Saturday, March 6, 2021

मन की गिरहे

 सुनो

ऐ स्त्री

कब खोलोगी 

अपने मन के अंदर की गिरहे

कब तक बंद रखोगी 

अपने भीतर उसे।


कब हल्का करोगी

अपने मन को भीतर तक

कब तक बंद रखोगी

अपने भीतर उसे।


माना की तुमने बहुत कुछ झेला

माना की तुमने बहुत कुछ देखा

पर अब बहुत हुआ

खोल दो उन गांठों को

हटा दो उन परतों को

कब तक बंद रखोगी

अपने भीतर उसे।


मकान को घर बनाया

परायों को अपना बनाया

अपने सपनों को भुलाया

अपनी इच्छा को कुचला

अब तो दिल को खोल दो

बह जाने दो उस सागर को

कब तक बंद रखोगी

अपने भीतर उसे।


कभी घर के लिए 

कभी बच्चो के लिए

कभी उनके लिए

खुद को रोका 

खुद को टोका

पर अब सब भुला कर

एक बार अपने लिए 

खोल दो मन को

कब तक बंद रखोगी

अपने भीतर उसे।


सुनो

ऐ स्त्री

कब खोलोगी 

अपने मन के अंदर की गिरहे

कब तक बंद रखोगी 

अपने भीतर उसे।।


डॉ सोनिका शर्मा

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