सड़कें हैं शांत
मगर चीखती है अस्पताल की दीवार
इंसान है परेशान
मगर समझ के है सब बाहर
चारों तरफ है दर्द का सैलाब
इंसान इंसान से है डरता
मदद तो दूर
सामने से आता देख रास्ता बदलता
अपने और अपनों की परवाह
सिर्फ अपना और अपनों की सोचता
जिंदगी भर जिस पैसों के लिए भागा
आज वह भी नही आ रहा इंसान के काम
डरा सहमा हताश चारों ओर घूमता आदमी
अपने और अपनों को बचाने की जंग लड़ता हुआ आदमी।।
डॉ सोनिका शर्मा
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