(1)
मालूम है इन बारिश की बूंदों ने भी बेइंतेहा मुहब्बत की होगी कभी।
तभी तो ज़मीन से मिलने के लिए इतना नीचे गिरना पड़ता है इन्हें भी।।
(2)
होना तो बहुत कुछ नहीं चाहिए था,
करना तो बहुत कुछ नहीं चाहिए था।
पर सब होता चला गया,
वक़्त मेरे साथ और मैं वक़्त के साथ उलझती चला गया।।
(3)
तुम वह वक्त थे जिसे मैं रोक नहीं पाईं,
मैं वह पल थीं जिसे तुम थाम नहीं पाये।
(4)
अब छोड़ो तुझमें वह बात नहीं है,
इसीलिए तेरी आरजू साथ नहीं हैं।
बहुत रो चुके हैं तुम्हारे लिए,
अब मुस्कुराना है अपने लिए।।
(5)
अंधेरी रातों में बहुत जाग चुके हैं हम,
तेरे पीछे बहुत भाग चुके हैं हम।
तुझसे जुड़ी हर याद को भुला रहे है हम,
जा अब तुझे से दूर जा रहे हैं हम।।
(6)
हम उनसे हर लम्हें में मुहब्बत करते रहे,
वह हमसे हर लम्हें में नफ़रत करते रहे।
हमने हर दुआ में उन्हें मांगा था,
उन्होंने हर दुआ में किसी और को मांगा था।
हमारी दुआएं उनकी सलामती की थीं,
उनकी दुआएं अपनी खुशी की थीं।
हर पल नज़रे उन्हें देखना चाहतीं हैं,
उनकी नज़रों किसी और को चाहतीं हैं।
यह इश्क़ भी कमबख्त मेरा ऐसा है,
जिसे हम चाहते है वह किसी और का है।।
No comments:
Post a Comment