Wednesday, July 30, 2025

बहन या सखी

 "अमोली तुम कितना टाइम लेती हो।" घर में अगर दो बाथरूम न हो तो मैं रोज़ ऑफिस के लिए लेट हो जाऊं। रिचा की आवाज़ किचन से बाथरूम तक गूँज रहीं थीं। रिचा अमोली के ऊपर बड़बड़ाती जा रही थी और साथ ही ऑफिस के लिए तैयार हो रही थीं। तभी बाथरूम में से पानी गिरने की आवाज़ बंद हो जाती हैं, अमोली बाथरूम से निकलती है और गीले बालों को तौलिया से सुखाते हुए कहती हैं क्यों सुबह -सुबह अपना बी पी बढ़ाती हो, कहकर जल्दी से तैयार होने लगती हैं और साथ दीदी को बोलती है आज तो लेट हो जाऊँगी कॉलेज पहुंचने में। यह कहकर जल्दबाजी में अमोली गीली तौलिया बिस्तर पर डाल फटाफट तैयार होती है तभी बिस्तर पर गीला तौलिया पड़ा देखा रिचा अमोली पर फिर बड़बड़ाती है। अमोली तेरा रोज़ का है देर से सो कर उठती है फिर भागम भाग में कॉलेज के लिए तैयार होना और चीज़े इधर उधर फेंकना और तौलिया तो रोज़ बिस्तर पर ही डालती है और रोज़ उसके लिए मैं तुझे टोकती हूं पर तुम पर तो कोई असर ही नहीं पड़ता मेरी बातों का।

अमोली फिर भी बातों को अनसुना करते हुए बैग उठाती हैं,  जूते पहनकर, टेबल से सैंडविच हाथ में लेकर कहती है दीदी कोई नहीं इन बातों को शाम को डिस्कस करते है अभी लेट हो गया शाम को डांट लेना और बाय बोल वह कॉलेज के लिए निकल जाती है। 

दरवाज़ा तेज़ी से बंद हुआ और रिचा वहीं खड़ी रह गई—हाथ में तौलिया लिए, माथे पर शिकन लिए। उसने गहरी साँस ली और मन ही मन बुदबुदाई- इसकी रोज की यही आदत है। मैं रोज ही बोलती हूँ और गलती से भी इस लड़की पर कोई असर नहीं पड़ता।

शाम के करीब 7 बज रहे थे। रिचा ऑफिस से लौटते ही सीधे किचन में घुस गई। आदतन उसने पर्स टेबल पर रखा, और फ्रिज से पानी निकालकर गिलास में पानी लिया। घड़ी की ओर देखा अभी तक अमोली घर नहीं आयीं थी।

आज फिर देर कर दी इस …” वह मन में बुदबुदाई।

लेकिन इस बार उस बुदबुदाहट में गुस्सा नहीं था, बस एक चिंता थी, जो अब अक्सर होने लगी थी। कुछ देर बाद ही दरवाज़े की घंटी बजी रिचा तेज़ी से दरवाज़े की ओर जाती हैं और दरवाज़ा खोलती हैं और तभी अमोली हल्की-सी साँस छोड़ते हुए घर के अंदर दाखिल होती। उसका चेहरा थका हुआ था, आँखों के नीचे हलके-काले घेरे और कंधे पर ढीला पड़ा बैग जैसे कह रहा हो –"आज का दिन भारी था।"

रिचा कहती हैं घड़ी देखा, "आज भी 7 के ऊपर हो रहा हैं।"

रिचा की आवाज़ तेज़ तो नहीं थी, पर सीधी और सख़्त जरूर थीं।

अमोली ने बस हल्के से सिर हिलाया, जैसे कह रही हो – “हाँ, मालूम है।”

वह बिना कुछ बोले सीधे अपने कमरे में चली गई। रिचा कुछ पल के लिए रुकी और फिर उसके पीछे-पीछे उसके कमरे में गई। कमरे में अमोली ज़मीन पर बैठी थी, जूते उतार रही थी और चुपचाप नीचे देख रही थी।

रिचा ने अमोली से पूछा  "क्या हुआ?"

रिचा का स्वर अब कुछ मुलायम हो गया।

अमोली ने नजरें उठाईं। कुछ देर चुप रही। फिर बोली,

"आज क्लास के बाद लाइब्रेरी में रुक गई थी। असाइनमेंट सबमिट करना था। लेकिन… वहाँ इतनी भीड़ थी… फिर लैपटॉप भी हैंग हो गया, और जब सब फॉर्म भर चुके थे, मेरा पेज लोड ही नहीं हुआ। फिर… फिर थोड़ी देर रुक गयी ।"

रिचा के चेहरे पर हैरानी आई, फिर बेचैनी से फिर क्या अमोली। रिचा पास आकर बैठ गई। अमोली फिर क्या थोड़ा वेट किया थोड़ी देर बाद फॉर्म जमा हो गया। फिर अचानक अमोली के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई।

"पर दीदी, शाम की डांट का क्या हुआ?"

रिचा हँस पड़ी, धीरे से उसका सिर सहलाया।

"रोज़ की डांट तो चलती रहेगी, पर.... अमोली बोली पर जब मैं इस तरह थकी हुई लौटकर आऊँ, तो बस खाना मिलना चाहिए और कोई सिर सहलाने वाला होना चाहिए… है न?"

अमोली ने चुपचाप अपना सिर दीदी की गोद में रख दिया।

रात को जब दोनों खाना खा रही थीं, अमोली बोली-

"तौलिया कल से बिस्तर पर नहीं फेंकूंगी।"

रिचा ने बिना देखे जवाब दिया, "और मैं तुम्हें रोज़ की तरह डांटना नहीं भूलूंगी।" दोनों हँस पड़ीं।

बहनों का यही तो रिश्ता होता है।

अगली सुबह।

रिचा बिस्तर से उठी, तो देखा- तौलिया इस बार बिस्तर पर नहीं था। वो मुस्कुराई, जैसे कोई छोटा सा वादा निभा लिया गया हो पर अगले ही पल उसका ध्यान गया- अमोली आज अभी तक नहीं उठी थी। घड़ी में 7:15 बज रहा था।

"अमोली - रिचा ने आवाज़ लगायी। कोई जवाब नहीं"।

वो चिंतित होकर अंदर गई- अमोली बिस्तर पर बैठी थी, घुटनों में सिर छिपाए कमरा अंधेरे में था, पर्दे बंद। अलार्म बजा, लेकिन उसने बंद भी नहीं किया।

रिचा धीरे से पास गई। "क्या हुआ?"

अमोली ने सिर उठाया उसकी आँखें लाल थीं। चेहरा उतरा हुआ, बाल बिखरे और होंठ सूखे।

"मैं नहीं जाना चाहती आज कॉलेज," वह बोली।

"क्यों?" रिचा ने पूछा 

"बस… मन नहीं कर रहा। कुछ दिन से मन बिल्कुल शांत नहीं है। लगता है कुछ ठीक नहीं चल रहा… पढ़ाई में मन नहीं लगता… प्रोफेसर की बातें सिर के ऊपर से जाती हैं… और हर चीज़ जैसे बोझ लगती है।"

रिचा ठिठक गई।

उसने पहली बार अमोली को इतने टूटे हुए अंदाज़ में देखा था।

"किसी से कोई बात तो नहीं हुई ?"

"नहीं… किसी से नहीं? 

बस सब तो कहते हैं 'बड़ी हो गई हो', 'स्ट्रॉन्ग बनो'… और तुम भी तो दीदी, रोज़ कहती हो — 'सुनना छोड़ो, करना सीखो'।"

रिचा कुछ पल चुप रही।

फिर धीरे से बोली, "मैंने कभी नहीं सोचा कि मेरी डांट भी कभी तुम्हारी चुप्पी बन सकती है।"

वह अमोली के पास बैठ गई, उसके कंधे पर हाथ रखा।

"अमोली, स्ट्रॉन्ग होने का मतलब ये नहीं कि सबकुछ सहो और चुप रहो। कभी-कभी टूट जाना भी ज़रूरी होता है। मैं हमेशा तुम्हारी बड़ी बहन रही, लेकिन शायद तुम्हारी दोस्त बनने में पीछे रह गई।" रिचा की आंखों से आँसू बह निकले जिसे देख अमोली की आँखों में आँसू आ गए। 

अमोली कहती है  "कभी-कभी लगता है… जैसे मैं कहीं जा ही नहीं रही। मैं बहुत कोशिश करती हूँ दीदी, लेकिन… शायद मैं उतनी अच्छी नहीं हूँ, जितना सब सोचते हैं।"

रिचा ने उसे कस कर गले से लगा लिया।

"तुम जैसी हो, वैसी ही बहुत अच्छी हो। तुम्हें साबित करने की ज़रूरत किसी को भी नहीं। बस खुद को थामे रखना सीखो… और जब थामना मुश्किल हो, तो याद रखना - मैं हूँ।"

उस कमरे में कुछ देर तक बस सिसकियों और खामोशियों की भाषा बोली जाती रही।

उसी शाम, रिचा ने अमोली के लिए एक कॉफी बनाई और उसकी किताबें खुद सहेज कर रखीं।

और अमोली ने पहली बार रिचा को ‘दीदी’ की बजाय ‘सखी’ कहा।

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