Friday, August 28, 2020

मैं ही हूं

 मैं हूं हां मैं ही हूं

एक बेटी एक पत्नी

एक बहू एक मां

एक सास 

मैं ही तो हूं

मैं हूं हां मैं ही हूं।।


पर इन सब से पहले एक स्त्री हूं

कोमल ह्रदय की

सुकोमल भावनाओं की

अनंत इच्छाओं की

मैं ही तो हूं

मैं हूं हां मैं ही हूं।।


रिश्तों के बोझ को

ढोती हुए

संस्कारों के बंधनों को

जकड़े हुए

रीति रिवाज के आवरण को

ओढ़े हुए

मैं ही तो हूं

मैं हूं हां मैं ही हूं।।


सबकी परवाह करती हुई

सबकी इज्जत करती हुई

सबकी इच्छाएं पूरी करती हुई

मैं ही तो हूं

मैं हूं हां मैं ही हूं।।


याद है कभी पूछा हो जो मुझसे

कैसे जीना चाहती हो जीवन को

कैसे रंगना चाहती हो सपनों को

कैसे सोचा है अपने जीवन को

मैं ही तो हूं

मैं हूं हां मैं ही हूं।।


कभी पूछा मुझसे

कैसे भुलाया अपने को

कैसे तोड़े सपनों को

कैसे भूली अपनों को

मैं ही तो हूं

मैं हूं हां मैं ही हूं।।


हाड़ मांस की बनी हुई

जिंदा हूं पर मरी हुई

जीत कर भी हारी हुई

अपनों के बीच भी पराई हुई

मैं ही तो हूं

मैं हूं हां मैं ही हूं।।

Thursday, August 27, 2020

बेवफ़ा

 दुआओं में भी उसी को मांगा जो किस्मत में नहीं था

प्यार भी उससे किया जो अपना नहीं था

क्यों कहें तुमको बेवफ़ा

मुहब्बत भी उससे की जो तलबगार नहीं था।।

Sunday, August 23, 2020

छल

हर बार छला गया
हर बार ठगा गया

हर बार दर्द दिया गया
हर बार धिक्कारा गया

क्यों हर बार मैंने अपने साथ यूँ होने दिया
क्यों हर बार छलावे में छली गयी
क्यों हर बार ठगी में ठगी गयीं
अपने हाथों क्यों अपने को ही दर्द दिया।।

हर बार छला गया
हर बार ठगा गया

हर बार दर्द दिया गया
हर बार धिक्कारा गया

जिसे अपना मान कर अपना हमराज बनाया था
क्या पता था वही एक दिन मेरी ही नुमाईश करेगा
क्यों हर बार आँख बन्द कर ली
अपने हाथों क्यों अपने को ही बर्बाद किया।।

हर बार छला गया
हर बार ठगा गया

हर बार दर्द दिया गया
हर बार धिक्कारा गया

जिसे अपना मान पूरी दुनिया को पराया किया
आज उसी ने मुझे पराया बनाया
क्यों हर बार की तरह चुप रही
क्यों उसको अपने-पराये के बारे में नहीं बताया ।।

हर बार छला गया
हर बार ठगा गया

हर बार दर्द दिया गया
हर बार धिक्कारा गया



Monday, August 10, 2020

तू

तुझे सोच आज भी आंखे भर आती है
पर न जाने क्यों आज भी बेपरवाह हैं।
तू आज भी मेरे हर सवाल का जवाब है
पर न जाने क्यों तू आज भी बेखबर हैं।।

तारों वाली कोठी (भाग 2)

 श्री इसी उधेड़बुन में थी कि वह कैसे उत्कर्ष तक पहुंचे या उससे बात हो पाए या उससे मुलाकात| अचानक उसके दिमाग में एक विचार आता है आज के युग मे...