकी काफी के कप को रख कर साथ बैठ जाती है। रागिनी साफ़ साफ़ देख सकती थीं कि नंदिता बहुत परेशान है उसके चेहरे पर तनाव,परेशानी, डर सब कुछ साफ नजर आ रहा था।


रागिनी ने कहा, "नंदिता, क्या तुम मुझसे बात करना चाहोगी? मुझे पता है कि तुम बहुत कुछ महसूस कर रही हो।"


नंदिता ने एक लंबी चुप्पी के बाद कहा, " रागिनी, मुझे नहीं लगता कि मैं अब किसी से बात कर सकती हूँ। यह सब बहुत गहरा हो गया है। मैं तुम्हें परेशान नहीं करना चाहती।"

लेकिन रागिनी ने उसे हल्के से कहा, "नंदिता, तुम कभी भी मुझे परेशान नहीं कर सकती। मैं तुम्हारी दोस्त हूँ, और तुम्हारी चुप्पियों को समझ सकती हूँ।"


नंदिता की आँखों में आंसू थे। वह धीरे-धीरे खुलने लगी, और उसने अपनी पूरी कहानी रागिनी को बताई। कैसे वह माता पिता के अलगाव से उबर नहीं पायी थीं कि एक शख्स उसकी जिन्दगी में आता, उसने बताया कि कैसे उसे धोखा दिया गया था, और कैसे उस धोखे ने उसकी दुनिया को पलट दिया था। उसने बताया कि कैसे उसने कभी अपने दर्द को बाहर नहीं आने दिया, क्योंकि वह यह नहीं चाहती थी कि कोई उसे कमजोर समझे। अब जब से तुमने बताया कि पापा वापस आना चाहते है मेरी रातों की नींद उड़ गई है समझ नहीं आता क्या करूँ, कैसे विश्वास करूँ, कैसे अपने माँ के दर्द को हरा कर दूं। नंदिता कहती है -  रागिनी चाहे कुछ भी हो जाए कुछ गलतियां ऐसी होती हैं जिंदगी में जिनका पश्चाताप नहीं होता और मेरे पिता ने कोई गलती नहीं कि उन्होंने तो वह गुनाह किया है जिसका पश्चाताप अब इस जिंदगी में तो संभव नहीं है।


रागिनी ने उसे धैर्य से सुनती, और फिर उसने कहा, "तुमने बहुत संघर्ष किया है, नंदिता। माता पिता का साथ उनका प्रेम एक बच्चे के लिए उसके भविष्य के लिए कितना जरूरी होता है लेकिन अब तुम्हारा उस घाव से बाहर निकलने का समय आ गया है। तुम अपनी कहानी को दुनिया से छिपा नहीं सकती। तुम्हें खुद से प्यार करना होगा, और अपनी असली भावनाओं को स्वीकार करना होगा।"


रागिनी नंदिता के आँसू पोछते हुए कहा, "तुम सही कहती हो। मुझे अपनी असली भावना को पहचानने और स्वीकार करने की जरूरत है। मुझे खुद को धोखा देना बंद करना होगा।"


नंदिता ने उस दिन से अपनी ज़िन्दगी में बदलाव लाने का निर्णय लिया। उसने अपने भीतर की चुप्पी को तोड़ने का फैसला किया और अपने पिता को उस गुनाह के पश्चाताप का दूसरा मौका न देने का फैसला लिया।

Tuesday, July 15, 2025

बाबा उर्फ अभय सिंह

 आजकल अखबार खोलिए या टीवी में न्यूज़ चैनल चलाइए या मोबाइल में रील या गूगल यूट्यूब खोलिए चारों तरफ बस एक ही चर्चा कुंभ 2025। जैसा की सुनने में आया है यह अफवाह उड़ गई कि यह जो इस साल का कुंभ है यह 144 वर्ष में एक बार आएगा जिसका कोई भी आधिकारिक साक्ष्य नहीं है किस तथ्य में कितनी सत्यता है कि कुछ ज्ञात नहीं। यह कुम्भ 144 साल में एक बार वाला है या 12 साल में एक बार पड़ने वाला है हम इन किसी भी बातों में ना पड़ते हुए मुख्य मुद्दे पर आए।

मेरा आज का यह लेख लिखने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ आईआईटी बाबा जैसे बाबा हैं ना तो मैं कुंभ के बारे में लिखना चाहती हूं या यह जो कुंभ में 144 साल और 12 साल का मतभेद चल रहा है उसे पर लिखना चाहती हूं यह कुंभ कैसा रहा या कैसा नहीं रहा क्या उसमें अच्छाइयां थी वहां के तैयारी में क्या कमियां रह गई इस पर मैं कुछ भी चर्चा नहीं करना चाहती क्योंकि यह मेरे लेखन का विषय नहीं है ।

आईआईटी बाबा भी मेरे लेखन का विषय नहीं है सिर्फ मेरी इच्छा यह हुई कि जितने भी लोग मेरे लेखन को पढ़ें उनसे मैं अपनी बात को पहुंचा सकूं यह जो मीडिया है जो आईआईटी बाबा को बहुत तूल दे रही है यह कोई बहुत बड़ा अच्छा काम नहीं किया हैं उस बाबा ने।

हमारा आपका सभी का जीवन कोई परफेक्ट नहीं हैं किसी के जीवन में कभी न कभी किसी न किसी चीज की कमी रही होगी लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि हम उससे प्रभावित होकर अपने जीवन की दिशा और दशा दोनों को बदल दे। आईआईटी बाबा जो बाबा बन गए जिनको यह मीडिया बाबा की उपाधि दे रही है मैं उसे बाबा नहीं एक मनुष्य, साधारण मनुष्य की दृष्टि से देखती हूं कि एक लड़का जिसका जन्म होता है साधारण परिवार में इसके मां-बाप हमारे मां-बाप की तरह या हम यह आज 2000 की पीढ़ी की बात ना करके उससे पहले की बात करें तो हम सभी के माता-पिता में हम लोगों को पढ़ने के लिए साम दाम दंड भेद की प्रक्रिया को अपनाते थे। किसी के यहां बच्चों को सुधारने के लिए मारपीट की जाती थी, किसी को डांट फटकार के और किसी को प्यार से ही समझा दिया था। अलग-अलग माता-पिता अलग-अलग तरीके से अपने बच्चों के साथ व्यवहार करते थे और माता-पिता को यह पूरा अधिकार था कि वह अपने बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार कर सकते हैं इसमें किसी का भी हस्तक्षेप नहीं था और हम भी उस पीढ़ी के बच्चे हैं हमने भी अपने माता-पिता की डांट मार और उलाहना को झेला है और अपनी दशा और दिशा को संवारा है। रही बात आईआईटी बाबा या उस लड़के की जिसके घर का माहौल, उसके माता-पिता के आपसी संबंध, उसके साथ उसके माता-पिता के संबंध, उसके साथ होने वाला व्यवहार मैं मानती हूं अच्छा नहीं होगा। उसे लड़के का या कहना कि मेरे घर में जो भी होता था उससे उसकी यह दशा हुई लेकिन मुझे यहां पर यह नहीं समझ में आया कि उससे उसकी यह दशा क्यों हुई उसने उस दशा को खुद समृद्धशाली क्यों नहीं बनाया। उसने खुद से यह प्रण क्यों नहीं किया कि मैं एक समृद्ध और प्रतिष्ठित व्यक्ति बनूँगा परिस्थितियों से भागना ही क्यों उसने उचित समझा, अपने नाकाम प्रेम को अपनी कमजोरी क्यों बनाई । हर वह इंसान जो मेरे लेख को पढ़ रहा है या मेरा लेख जिसके पास पहुंच रहा है उसके जीवन में भी नाकाम प्रेम हुआ होगा और उसने उस नाकाम प्रेम की वजह से क्या अपने जीवन की दशा को बर्बाद कर दिया या उसने अपनी उस स्थिति को अपने ऊपर हावी होने दिया, या फिर खुद पर हावी न होने देते हुए खुद को संभाल कर आगे बढा।

परिस्थितियों से भागना आसान है यह कहना गलत है परिस्थितियों से भागना गलत है और कठिन है आसान नहीं है लेकिन भागना क्यों लोग कहते हैं कि वह परिस्थिति से भाग कर बाबा बनकर आराम से जीवन जी रहा है, यह बात कहने से पहले सोचिए आप सभी इतना पढ़ना लिखना और इतनी उपलब्धियां हासिल करने के बाद एक बाबा का जीवन जीना बहुत कठिन है ज्ञान उसके पास भरपूर है और वह उसको गुमनामी की जिंदगी जी के व्यर्थ कर रहा हैं यह भी कठिन है आप इस बात को ऐसे सोचिए ना कि आप जरूरत से ज्यादा पढ़े लिखे हैं आप बौद्धिक स्तर और शैक्षणिक स्तर पर सामर्थ्यवान है और उसके बाद आप एक गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं ।

यह बहुत कष्टप्रद होता है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि अगर वह आसान नहीं है कठिन है तो हम उस कार्य को करें हम गुमनामी की जिंदगी जिए नहीं।

मेरा मानना है कि आपके माता-पिता के आपसी संबंध अच्छे नहीं थे, आपके माता-पिता ने आपके ऊपर हर तरह का भावात्मक जोर डाला, आप प्रेम में नाकाम रहे आपके जीवन में बहुत सारी असफलताएं रहीं लेकिन आपने उन असफलताओं को क्यों देखा आपने उन सफलताओं को नहीं क्यों नहीं देखा कि उन कठिन परिस्थितियों में आप कहां-कहां सफल हुए जिसे हम लोग कहते हैं कि आप फाइटर थे अगर इतनी सारी समस्याएं थी और उसमें आप इस स्थिति में पहुंचे तो इसका मतलब आप बहुत बड़े योद्धा थे और आगे भी आपको अपने जीवन में एक योद्धा बन कर उसे समृद्धशाली बना सकते थे फिर यह बाबा बनना आपको उचित क्यों लगा।

मैं इस आईआईटी बाबा के आचरण और चरित्र का कोई भी आकलन नहीं कर रही मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य मात्र अपनी युवा पीढ़ी से एक अनुरोध मात्र है परिस्थितियां कैसी भी हो संघर्ष करना ना छोड़े सफ़लता मिलने मे देर हो सकती यह भी सम्भव हो मनोनुकूल सफ़लता ना मिले पर हार कर छोड़ देना समझदारी नहीं है।

Saturday, March 11, 2023

तारों वाली कोठी (भाग 2)

 श्री इसी उधेड़बुन में थी कि वह कैसे उत्कर्ष तक पहुंचे या उससे बात हो पाए या उससे मुलाकात| अचानक उसके दिमाग में एक विचार आता है आज के युग में हर कोई फेसबुक पर होता है तो क्यों ना उत्कर्ष को भी फेसबुक पर ढूंढा जाए शायद वह मिल जाए और श्री उत्कर्ष को फेसबुक खोलकर सर्च करने लगती है फेसबुक भी तो एक ऐसी दुनिया है जहां एक नाम से हजारों शख्स होते हैं ऐसा ही हुआ जैसे ही में फेसबुक पर उत्कर्ष डालकर सर्च किया उसके सामने बहुत सारे उत्कर्ष नाम के अकाउंट आ गए अब वह और परेशान हो गई कि वह उसको कैसे ढूंढे जिससे आज दिन में मिली थी इसी उधेड़बुन में एक-एक करके उसने सारे अकाउंट धीरे-धीरे चेक करना शुरू किया उन्हीं अकाउंट में से एक अकाउंट उत्कर्ष का निकला वो कहते हैं ना कि जब आप किसी चीज को शिद्दत से ढूँढ़िये तो कायनात भी आपका मदद कर देती है वही श्री के साथ भी हुआ उत्कर्ष के प्रोफाइल को देखने के बाद फिर थोड़ा पशोपेश में आ गई कि यह वही उत्कर्ष है जिससे आज बैंक में मिली थी यह प्रोफाइल और वह व्यक्ति एक है या अलग अलग फिर उसमें अपना फेसबुक अकाउंट बंद किया और फोन को किनारे रख दिया और विचार करने लगी कहीं ऐसा ना हो कि ज्यादा जल्दबाजी में मैं कहीं कुछ गलत किसी को मैसेज कर दूं और विचार करने लगी क्यों कोई रास्ता भी तो नहीं फिर उसने वापस से फोन उठाया और उस अकाउंट पर एक मैसेज टाइप किया हाय रिमेंबर मी मैं वही हूं जो आज आपको बैंक में मिली थी इतना मैसेज टाइप करने के बाद उसने उसको सेंड नहीं किया वैसे ही छोड़कर अकाउंट बंद करके मोबाइल को किनारे कर दिया अब सोचने लगी अपनी तरफ से मैसेज भेजना क्या ठीक होगा औरत का इस तरह पहल करना क्या सही होगा पता नहीं वह क्या सोचता होगा मेरे बारे में और मेरे मैसेज को देख कर पता नहीं वह मेरे बारे में क्या भावना बना ले इसी पशोपेश में काफी देर तक उलझी रही फिर उसने वापस से फोन उठाया और वापस से अपना फेसबुक अकाउंट खोला और उस मैसेज को सेंड कर दिया यह काम करते समय उसका दिल बहुत तेज धड़क रहा था बाद में विचार करने लगी उसने सही किया या गलत फिर उसने सोचा जो करना था वह कर लिया फिर सोचना कैसा सही है या गलत इसके बारे में विचार क्या करना थोड़ी देर तक वह सेंड हुए मैसेज को देखती है उसमें एक टिक लगा हुआ था मतलब मैसेज अभी उत्कर्ष तक पहुंचा नहीं है अब उसकी बेचैनी और बढ़ गई कब वह मैसेज पहुंचेगा कब देखेगा मैसेज देखने के बाद जवाब देगा कि नहीं देगा पता नहीं वह मेरे बारे में मेरी क्या इमेज बना ले अपने आप यह सब सोचते-सोचते कई घंटे बीत गए और फिर श्री अपने घर के काम में लग गई रात को जब वह सोने बिस्तर पर गई तो यूं ही अपना मोबाइल चला रही थी उसे अचानक याद आया कि उसने एक मैसेज किया था चलो उसे चेक करें कि वह डिलीवर हुआ या नहीं उसने देखा या नहीं और यह मैसेज उसी उत्कर्ष तक पहुंचा है जिसको वह भेजना चाहती थी जैसे ही देखा तो पाया मैसेज डिलीवर दो गया है दो टिक लगे हैं और नीले भी हो गए मतलब सामने वाले ने मैसेज पढ़ लिया है पर जवाब नहीं दिया अब तो वह और घबराने लगी कि लग रहा है उसने किसी गलत आदमी को मैसेज कर दिया इन्हीं बातों को सोच ही रही होती हैं कि अचानक देखती है की एक मैसेज आता है जी बिल्कुल मैं आपको पहचान गया और मैं ईश्वर का बहुत-बहुत शुक्रगुजार हूं कि एक बार वापस आप मुझे मिल गई यह मैसेज पढ़ कर श्री की आंखों में चमक आ गई चेहरे पर मुस्कुराहट यही तो चाहती थी श्री एक बार भी फिर उससे मिलना उससे बातें करना उसको देखना उसको जानना और उसको समझना यह सोचते हुए अचानक श्री को लगता है रात काफी हो गई है श्री ने सिर्फ इतना मैसेज किया कि कल बात करते हैं आज रात काफी हो गई है शुभ रात्रि उधर से मैसेज आता है शुभ रात्रि कल आपका इंतजार रहेगा यह सुनकर श्री के चेहरे पर एक बार फिर मुस्कुराहट आ जाती है श्री का मन आज उस लड़की की तरह है हो रहा है जिसमें शायद पहली बार किसी के प्रति अपने को आकर्षित होते हुए पाया है उसके बाद से मोबाइल रखकर सोचते हुए कब नींद के आगोश में चली जाती है पता नहीं चलता दूसरे दिन सुबह उठकर वह घर के काम और बाकी चीजों में व्यस्त हो जाती है तभी अचानक उसे याद आता है कि उसको तो आज उत्कर्ष को मैसेज करना था और चारों तरफ नजरें घुमा कर अपना मोबाइल ढूंढती है |

                                क्रमशः..........


   



Thursday, February 23, 2023

तारों वाली कोठी (भाग 1)

 

यह कहानी उत्कर्ष और श्री की हैं जो उम्र के एक ऐसे पड़ाव पर मिले जहां न प्रेम की अभिलाषा रह जाती है ना ही आगे कुछ नया होने की उम्मीदl
उत्कर्ष तक़रीबन पैंतालीस साल का होगा तो वही श्री चालीस साल के आसपास l दोनों की मुलाकात एक बैंक में होती है जहां श्री कुछ कागज बनवाने जाती है वही उत्कर्ष अपने स्टाम्प पेपर लेने जाता है l दोनों ने वहां एक दूसरे को देखा पर वैसे ही जैसे कोई अजनबी किसी को पहली बार देखता है यहां यह नहीं कहेंगे कि कोई उनके प्रेम की शुरुआत फिल्मी ढंग से हुई कि जब श्री ने उसे देखा तो वह से देखती रह गई या जब उत्कर्ष ने श्री को देखा तो वह उसे देखता ही रह गयाl
          उत्कर्ष ने अपना काम करते हुए एक बैंक अधिकारी से बात की इत्तेफाक से उसी बैंक अधिकारी से श्री अपना काम पहले से करवा रही थी उत्कर्ष के उस बैंक अधिकारी से बात करने के लहजे को देखकर श्री प्रभावित हो गई उत्कर्ष के बात करने के अंदाज में कुछ तो था जो श्री उसकी ओर खिचती चली जा रही थी वह उत्कर्ष को एक टक निहारे जा रही थी बिना किसी बात की परवाह किए तभी अचानक उत्कर्ष का ध्यान श्री की ओर जाता है उत्कर्ष को अपनी ओर देखते हुए श्री थोड़ा सकुचा जाती है और उसके बाद वह अपने काम के साथ-साथ चोरी - छुपे, गाहे-बगाहे उत्कर्ष को देखती है इत्तेफाक से उसी समय उत्कर्ष भी उसे देखता है जिसके कारण दोनों की नज़रे आपस में मिलती हैं l
      उसके बाद जब तक कि दोनों अपने - अपने कामों से फ्री नहीं हो जाते तब तक दोनों बैंक में रहते हैं और दोनों ही एक दूसरे को छुपी हुई नजरों से देखते रहते हैं पर दोनों में से कोई भी एक दूसरे से बात नहीं कर पाते और न ही एक दूसरे को हेलो बोलने की हिम्मत कर पाते l कुछ समय बीत जाने के बाद उत्कर्ष अपने पेपर लेकर वहां से जाने के लिए निकलता है और पलट - पलट कर श्री की ओर देखता है कि शायद श्री उससे सामने से बात करें या अपना मोबाइल नंबर उसे दे पर ऐसा कुछ होता नहीं और उत्कर्ष वहां से मायूस होकर निकल जाता है वहीं दूसरी ओर श्री जल्दी-जल्दी अपना काम निपटाती है इस उम्मीद से की शायद उत्कर्ष उसका बाहर इंतजार कर रहा हो l श्री अपना सारा काम खत्म करके दस मिनट के भीतर बाहर जाती है उसकी नजरें चारों ओर उत्कर्ष को ढूंढ रही होती है अफसोस उत्कर्ष उसको कहीं भी नहीं मिलता फिर वह मायूस होकर अपनी कार में बैठकर घर की ओर निकल लेती है पर पूरे रास्ते में भी श्री की नजरें उत्कर्ष को ही ढूंढ रही होती है। लेकिन श्री को पूरे रास्ते में उत्कर्ष कहीं भी दिखाई नहीं पड़ता फिर वह भी मन को समझाते हुए कि अगर किस्मत में हुए तो दोबारा मिलेंगे और घर की ओर चली जाती है पर उसके अंतर्मन में कहीं एक कोने में उत्कर्ष ऐसा बस जाता है की श्री उसके ख्यालों से खुद को अलग नहीं कर पाती वहां से अपने घर तक उत्कर्ष के बारे में सोचते हुए जाती है l
उदास मन लिए हुए श्री अपने घर पहुंच जाती हैं घर पहुंच कर जब कुछ देर के लिए खाली बैठती है तो वह उसकी बातों को बार-बार दोहरा के सोच रही होती है l उन बातों को सुन कर ही तो श्री ने उत्कर्ष का नाम जाना था। अब आगे वह यह सोच कर परेशान थी कि क्या दोबारा वापस से कहीं उत्कर्ष से मुलाकात होगीं या आज की मुलाकात ही पहली और आख़िरी होगी l
                                              क्रमशः.......


Thursday, May 6, 2021

एक विचार

 

आज दिन में अचानक विचार आया कि यह वास्तु दोष, घर बैठे कुंडली बनवाए, कृपा रुकी वाले बाबा, ग्रह शांति वाले पंडित जी यह सब अचानक से गायब हो गए। आज कल न तो कोई कोरोना की कुंडली बना रहा न विचार रहा, न कोरोना शांति हवन बता रहा और साथ ही साथ कोई यह भी नई बता रहा कि देश पर कृपा कहां से रुकी हैं कि कोरोना न तो जा रहा न खत्म हो रहा जड़ से न ही हम सब मिल कर इसे हरा पा रहे हैं।
यह सब बाबा, दादी, पंडित, दीदी सब के सब अपनी दुकान समेट गायब हो गए अब इन्हें न तो हमारे भविष्य की चिंता न देश की चिंता और तो और कोरोना को भागने का भी कोई दावा नहीं कर रहा हैं।
बस यहीं बताना चाहती हूं कि हम खुद ही इनके बिछाए अंधविश्वास के जाल में जा कर फंसते हैं। कोई पंडित, बाबा, दादी, दीदी, मां में शक्ति नहीं कि ईश्वर का लिखा मिटा सके या उसको बदल सके ये सिर्फ हमारा आपका भ्रम हैं कि फलाने ने यह उपाय बताया हमारा काम हो गया पर ऐसा नहीं हमारा काम होना था वह उसी समय पर हुआ आपको लगा कि अमुक की पूजा से हुआ ऐसा बिलकुल नहीं यही अंधविश्वास है जो बरसों से हमें खोखला किए है।
अब सब खुद सोचिए पिछले छः आठ महीने से आपको किस बाबा पंडित मौलवी की जरूरत पड़ी या किस जगह के चक्कर लगाए बिना आपका आठ महीना न कटा हो।
यह सिर्फ हमारे बनाए भ्रम है अंधविश्वास है जिन्हे हमें खुद दूर करना हैं। कोई किसी की नियति नहीं बदल सकता हैं। जो कर्म किए है उनका फल भोगना ही है बस यही नियति हैं। ईश्वर ही आपका रक्षक है उस पर भरोसा करिए यहां तक लाया तो आगे भी ले जाएगा। वैसे भी ईश्वर को हम परमपिता परमेश्वर मानते है फिर कैसे कोई पिता अपने ही बच्चों का गलत कर सकते हैं।
इसलिए अंधविश्वास से दूर रहिए ये पंडित मौलवी दादा दीदी बाबा और मां से दूर रहिए ईश्वर पर अटूट आस्था रखिए जो कर्म किए है वह भुगतने हैं इस में आपकी कोई मदद नहीं करेगा।
अपने इष्ट पर पूर्ण विश्वास रखिए जो आपके लिए बेहतरीन होगा वह वहीं देगा। जितना अंधविश्वास के पीछे भागोगे, भटकोगे उतना ही परेशान होगे और अपने दुःखों को बढ़ा लोगे।
समय जब अच्छा नहीं रुका तो खराब भी नहीं हो रुकेगा। अभी थोड़ा सब्र करना हैं जो हो रहा है ईश्वर की मर्जी और अपने कर्मों का भुगतान समझ कर शांति से रहिए। ईश्वर सर्वोपरि है उसके आगे हम कुछ भी नहीं। नियति को बदल नही सकते शांति से स्वीकार करने में भलाई हैं।
अभी बस इतना ही कर सकते है हम एक सामान्य मनुष्य की भांति व्यवहार करें जितना संभव हो सबकी सहायता करें सबके कष्टों को दूर करें, लोगों को सांत्वना दें उनकी तकलीफ़ को सुन कर बांटे यही सबसे बड़ा पुण्य हैं अगर हम किसी की भी किसी भी रूप में सहायता कर सकते है तो यहीं बहुत हैं।
ईश्वर से सम्पूर्ण सृष्टि के लिए प्रार्थना करें हमारे एवं सभी के कष्टों को हरने की प्रार्थना करें एवं सभी के लिए मंगल कामना करें।

डॉ सोनिका शर्मा

अब लगता है उम्र हो रही हैं

 अब लगता है उम्र हो रहीं हैं  चेहरे से नहीं  बालों से नहीं  इस लिए भी नहीं की भर रहा हैं शरीर  ऐसा नहीं कि यह सब आइना दिखा या बता रहा है  इस...