आज कल कुछ दिनों से पीठ में दर्द रहता है पहले तो खुद का इलाज किया पर जब कुछ फायदा होता न दिखा तो डॉक्टर के पास जाना ही समझ आया।
डॉक्टर ने कहा रीढ़ की हड्डी में रिक्तता यानी जगह बन गई झुकते -झुकते डॉक्टर ने कुछ दवा और न झुकने की हिदायत देकर मुझे चलता किया।
डॉक्टर की बात सुन पशोपेश में थी कि यह सही कह रहा है या नहीं यह मुझसे झुकने को मना कर रहा है क्या मालूम नहीं उसे मैं एक स्त्री हूँ।
पूरे रास्ते इस उधेड़बुन में बीत गया कि अब जो सब ने कहा वह सही या यह डॉक्टर कह रहा वह सही।
जीवन भर सब ने कहा झुक कर चल औरत हो तुम
माँ ने कहा छोटे भाई बहन के लिए झुक जाओ,
ससुराल में दूसरी मां ने कहा
सम्बंध निभाने हैं इसलिए झुक जाओ,
बाहर दोस्ती निभानी है झुक जाओ,
रिश्तेदारी रखनी है तो झुक जाओ
नौकरी में शांति रखनी है झुक जाओ,
पूरा जीवन बीतने को है और सभी जगह झुकती ही आयीं कभी हालतों के सामने, कभी अपनों के लिए, कभी परायों के लिए कभी किसी की इच्छा के लिए, कभी किसी की जिद्द के लिए झुकती ही आयीं कब यह आदत बन गई पता ही नहीं चला।
आज जब डॉक्टर ने बोला झुकते - झुकते रीढ़ की हड्डी में जगह बन गई तब अचानक समझ आया कि झुकते - झुकते रीढ़ की हड्डी में रिक्तता आ गई पर कभी यह समझ आया पूरा जीवन जो सबके लिए झुकती आयीं तो हृदय में कितनी रिक्तता आ गई इसका शायद ही किसी को एहसास होगा क्योंकि हड्डी की रिक्तता तो डॉक्टर ने पढ़ ली पर मन या यूं कहें हृदय की रिक्तता को तो किसी ने नहीं पढ़ी यहां तक कि मैंने स्वयं ने भी नहीं शायद रीढ़ की इस रिक्तता का अपार दर्द शरीर झेल न सका पर अंतर्मन की रिक्तता का दर्द अन्तस्थ में ही समा गया।
देर से ही सही पर न तो रीढ़ की रिक्तता को बढ़ावा दूंगी और न ही अंतर्मन की रिक्तता को बढ़ने दूंगी।
अब और नहीं झुकुउँगी।
अब और नहीं.....
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