Monday, July 21, 2025

अनकहा रिश्ता

 लोगों की सुबह चाय की प्याली से होती है और रक्षा और नमन की सुबह तब होती थी जब दोनों अपने घरों से वॉक के लिए निकलते थे और करीब 3-4 कि मी की वॉक एक साथ करते थे। इन सर्दियों की सुबहों में जब ठंडी हवा चेहरे को छूती, तो नमन अक्सर कहता,

"रक्षा, तुम्हारी चुप्पी भी इन गलियों की तरह सुकून देती है।"

रक्षा बस हल्की मुस्कान देती और आगे बढ़ जाती।

दोनों के बीच कोई रिश्ता तय नहीं था, न कोई वादा… पर हर सुबह जैसे एक अनकही जिम्मेदारी थी।

हर सुबह एक नया मौन संवाद होता था — शब्दों के बिना।

वो पार्क का मोड़, जहाँ गुलमोहर के पेड़ खड़े थे, उनकी वॉक का अंतिम पड़ाव होता।

वहीं पर बैठ कर दोनों कुछ मिनट शांत रहते — जैसे कुछ कहने से पहले ठहरना ज़रूरी हो।

एक दिन नमन ने अचानक पूछ लिया,

"क्या ये सुबहें यूँ ही चलती रहेंगी?"

रक्षा ने उस दिन पहली बार उसकी आँखों में देखा और कहा,

"अगर हम इन्हें रोके नहीं, तो क्यों नहीं?"

फिर उसने अनायास पूछ ही लिया,

"तुम सुबह-सुबह अकेली निकल जाती हो, डर नहीं लगता?"

रक्षा ने कुछ पल चुप रहकर जवाब दिया,

"डर  तो तब लगता था जब अपने ही घर में सुकून नहीं था। बाहर की सड़कें तो कम से कम सच बोलती हैं… सीधी हैं, साफ हैं, प्रिडिक्टेबल हैं।"

नमन कुछ नहीं बोला, बस उसके साथ चलने लगा। उस दिन के बाद हर सुबह उनके बीच एक चुप संवाद चलता — कुछ न कुछ ऐसा, जो कहे बिना भी समझ में आता।

दरअसल, दोनों ही भीतर से खाली थे -पर बाहर से मजबूत दिखते थे।

रक्षा के जीवन में एक हादसा ऐसा था, जिसने उसे अंदर से तोड़ दिया था। वो किसी मानसिक थकावट का शिकार थी, जिसे न कोई समझ पाया, न उसने जताया।

नमन भी एक तरह का मानसिक बोझ लिए चलता था — नौकरी, रिश्तों, उम्मीदों और अपने 'असफल पुरुष' होने के अहसास के बीच।

उनकी वॉक असल में एक थेरेपी थी — बिना डॉक्टर के इलाज, बिना दवा के राहत।

एक दिन नमन ने कहा,

"तुम्हें देख कर लगता है कि तुम कुछ कहना चाहती हो, लेकिन शब्द नहीं मिलते।"

रक्षा ने मुस्कुराकर जवाब दिया,

"कभी-कभी शब्दों से ज्यादा जरूरी होता है कि कोई साथ चल रहा हो - बिना पूछे, बिना ठहरे।"

कोई बीता हुआ दुख, कोई अनसुलझा सवाल।

वह सुबहें अब आदत बन चुकी थीं। पार्क की वही पगडंडियाँ, वही पेड़, वही चुप्पियाँ… लेकिन अब चुप्पियों में बोझ नहीं था। जैसे दोनों ने एक-दूसरे के भीतर के शोर को सुनना सीख लिया था।

एक दिन वॉक के बाद नमन बोला,

"तुम्हारे साथ चलना कुछ ऐसा है जैसे खुद से मिलना। पहले मैं खुद से भागता था, अब थोड़ा रुकने लगा हूँ।"

रक्षा ने पहली बार उसके हाथ पर हाथ रखा, बहुत हल्के से, जैसे कोई पंख छू गया हो। "मैं खुद को फिर से पहचानना चाहती हूँ, नमन। तुम्हारा साथ मेरे लिए दवा की तरह है… लेकिन शायद इलाज खुद को ही करना होगा।"

उस दिन उनकी वॉक थोड़ी देर तक चली — पर ज़्यादा दूर नहीं। अंत में एक चौराहे पर आकर दोनों रुक गए।

नमन ने कहा, "शायद कुछ लोग मिलते हैं सिर्फ इसलिए कि हम फिर से खुद को जोड़ सकें।"

रक्षा ने सिर हिलाया,

"और कुछ रिश्ते सिर्फ उस सफर तक होते हैं जहाँ तक हमें अपनी राह समझ आ जाए।"

उस दिन के बाद वो वॉक कम होने लगी। दोनों ने एक-दूसरे को अलविदा नहीं कहा, न ही कोई वादा किया।

पर वो सुबहें, वह संवाद — जैसे भीतर कोई दीया जलाने वाले थे।

अब रक्षा अपने घर की बालकनी में चाय पीते हुए मुस्कुराती है। नमन योगा क्लास के बाद खुद के लिए समय निकालता है। वे एक-दूसरे के साथ नहीं हैं, लेकिन एक-दूसरे की वजह से अपने साथ है।

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