Sunday, July 27, 2025

तीज़ की रौनक

 हरियाली ओढ़े धरती मुस्काई,

बादल गगन में नाचे गाए,

नववधू-सी सजी ये प्रकृति,

तीज का उत्सव फिर से ले आई।


झूले पड़े हैं पीपल डाली,

हरियाली ने चूनर हैं डाली।

कंगन खनके, चूड़ी छनके,

सखियाँ मिलकर गीत हैं गाएँ।


पेड़ झूमते पवन के संग,

बाँध के झूले डाली पर,

सखियों संग, हँसी बिखर,

महके हर आँगन की डगर।


मेंहदी रचे, मन में उमंग,

श्रृंगार की बिखरी तरंग।

शिव-पार्वती का वरदान मिले,

हर सौभाग्यिनी का जीवन खिले।


सपनों के रंग सँवरे हैं,

मन के भाव निखरे हैं,

श्रृंगार में डूबी नारियाँ,

घूंघट में लाज से मुस्काई है।


पीहर की गलियों में चहकें,

सखियाँ सारी मिल जाएँ,

बचपन की यादें ताज़ा कर,

गीतों की गूँज फैल जाए।


हरियाली ओढ़े धरती मुस्काई,

बादल गगन में नाचे गाए,

नववधू-सी सजी ये प्रकृति,

तीज का उत्सव फिर से ले आई।

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