Wednesday, April 21, 2021

विचार

 

मेरा शहर थक गया उसका हौसला भी टूट रहा है हिम्मत भी हार रहा है पर यकीन रखिए फिर उठेगा यह काले बादल छंट जाएंगे फिर सुबह का सूरज उगेगा फिर हम सब ताज़ी हवा में सांस लेंगे बस हौसला रखना है। इंतजार करना है नई सुबह का उस सुबह का जब हम खुल कर खुली हवा में सांस लेंगे उस दिन का जब हम हाथ मिलाने और गले लगाने से नहीं डरेंगे।
फिर वह दिन आयेंगे जब सब के सुख दुःख साथ मिल कर बाटेंगे खुशी हो या गम सब इकट्ठे होंगे। बस थोड़ा सा धैर्य थोड़ी सी समझदारी थोड़ा सा आत्मविश्वास रखना अपना और अपने अपनों का ख्याल रखना हैं और सकारात्मक सोच के साथ अपने आस पास सकारात्मक ऊर्जा का संचार करना है।
अभी के लिए सिर्फ ईश्वर पर विश्वास और सकारात्मक सोच के साथ अपने प्रति जागरूक रहिए।

डॉ सोनिका शर्मा


Monday, April 5, 2021

जेंडर इक्वालिटी

 

जेंडर इक्वालिटी की बात तो करते
कभी जिंदगी में इक्वल हुई है औरत

किचन में जाते समय मां ने बेटी से
नहीं बेटे से कहा हो
चल बेटा आज तू मेरे साथ लग कर खाना लगवा दे न
क्या कभी यूं भी हुआ हो जब
किसी के आने पर मां ने बेटी की जगह बेटे से कहा हो चाय बनाने को।।

जेंडर इक्वालिटी की बात तो करते है
कभी जिंदगी में इक्वल हुई है औरत

बचपन में कभी पापा ने अपने बेटे की जगह बेटी को
सिलेंडर उठाने के लिए बुलाया है
कभी यूं भी हुआ हो पापा ने किसी इमरजेंसी पर बेटे की जगह बेटी को बुलाया हो।।

जेंडर इक्वालिटी की बात तो करते है
कभी जिंदगी में इक्वल हुई है औरत

कभी यूं भी हुआ हो जब बाबा – दादी को पोते से ज्यादा पोती पर नाज हुआ हो
ऐसा भी कभी हुआ हो जब बाबा – दादी कहे मेरी तो पोती मेरा नाम रोशन करेगी।।

जेंडर इक्वालिटी की बात तो करते हो
कभी जिंदगी में इक्वल हुई है औरत

औरत पूरा जीवन संघर्ष करती है
फिर भी कोमल कहा जाता है
शारीरिक बदवालों के साथ रोज खुद को संभालते हुए संघर्ष
फिर भी कमज़ोर कहा जाता।।

जेंडर इक्वालिटी की बात तो करते हो
कभी जिंदगी में इक्वल हुई है औरत

ईश्वर ने भी भेदभाव ही किया औरत के साथ
शारीरिक संरचना हो या बच्चा पैदा करना
यह काम सिर्फ औरत को दिया पुरुष को नही
फिर भी समाज अबला कहता है।।

जेंडर इक्वालिटी की बात करते हो
कभी जिंदगी में इक्वल हुई है औरत

संघर्षों भरे जीवन के बाद
घर को संभालना उसे घर बनाना
ये भी एक औरत ही करती है
कभी किसी ने पुरुष से अपेक्षा की है क्या?

जेंडर इक्वालिटी की बात करते हो
कभी जिंदगी में इक्वल हुई है औरत।

डॉ सोनिका शर्मा




शादी के बाद कभी ऐसा हुआ है
जब ऑफिस से थकी घर लौटी हो
और सास ने बहू की जगह बेटे से कोई काम की उम्मीद की हो
पूरी जिंदगी भेदभाव ही होता आया
और फिर भी जेंडर इक्वालिटी की बात हम करते हैं
कभी जिंदगी में इक्वल हुई है औरत।।


तारों वाली कोठी (भाग 2)

 श्री इसी उधेड़बुन में थी कि वह कैसे उत्कर्ष तक पहुंचे या उससे बात हो पाए या उससे मुलाकात| अचानक उसके दिमाग में एक विचार आता है आज के युग मे...