Tuesday, July 15, 2025

बाबा उर्फ अभय सिंह

 आजकल अखबार खोलिए या टीवी में न्यूज़ चैनल चलाइए या मोबाइल में रील या गूगल यूट्यूब खोलिए चारों तरफ बस एक ही चर्चा कुंभ 2025। जैसा की सुनने में आया है यह अफवाह उड़ गई कि यह जो इस साल का कुंभ है यह 144 वर्ष में एक बार आएगा जिसका कोई भी आधिकारिक साक्ष्य नहीं है किस तथ्य में कितनी सत्यता है कि कुछ ज्ञात नहीं। यह कुम्भ 144 साल में एक बार वाला है या 12 साल में एक बार पड़ने वाला है हम इन किसी भी बातों में ना पड़ते हुए मुख्य मुद्दे पर आए।

मेरा आज का यह लेख लिखने का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ आईआईटी बाबा जैसे बाबा हैं ना तो मैं कुंभ के बारे में लिखना चाहती हूं या यह जो कुंभ में 144 साल और 12 साल का मतभेद चल रहा है उसे पर लिखना चाहती हूं यह कुंभ कैसा रहा या कैसा नहीं रहा क्या उसमें अच्छाइयां थी वहां के तैयारी में क्या कमियां रह गई इस पर मैं कुछ भी चर्चा नहीं करना चाहती क्योंकि यह मेरे लेखन का विषय नहीं है ।

आईआईटी बाबा भी मेरे लेखन का विषय नहीं है सिर्फ मेरी इच्छा यह हुई कि जितने भी लोग मेरे लेखन को पढ़ें उनसे मैं अपनी बात को पहुंचा सकूं यह जो मीडिया है जो आईआईटी बाबा को बहुत तूल दे रही है यह कोई बहुत बड़ा अच्छा काम नहीं किया हैं उस बाबा ने।

हमारा आपका सभी का जीवन कोई परफेक्ट नहीं हैं किसी के जीवन में कभी न कभी किसी न किसी चीज की कमी रही होगी लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं है कि हम उससे प्रभावित होकर अपने जीवन की दिशा और दशा दोनों को बदल दे। आईआईटी बाबा जो बाबा बन गए जिनको यह मीडिया बाबा की उपाधि दे रही है मैं उसे बाबा नहीं एक मनुष्य, साधारण मनुष्य की दृष्टि से देखती हूं कि एक लड़का जिसका जन्म होता है साधारण परिवार में इसके मां-बाप हमारे मां-बाप की तरह या हम यह आज 2000 की पीढ़ी की बात ना करके उससे पहले की बात करें तो हम सभी के माता-पिता में हम लोगों को पढ़ने के लिए साम दाम दंड भेद की प्रक्रिया को अपनाते थे। किसी के यहां बच्चों को सुधारने के लिए मारपीट की जाती थी, किसी को डांट फटकार के और किसी को प्यार से ही समझा दिया था। अलग-अलग माता-पिता अलग-अलग तरीके से अपने बच्चों के साथ व्यवहार करते थे और माता-पिता को यह पूरा अधिकार था कि वह अपने बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का व्यवहार कर सकते हैं इसमें किसी का भी हस्तक्षेप नहीं था और हम भी उस पीढ़ी के बच्चे हैं हमने भी अपने माता-पिता की डांट मार और उलाहना को झेला है और अपनी दशा और दिशा को संवारा है। रही बात आईआईटी बाबा या उस लड़के की जिसके घर का माहौल, उसके माता-पिता के आपसी संबंध, उसके साथ उसके माता-पिता के संबंध, उसके साथ होने वाला व्यवहार मैं मानती हूं अच्छा नहीं होगा। उसे लड़के का या कहना कि मेरे घर में जो भी होता था उससे उसकी यह दशा हुई लेकिन मुझे यहां पर यह नहीं समझ में आया कि उससे उसकी यह दशा क्यों हुई उसने उस दशा को खुद समृद्धशाली क्यों नहीं बनाया। उसने खुद से यह प्रण क्यों नहीं किया कि मैं एक समृद्ध और प्रतिष्ठित व्यक्ति बनूँगा परिस्थितियों से भागना ही क्यों उसने उचित समझा, अपने नाकाम प्रेम को अपनी कमजोरी क्यों बनाई । हर वह इंसान जो मेरे लेख को पढ़ रहा है या मेरा लेख जिसके पास पहुंच रहा है उसके जीवन में भी नाकाम प्रेम हुआ होगा और उसने उस नाकाम प्रेम की वजह से क्या अपने जीवन की दशा को बर्बाद कर दिया या उसने अपनी उस स्थिति को अपने ऊपर हावी होने दिया, या फिर खुद पर हावी न होने देते हुए खुद को संभाल कर आगे बढा।

परिस्थितियों से भागना आसान है यह कहना गलत है परिस्थितियों से भागना गलत है और कठिन है आसान नहीं है लेकिन भागना क्यों लोग कहते हैं कि वह परिस्थिति से भाग कर बाबा बनकर आराम से जीवन जी रहा है, यह बात कहने से पहले सोचिए आप सभी इतना पढ़ना लिखना और इतनी उपलब्धियां हासिल करने के बाद एक बाबा का जीवन जीना बहुत कठिन है ज्ञान उसके पास भरपूर है और वह उसको गुमनामी की जिंदगी जी के व्यर्थ कर रहा हैं यह भी कठिन है आप इस बात को ऐसे सोचिए ना कि आप जरूरत से ज्यादा पढ़े लिखे हैं आप बौद्धिक स्तर और शैक्षणिक स्तर पर सामर्थ्यवान है और उसके बाद आप एक गुमनामी की जिंदगी जी रहे हैं ।

यह बहुत कष्टप्रद होता है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि अगर वह आसान नहीं है कठिन है तो हम उस कार्य को करें हम गुमनामी की जिंदगी जिए नहीं।

मेरा मानना है कि आपके माता-पिता के आपसी संबंध अच्छे नहीं थे, आपके माता-पिता ने आपके ऊपर हर तरह का भावात्मक जोर डाला, आप प्रेम में नाकाम रहे आपके जीवन में बहुत सारी असफलताएं रहीं लेकिन आपने उन असफलताओं को क्यों देखा आपने उन सफलताओं को नहीं क्यों नहीं देखा कि उन कठिन परिस्थितियों में आप कहां-कहां सफल हुए जिसे हम लोग कहते हैं कि आप फाइटर थे अगर इतनी सारी समस्याएं थी और उसमें आप इस स्थिति में पहुंचे तो इसका मतलब आप बहुत बड़े योद्धा थे और आगे भी आपको अपने जीवन में एक योद्धा बन कर उसे समृद्धशाली बना सकते थे फिर यह बाबा बनना आपको उचित क्यों लगा।

मैं इस आईआईटी बाबा के आचरण और चरित्र का कोई भी आकलन नहीं कर रही मेरा यह लेख लिखने का उद्देश्य मात्र अपनी युवा पीढ़ी से एक अनुरोध मात्र है परिस्थितियां कैसी भी हो संघर्ष करना ना छोड़े सफ़लता मिलने मे देर हो सकती यह भी सम्भव हो मनोनुकूल सफ़लता ना मिले पर हार कर छोड़ देना समझदारी नहीं है।

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