हर बार छला गया
हर बार ठगा गया
हर बार दर्द दिया गया
हर बार धिक्कारा गया
क्यों हर बार मैंने अपने साथ यूँ होने दिया
क्यों हर बार छलावे में छली गयी
क्यों हर बार ठगी में ठगी गयीं
अपने हाथों क्यों अपने को ही दर्द दिया।।
हर बार छला गया
हर बार ठगा गया
हर बार दर्द दिया गया
हर बार धिक्कारा गया
जिसे अपना मान कर अपना हमराज बनाया था
क्या पता था वही एक दिन मेरी ही नुमाईश करेगा
क्यों हर बार आँख बन्द कर ली
अपने हाथों क्यों अपने को ही बर्बाद किया।।
हर बार छला गया
हर बार ठगा गया
हर बार दर्द दिया गया
हर बार धिक्कारा गया
जिसे अपना मान पूरी दुनिया को पराया किया
आज उसी ने मुझे पराया बनाया
क्यों हर बार की तरह चुप रही
क्यों उसको अपने-पराये के बारे में नहीं बताया ।।
हर बार छला गया
हर बार ठगा गया
हर बार दर्द दिया गया
हर बार धिक्कारा गया
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